लगभग 2010 ई. धरि ई पूजा होइत हम देखने छी।

एहिमे डमरूक आकारक माँटिक पाँच आकृति, माँटिक दिबारी जकाँ एक आकृति तथा ओकर ढक्कन जकाँ दोसर आकृति एहि प्रकारें कुल सात आकृति बनाए तीन दिन पूजा कएल जाइत छल। परम्पराक अनुसार जनिका भाए रहैत छथिन ओएह घाँटो बनबैत छथि।

आ यैह कारण अछि जे जा धरि हमर मामा जिबैत रहलाह हमर माय घाँटो बनबैत रहलीह, तकर बाद छोड़ि देलनि। भाँटि आ बँगलाहीक फूल एहि पर चढाओल जाइत छल। हम माँक आदेश सँ बड़ आस्थासँ ई फूल तोडि अनैत रही से मोन अछि।

लोक-परम्परामे पाँचो पाण्डव आ सीताराम विवाहक कथा

एहि बेर 88 वर्षक मायसँ घाँटोक गीतक विषयमे पुछलियनि तँ कहलनि जे ओना तँ बहुतो गीत छैक, मुदा दू टा गीत ओ सभ दिन गबैत रहलीह। एकटा गीतक माय सुनेबो जाहिमे भाव अछि जे घाँटोक पाँचो आकृति पाँच पाण्डव थिकाह, जे जानकी विवाहक अवसर पर मिथिलापुरी आएल छथि। राजा जनक हुनक आतिथ्य करबाक लेल अनेक प्रकारक योजना बनाए रहल छथि- हुनका कथी पर बैसाएब, की खोआएब आदि आदि। कहल जाइत छैक जे घाँटोमे दिवारी सनक जे आकृति थीक ओ पानि रखबाक पात्र थीक आ ओकरे ढकनक रूपमे सातम आकृति बनाओल जाइत अछि।

विभिन्न ठामसँ एकर आरो गीत सभक संकलन अपेक्षित अछि।

मिथिलामे मेष संक्रान्तिसँ एक दिन पूर्व मासान्तक दिन एहि सातो आकृतिक स्थापना गोसाउनिक सीर पर कएल जाइत अछि। आ पुनः अगिला मासान्त कें विसर्जन होइत अछि। एहि प्रकारें ई तीन दिन धरि मनाओल जाइत अछि।

घाँटोकें पहिल दिन फुटहा, दोसर दिन सतुआ आ तेसर दिन बासि बड़ी आ पूरी चढाओल जाइत अछि।

एकर अतिरिक्त खेतमे उपजल अन्य प्रकारक आनो वस्तु सभ भोग लगैत अछि। गोसाउनिक सीर पर हिनक पूजा होइत अछि। घाँटोकें भाँटिक फूल आ बंगलाहीक फूल विशेष रूपसँ चढाओल जाइत अछि।

भाँइटक फूल

वैशाखक मासादि अर्थात् जूडशीतलक खेल दिन विसर्जन कए एकरो सामा जकाँ भाइक हाथें फोडाओल जाइत अछि आ भाइकें किछु नीक वस्तु खोआओल जाइत अछि । मान्यता छैक जे एहिसँ भाइ नीरोग रहैत छथि।

शास्त्रीय मान्यता

डा. किशोरनाथ झा अपन पुस्तक लोकवेदमे लिखैत छथि जे असलमे ई घाँटो घण्टाकर्णक अपभ्रंश थीक। घण्टाकर्ण शिवक एक पार्षद थिकाह। शिवपुराणक अनुसार

घण्टाकर्णो गणः श्रीमान् शिवस्यातीव वल्लभः।

ई घण्टाकर्ण खूब पैघ वीर छलाह आ तें हिनक पूजा करैत कामना कएल जाइत अछि जे हमरो भाइ एहने शूरवीर होथि। शीतलाक प्रकोप सँ बचबाक लेल सेहो हिनक पूजा कएल जाइत अछि।”

अनेक परम्परा आ अनेक विधान-

वस्तुतः घाँटो पूजाक एखनि धरि चारि टा परम्परा हमरा भेटल अछि। ई चारू परम्परा एक दोसरासँ तेना भिन्न अछि। कथाक स्वरूपमे कोनो बेसी अंतर नै छै। मुदा पूजाक समय, अवधि आ स्वरूपमे अंतर अछि। मिथिलामे वैशाख भरि ई पूजा होइत अछि, नेपालमे साओनमे आ बंगालमे फागुनमे। एहि स्थितिमे मिथिलाक परम्परा की थीक से एतए फुटाएब आवश्यक अछि।

सनातनक परम्परा

पहिल परम्परा सनातनक थीक। कूर्मपुराणक 16म अध्यायमे शिव आ अन्धकारसुरक युद्धक वर्णन अछि ओतए शिव द्वारा स्थापित गण सभक नाममे घण्टाकर्णक नाम अछि-

नन्दीश्वरश्च भगवान्शंभोरत्यन्तवल्लभः। 
द्वारदेशे गणाध्यक्षो यथापूर्वमतिष्ठत  १२४

एतस्मिन्नन्तरे दैत्यो ह्यन्धको नाम दुर्मतिः 
आहर्तुकामो गिरिजामाजगामाथ मन्दरम्  १२५ 

संप्राप्तमन्धकं दृष्ट्वा शङ्करः कालभैरवः 
न्यषेधयदमेयात्मा कालरूपधरो हरः  १२६ 

तयोः समभवद्युद्धं सुघोरं रोमहर्षणम् 
शूलेनोरसि तं दैत्यमाजघान वृषध्वजः  १२७ 

ततः सहस्रशो दैत्यः ससर्जान्धकसंज्ञितान् 
नन्दीश्वरादयो दैत्यैरन्धकैरभिनिर्जिताः  १२८ 

घण्टाकर्णो मेघनादश्चण्डेशश्चण्डतापनः 
विनायको मेघवाहः सोमनन्दी च वैद्युतः  १२९ 

सर्वेऽन्धकं दैत्यवरं संप्राप्यातिबलान्विताः 
युयुधुः शूलशक्त्यृष्टिगिरिकूटपरश्वधैः  १३० ।।

एहि आधार पर शिवक एक गणक पूजाक रूपमे घण्टाकर्णक पूजाक उल्लेख कृत्यचिन्तामणिमे वाचस्पति मिश्र सेहो केने छथि। कृत्यचिन्तामणि आ गुणिसर्वस्वस्वक अनुसार चैत मासमे घैलक आकृति बनाए स्वास्थ्यक कामनासँ घण्टाकर्णक पूजा संक्रान्ति दिन पसीजक फूलसँ करबाक चाही। वाचस्पतिक कृत्यचिन्तामणि आ गुणिसर्वस्वक आधार पर शब्दक्लपद्रुममे संक्रान्ति शब्दक व्याख्या करैत कहल गेल अछि।

कृत्यचिन्तामणी गुणिसर्व्वस्वे च ।
“चैत्रे मासि च सम्पूज्यो घण्टाकर्णो घटात्मकः ।
आरोग्याय स्नुहीमूलं सक्रान्त्यां तत्र कारयेत् ॥”

एतहि घण्टाकर्णक पूजाक मन्त्र सेहो देल गेल अछि-

पूजामन्त्रः ।
“घण्टाकर्ण महावीर सर्व्वव्याधिविनाशन ।
विस्फोटकभये प्राप्ते रक्ष रक्ष महाबल ! ॥”

संगहि घण्टाकर्णक परिचय दैत कहल गेल अछि जे ई भगवान् शिवक प्रिय गणाध्यक्ष थिकाह।

शिवपुराणे ।
“घण्टाकर्णो गणः श्रीमान् शिवस्यातीव वल्लभः”॥

घण्टाकर्णक शिवक गणाध्यक्ष होएबाक पुष्टि कूर्मपुराणक उपर्युक्त पंक्तिसँ सेहो होइत अछि।

डा. किशोरनाथ झा सेहो “कतहुसँ सुनल अछि” से स्पष्ट करैत कृत्यचिन्तामणिमे उक्त पूजा-मन्त्रक उल्लेख कएने छथि। हुनक मत अछि जे वैशाख मासमे कोदबा-दामस आदिक बैसी उपद्रव रहैत छैक तें ई पूजा अनुष्ठित होइत अछि। ई हिनकालोकनिक श्रुति-परम्परा थीक जे कतहु ने कतहुसँ शास्त्र-सम्मते प्रमाणित होइत अछि।

जैन परम्परामे-

घण्टाकर्णक पूजा जैन परम्परामे सेहो एकटा वीरक रूपमे होइत अछि आ हिनक प्रणाम मन्त्रक रूपमे ई मन्त्रसभ भेटैत छैक-

ॐ घण्टाकर्णो महावीर सर्व -व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते रक्ष रक्ष महाबल ।। १।।

यत्र त्वं तिष्ठसे देव लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणशयन्ति वातपित्त कफोद्भवा ।। २।।

तत्र राजभयं नास्ति यांति कर्णे जपात्ऽक्षयं ।
शाकिनी भूत वैताला राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।।

नाऽकाले मरणं तस्य न च सर्पेण दंस्यते ।
अग्निचौरभयं नास्ति, नास्ति तस्याप्यरिभयम् ।। ४।।

ॐ घण्टाकर्णो नमोस्तुऽते ठः ठः ठः स्वाहा ।।

जैन परम्परामे घण्टाकर्णक मूर्तिक स्वरूप एना भेटैत अछि-

जैन-परम्परामे घण्टाक्रणक स्वरूप

एतए पहिल मन्त्र सनातन परम्परामे सेहो अछि।

एहि सम्पूर्ण मन्त्रक अर्थ अछि जे हे घण्टाकर्ण अहाँ महान् वीर छी आ सभ प्रकारक रोग नाश केनिहार छी। फोड़ा आ कलकलि जखनि भए जाइत छैक तखनि अहाँ रक्षा करू। हे देव जतए अहाँ अक्षरक पाँती द्वारा लिखि कए राखल जाइत छी ओतए वात, पित्त आ कफसँ भेल सभटा रोग रोग नष्ट भए जाइत अछि। ओतए राजाक डर नै रहि जाइत अछि आ केवल अपना सुनबायोग्य ध्वनिसँ जप केला पर शाकिनी, भूत, वैताल आ राक्षस सभ नष्ट भए जाइत अछि। अकाल मृत्यु, सर्पदंश, आगि, चोर आ शत्रुसँ सेहो भय नै रहि जाइत अछि।

एकर साधना जैन परम्परामे खूब प्रचलित अछि आ एहि मन्त्रक आराध्यदेव घण्टाकर्णक प्रतिमा सेहो पूजित होइत अछि। जैन परम्परामे वैशाख मास अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अछि तें वैशाखमे घण्टाकर्ण साधना विशेष फलदायी कहल गेल अछि।

बंगालमे घाँटो पूजाक स्वरूप

एतए घाँटोक पूजा घेंटू ठाकुरक रूपमे होइत अछि। बंगाल क्षेत्रमे प्रचलित कथाक अनुसार घेंटू नामक एक राक्षस छल। ओकरा भगवानक नाम कखनहु नै सोहाइत रहैक, तें अपन कानमे एकटा घंटा बान्हि नेन रहए तें हुनक नाम पडि गेल घण्टाकर्ण। जतए कतहु भगवानक नाम सुनबामे अबैनि कि तुरत घंटा बजा दिअए। ओही समयमे एकटा घेंटू ठाकुर भेलाह जे ओहि घंटाकर्णसँ लोककें मुक्ति दियौलनि आ भगवानक नाम सभठाम बाजल जाए लागल।

ओहि घेंटू ठाकुरक पूजा महिला लोकनि फागुनक अंतिम दिन करैत छथि। ओहि दिन कोनो बाटक कातमे चाउर, दालि, आदि भोजन बनएबाक वस्तुक संग जमा होइत छथि आ घेंटू ठाकुरक जन्मसँ लए हुनक विवाह पर्यतक गीत गबैत छथि आ भजन-कीर्तन करैत छथि। पबनैती एकटा मन्त्र सेहो बेर बेर पढैत छथि-

घण्टाकर्ण महावीर सर्व -व्याधिविनाशन।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते रक्ष रक्ष महाबल ।।

एहि मन्त्रक अनुसार घेंटू ठाकुर कलकलि आदि सभ प्रकारक रोग-व्याधि दूर करैत छथि।

बंगालक एहि परम्पराक वर्णन करैत Folk-rituals of Eastern India पुस्तकमे Pradyot Kumar Maity लिखैत छथि-

Ghentu or Gantakarna Brats

Ghentu or Ghantakarna, who is believed to be the presiding deity of itches, is worshipped on the last day of Phalguna in many places of West Bengal, in the form of a brats ritual, organised by the womenfolk.

The reference to the worship of Ghentu occurs in the medieval Bengali texts and in the Tithitattra of Raghunandan, a Bengali Smrti writer of the sixteenth century.

According to the legend, “Ghentu was born a demon. Due to this he did not like to hear the shouts in honour of Hari (Vishnu). If the shouts in honour of Hari came to his ears, he hung bells on his ears.

For this, he is also known as Ghantakarna, meaning having bells in the ears (kart.za or /can in Bengali).

It is also believed that Ghentu Thakur will be freed from the demon world by the grace of Lord Hari if he is propitiated by observing strict religious performance by earthly people.

With this belief in mind, the womenfolk arrange the worship of Ghentu on the last day of the month of Phalguna. In the morning the womenfolk of a particular locality arrange the worship of Ghentu on the roadside.

The ingredients include rice, lentils, durva grass, a container of vermilion, a frying pan, arum plant, etc. The housewives, the maidens and young girls sing many songs in honour of Ghentu.

The birth story of Ghentu, his welcome address, marriage ceremony, etc. are related in those songs. At the end of the ceremony the bratinis utter the following:
gantakarna mahabir sarbabyadhi binasan/
bisfotak bhaye prapte raksha raksha mahabala !!

which means the deity Ghantakarna who is a curer of all diseases, especially of carbuncle, should be invoked.

बंगालमे घण्टाकर्णक पूजा एक दिनक कार्यक्रम थीक आ सेहो फागुन शुक्ल चतुर्दशीकें मानओल जाइत अछि अर्थात् फगुआक एक दिन पहिने ई आयोजित होइत अछि। 

Essays and Lectures Chiefly on the Religion of the Hindus नामक पुस्तकमे H. H Wilson लिखने छथि।

हुनक ई लेख 1848 ई.मे एसियाटिक सोसायटीक शोधपत्रमे प्रकाशित भए चुकल अछि।

GHANTA-KARNA PUJA.— Twenty-ninth solar Phdlguna; fourteenth day, light half (14th March). This is also a minor festival, and apparently confined to Bengal. Ghanta-karna, one of Siva’s ganas, or attendants, is to be worshipped under the type of a water jar: the object of the rite is expressed in this prayer, which accompanies the presentation of fruits and flowers to the jar: “ Oh Ghanta-karna! healer of diseases, do thou preserve me from the fear of cutaneous affections*.” Ghanta-karna is described in the Siva Purana as endowed with great personal beauty, and is, therefore, reputed to sympathise with those who suffer any disfigurement. In Hindustan there are directions for worshipping Mahes’wara, or Siva himself on the fourteenth of the light half of Phalguna.

H. H Wilson बंगालक प्रख्यात धर्मशास्त्री रघुनन्दन भट्टाचार्यक ग्रन्थ स्मृतितत्त्वक प्रथम खण्ड तिथितत्त्व सँ उद्धृत कएने छथि-

नेपालमे घण्टाकर्णक पूजा

नेपालमे घण्टाकर्ण-चतुर्दशीक आयोजन होइत अछि।

एतए एक कथा प्रचलित अछि जे एकटा राक्षस छल। ओकरा भगवानक नाम नै सोहाइत छलैक ओ अपन कानमे घंटा लटकौने रहैत छल आ भगवानक नाम नेनिहारकें उपद्रव करैत छल। एहि राक्षससँ लोकसभ हकन्न कानए। जेम्हरे भगवानक नाम लैत सुनए ओ ओम्हरे दौड़ि जाए। मुदा जखनि भदबारि एल आ चारूकात बेंग टर्र-टर्र करए लागल तँ घंटाकर्ण कें भेलैक जे ई बेंगसभ हमरा खिसिया रहल अछि। ओ बेंगकें मारबाक लेल दौडए लागल। आ थाल-पानिमे पैसए लागल। एक ठाम ततेक बेसी पाँक रहैक जे ओहीमे ओ घण्टाकर्ण पँसि गेल आ डुबैत चल गेल। एहि प्रकारें साओन मासमे बेंग घण्टाकर्णक आतंकसँ लोककें मुक्ति दियौलक।

History of Nepal (1877 A.D.) मे Daniel Wright लिखैत छथि जे

नेपालमे गढियामोगल नामक एकटा पर्व मनाओल जाइत अछि जे साओन मासक चतुर्दशीकें होइत अछि। एहिमे खढ़-पातसँ घण्टाकर्णक बओना बनाओल जाइत अछि आ घियापुता सभ ओहि बओनाकें डेंगबैत आ माटि पर घसिटैत गामसँ दूर लए जाइत अछि। ओ छओडा सभ लोकसँ पाइ मँगैत अछि। अवधारणा छैक जे एहिसँ घण्टाकर्ण नामक राक्षस गाम छोडि चल जाएत। साँझमे ओहि बओनाकें डाहि देल जाइत अछि।

एहि सभ तथ्यके देखलाक बाद स्पष्ट होइत अछि जे मिथिलाक घाँटोपूजा एहि सभ परम्परासँ भिन्न अछि।

  • पहिल बात जे मिथिलामे ई एक मासक पूजा होइत अछि
  • मिथिलामे वैशाख मासमे होइत अछि, जखनि कि बंगालमे फागुन शुक्ल चतुर्दशीकें आ नेपालमे साओन शुक्ल चतुर्दशीकें।
  • मिथिलामे माँटिक डमरूक आकारक पाँच टा घाँटो बनाए पूजल जाइत अछि।

एहि प्रकारें मिथिलाक घाँटो-पूजा पृथक् अछि। बंगालक परम्परासँ एतेक आदान अवश्य भेल अछि जे बंगलामे भाँइटक फूलक नाम थीक- घेंटू। बंगालक घेंटूक नामक असरि भेलैक जे मिथिलामे एहि फूलसँ पूजा होमय लागल।

मिथिलाक घाँटोपूजा आ जैन-परम्पराक बीच सम्बन्ध

मिथिला अदौसँ जैन-परम्पराक दिस बेसी झुकल रहल अछि। एहि घाँटो-पूजामे सेहो जैनक प्रभाव प्रतीत होइत अछि।

पहिल विचार घाँटोक मूर्तिक आकृतिसँ सम्बन्धित अछि। एतए जैं-परम्परामे पूजित घण्टाकर्णक स्वरूप, ओकर आकृति आ मिथिलामे पूजित घाँटोक आकृतिक बीच तुलना कएल जा सकैत छैक। एहिसँ निष्कर्ष निकालि सकैत छी जे मूल मूर्तिक स्वरूप मिथिलाक घाँटोक रूपमे आबि गेल अछि।

एहि आकृतिमे दूनू टा पयर पसारल अछि आ हाथमे धनुष तानल रहबाक कारणें दूनू हाथक अंश सेहो फैल अछि। माने नीचाँ आ ऊपर कार आ बीचमे डाँड़ वला भाग पातर अछि।

यैह मूर्ति मिथिलामे पारम्परिक रूपसँ माँटिक बनाओल जाइत अछि जेकर आकृति डमरू जकाँ भए जाइत छैक।
तें कहल जा सकैत अछि जे मिथिलाक घाँटो-पूजा जैन-परम्पराक थीक आ ई मिथिलामे जैनक प्रभाव कें स्पष्ट करैत अछि। वैशाख मासमे महावीरक जन्म भेल अछि तें ओही मासमे घण्टाकर्णक साधना विशेष फलदायी होएत एहि बुद्धिसँ ई पाबनि संक्रान्तिक हिसाबसँ बैशाखमे होइत छैक।
एहि प्रकारें मिथिलामे प्रचलित घाँटोक पूजा जैनधर्मक घण्टाकर्णक पूजा थीक।

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