हनुमानजी का जन्मस्थान कहाँ था?
हनुमानजी के जन्मस्थान के सम्बन्ध में वर्तमान झारखण्ड के गुमला जिला का दावा भी आधारहीन नहीं है। यहाँ आज भी सहस्र वर्षों से श्रीराम के अनुयायी बजरंग, हनुमान, पवन के गोत्र (टोटम) जाति वनवासीContinue Reading
हनुमानजी के जन्मस्थान के सम्बन्ध में वर्तमान झारखण्ड के गुमला जिला का दावा भी आधारहीन नहीं है। यहाँ आज भी सहस्र वर्षों से श्रीराम के अनुयायी बजरंग, हनुमान, पवन के गोत्र (टोटम) जाति वनवासीContinue Reading
इस प्रकार, वास्तविकता है कि शिवलिंग के निर्माण की विधि का भी एक शास्त्र है। अतः हम जिस-किसी भी स्तम्भ को शिवलिंग नहीं कह सकते हैं।Continue Reading
कोना पोथी तैयार कएलाक बाद जँ ओ इतिहास विषयसँ सम्बद्ध रहैत अछि अथवा कोनो ज्ञान पाठ्य रहैत अछि तँ ओहि पोथीक शब्द-सूची बनाएब आवश्यक रहैत छै। ओ सूची पोथीक अंतमे देल रहैत अछि जाहिमे ई उल्लेख रहेत छै जे फलाँ शब्द एहि पोथीक अमुक पृष्ठ पर अछि। पुस्तक सूचीक आदर्श रूप एतए देखि सकैत छी-Continue Reading
प्रोफेसर रामाज्ञा शशिधर बीएचयू में हिन्दी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। मधुबनी से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र मैथिल पुनर्जागरण प्रकाश के सम्पादकीय…. Prof. Ramagya Shashidhar हिन्दी के प्रसिद्ध व्यङ्ग्यकार हरिशंकर परसाई ने ठीक ही कहा है- “हममें से अधिकांश ने अपनी लेखनी को रंडी बना दिया है, जो पैसों केContinue Reading
Mapping Mithila in South Asia
Aripana (अरिपन), An Anthology of Research Articles on Mithila edited by Savita Jha KhanContinue Reading
-“तँ की महाराजसँ कहि भकसी झोंकबाक मरबा देब आ कि हमर गुरुए जकाँ पहाड़परसँ धकेलि देब।” मण्डन मिश्र बजलाह।
-“अहाँ अइयो वैदिक धर्मक पताका कन्हेठने संघारामक साधनाक विरोध कए रहल छी। हमरा अहाँक सभटा क्रिया-कलापक सूचना अछि। अहाँ सनक विद्वानकेँ एतेक छोट दण्ड नै भेटबाक चाही वैदिकप्रवर!’ श्रमण महाराजहि जकाँ आदेश-स्वरमे बजलाह। लंकामे जे सबसँ छोट सेहो उनचास हाथ!Continue Reading
हम भारत माता की संतान हैं। हम सिन्धु नदी के किनारे से चलकर पूरे भारत में फैले हुए हैं, तो हम सिन्धु से फैले सिन्दु हैं, हिन्दु हैं। हमारे हिन्दुत्व की व्याख्या हमारी ही धरती और पानी से हो सकती है। आरम्भ से लेकर आजतक हमें एक-दूसरे से जोड़कर रखने के लिए हमारे पूर्वजों ने बहुत प्रयास किया है। जबतक हम उन सभी प्रयासों को एक जगह तलहत्थी पर रखे आँवले की तरह नहीं देख पायेंगे हम हिन्दुत्व को पहचानने में भयंकर भूलकर बैंठेंगे।Continue Reading
1815ई. में वह अंगरेज दरभंगा पहुँचा। उसने राजा महाराजा छत्रसिंह के साथ बातचीत में कहा कि आपके राज्य में खूब “कोंआ” है, मुझे चाहिए।Continue Reading
प्रत्येक 32000 अक्षरों के लिए एक रुपया यानी बारह आना. इस दर से महाभारत की कीमत साठ रुपये। रामायण की कीमत चौबीस रुपये, श्रीमदभागवत की अठारह और अन्य पुस्तकों के आकार के हिसाब से कीमत चुकानी पड़ती है. जिस कागज़ से पुस्तकों की प्रति लिपियाँ तैयार की जाती हैं उन्हें तुलात कहा जाता है. कीटाणुओं से बचाव के लिए इनमें एक ख़ास रंग का उपयोग किया जाता है जो पीले रसायन और इमली के रस से तैयार किया जाता है.Continue Reading
संस्कृत के जिन शब्दरूपों को अभ्यास के लिए दिया जा चुका है उनमें आपने 21 या 24 शब्द देखे होंगे। वे क्रमशः संख्या में इसी प्रकार हैं। जिन शब्दों के संबोधन नहीं होते हैं उनके 21 रूप ही होते हैं। उनके अर्थ इसी प्रकार जानना चाहिए।Continue Reading
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