मिथिलामे शकारादि- शारदा-शतनामस्तोत्रक परम्परा रहलैक अछि।

पाण्डुलिपि अन्वेषणक क्रममे एहि पंक्तिक लेखक कें एकर अनेक प्रति विभिन्न ठामसँ भेटल छनि । हमरा गाम हटाढ रुपौलीमे हमर उपरक पीढीक कमसँ कम दू व्यक्ति छलाह जे प्रतिदिन स्नान कएलाक बाद एकर पाठ करैत रहथि।

एक व्यक्ति छलाह हमरा पिता प. अमरनाथ झा आ दोसर रहथि प. दामोदर झा। एही दूनू गोटेक मुँहें सूनि ई शकारादि – शारदा- शतनाम हमरा कंठस्थ भेल अछि।

बादमे जमुथरि गामक पं. भवनाथ मिश्रक हाथक लिखल एकटा पाण्डुलिपि सेहो हमरा घरमे छल, जकर पुष्पिकामे लिखल छैक जे ई शकारादिशतनाम पं. भवनाथ मिश्र अपना हाथें लीखि ललितनाथ झा कें पाठ करबाक लेल देलनि। पं. ललितनाथ झा अपन कालक नव्यन्यायक प्रसिद्ध अध्यापक हमर पित्ती रहथि।

सम्प्रति ई पाण्डुलिपि पं. मतिनाथ मिश्रक पुत्र सभक अधिकारमे अछि। एहि पाण्डुलिपिक उपयोग कए एतए सभक उपयोगक लेल पाठ देल जा रहल अछि।)

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Sarasvati-rahasyopanishat
Saraswati Puja

नमः श्रीशारदादेव्यै।।

ईश्वर उवाच

नमामि शारदां देवीं शुद्धतत्त्वस्वरूपिणीम्।

शतनाम प्रवक्ष्यामि सद्यःसिद्धिकरं नृणाम्।।1।।

श्रीशंकरीं शकलचन्द्रविभूषणाढ्यां

शार्दूलचर्मवसनां शशिशेखरान्ताम्।

शक्रध्वजां शरणपालिनिशब्दरूपां

शर्वेश्वरीं शिवरतां शितिकण्ठपूज्याम्।।2।।

शापानुग्रहकारिणीं शशिनिभां शालेश्वरीं शारदां

शालूकप्रियतोषिणीं शिशुरतां शाक्तप्रियां शीतलाम्।

शिल्पज्ञां शिखिनृत्यमोदरुचिरां शिष्यां शिलाकन्दरां

शुभ्रां शुभ्रविलेपनीं शुचिमतीं शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्।।3।।

शान्तां शान्तिविवर्द्धिनीं शशिकलां शुक्लाम्बराह्लादिनीं

शीलां शीतकनाशिनीं शशिनिभां शंख्यां च शक्तिप्रदाम्।

शंखाभां शुचिज्ञानदां च शरणां श्यामां च शाकप्रियां

शक्रानन्दविवर्द्धिनीं शुभकरीं शाकम्भरीं शाल्मलीं।।4।।

शाकुन्ताधिपगामिनीं श्रुतवतीं शैलेश्वरीं शेखरां

शव्यां शंखनिनादमोदरुचिरां शास्त्रनुगां शालिनीम्।

शालग्रामकृतालयां शशिमुखीं शुक्रार्चितां शान्तिदां

शास्त्रज्ञां शतरूपिणीं श्रुतिमतीं शत्यां च शाक्तप्रदाम्।।5।।

शर्वाणीं शिखिवाहिनीं शृणिधरां श्यामार्चितां शंखिनीं

शुश्रूषां शितिकण्ठपूजनपरां शान्तस्वरूपां शुकाम्।

शाटीभूषणभूषितां शरणदां शापोपहन्त्रीं परां

शुद्धां शारदचन्द्रकान्तिनिवहां श्रीबीजतत्त्वात्मिकाम्।।6।।

शिरीषवनवासिनीं शिशिरनाशिनीं शाम्भवीं

शचीपतिपदार्चितां शिविरवासिनीं शर्वरीम्।

शनैश्चरनुतां सदा शलभरूपिणीं शिल्पिनीं

शिखीवनविनोदिनीं शिखरवासिनीं शम्बरीम्।।7।।

शरभेश्वरपूजितां सदा शतपुष्पां शतपत्रवासिनीम्।

शरचापविभूषणां सदा ‘शरजू’तीरनिवासिनीं शयाम्।।8।।

शक्रार्चितां शक्तिरतां शीघ्रबुद्धिविवर्द्धिनीम्।

शुभ्रवस्त्रपरीधानां शुभ्रपुष्पार्चितां शुभाम्।।9।।

इति शकारादिशतनामस्तोत्रम् सम्पूर्णम्

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