छठि पूजा विधि एवं व्रतकथा
सन्ध्याकाल नदी अथवा पोखरिक कछेर पर जाए अपन नित्यकर्म कए अर्थात् सधवा महिला गौरीक पूजा कए आ विधवा विष्णुक पूजा कए पश्चिम मुँहें सूर्यक दिस देखैत कुश, तिल आ जल लए संकल्प करी-
नमोsद्य कार्तिकमासीयशुक्लपक्षीयषष्ठ्यां तिथौ अमुक (अपन गोत्र नाम) गोत्रायाः मम अमुकी (अपन नाम) देव्याः इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सकलदुःखदारिद्र्यसकलपातक-क्षयापस्मारकुष्ठादिमहाव्याधि-सकलरोगक्षय-चिरजीविपुत्रपौत्रादिलाभ-गोधनधान्यादि-समृद्धिसुखसौभाग्यावैधव्य-सकलकलकामावाप्तिकामा अद्य श्वश्च सूर्य्ययार्घमहं दास्ये।
ई संकल्प कए
नमो भगवन् सूर्य इहागच्छ इह तिष्ठ। ई आवाहन कए
तकर बाद दूबि, लाल चानन, अक्षत, घीमे बनल आ गुडक संग बनाओल पकवान लए तामाक अरघामे राखि एहि मन्त्रसँ अर्घ्य दी-
नमोस्तु सूर्याय सहस्रभानवे नमोस्तु वैश्वानरजातवेदसे।
त्वमेव चार्घ्यं प्रतिगृह्ण गृह्ण देवाधिदेवाय नमो नमस्ते।।
नमो भगवते तुभ्यं नमस्ते जातवेदसे।
दत्तमर्घ्यं मया भानो त्वं गृहाण नमोऽस्तु ते।।
ज्योतिर्मय विभो सूर्य तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।
एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पय मां प्रीत्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर।।
एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं संज्ञयासहित प्रभो।।
ई मन्त्र पढि उठैत मुद्रामे अर्घ्य दी।
एहीकालमे जलमे जाए सभटा कोनिया लए हाथ उठाबी। सभ कोनिया पर गायक दूध खसएबाक परम्परा अछि। जेना तामाक अर्घा सँ पहिल बेर अर्घ्य देल गेल तहिना कोनिया वस्तुतः अर्घ्यपात्र थीक से बुझि सूर्यकें ओहिसँ अर्घ्य दी। एकरे हाथ उठाएब कहल जाइत अछि।
तकर बाद सूर्यक पूजा करी।
ललका चानन लए- इदं रक्तचन्दनं नमः सूर्याय नमः।
अक्षत लए- इदमक्षतं नमः सूर्याय नमः।
लाल फूल लए- इदं पुष्पं नमः सूर्याय नमः।
दूबि- इदं दूर्व्वादलं नमः सूर्याय नमः।
बेलपात- इदं बिल्वपत्रं नमः सूर्याय नमः।
वस्त्र- इदं वस्त्रं नमः सूर्याय नमः।
यज्ञोपवीत- इमे यज्ञोपवीते बृहस्पति दैवते नमः सूर्याय नमः।
धूप- एष धूपः नमः सूर्याय नमः।
दीप- एष दीपः नमः सूर्याय नमः।
अनेक प्रकारक नैवेद्य – एतानि नानाविधनैवेद्यानि नमः सूर्याय नमः।
आचमन- इदमाचमनीयं नमः सूर्याय नमः।
पान- इदं ताम्बूलम् नमः।
आधा प्रदक्षिणा- घाटे पर पसारक दूनूकात घुमी।
अन्तमे प्रणाम करी-
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरम्।।
एकर बाद विष्णु अथवा गौरीक विसर्जन करी।
भिनुसरक अर्घ्य
भिनसरमे पूर्वोक्त विधिसँ पूजा आ अर्घ्य दए कथा सुनी।
(मैथिली मे कथा वला पन्ना खोबाक लेल एतए दबाउ)
कथाक बाद सूर्य कें प्रणाम कए हुनक प्रसादमे देल अंकुरी सभ कोनियाँ पर दए दियैक।
तकर बाद गौरी वा विष्णुक विसर्जन कए दक्षिणा करी-
नमोऽद्य कृतैतत् विवस्वत् षष्ठीव्रतकरणतत्कथाश्रवणप्रतिष्ठार्थमेतावद्-द्रव्यमूल्यकहिरण्यमग्नि-दैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे।
एकर बाद घर पर आबि ब्राह्मण भोजन कराए पारणा करी।
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