अरिपनक आवश्यकता

हमरालोकनि सभ केओ जनैत छी जे कोनो पूजामे मुख्य देवताक आवाहन एसकर नै होइत छनि। हुनक आवाहन अङ्ग देवता, अस्त्र-शस्त्र, वाहन एवं परिवारक संग होइत अछि। तें मन्त्रमे कहल जाइत अछि- साङ्गसायुधसवाहनसपरिवार।

एहि प्रकारें हुनक स्थानक चारूकात घेरि कए हुनक अंगदेवता अप्रत्यक्ष रूपमे अपन-अपन निर्धारित स्थान पर अपनहिं स्थापित भए जाइत छथि आ मुख्यदेवताक आवरण रूपमे चारूकात रहैत छथि। सभ अस्त्र-शस्त्र, परिवार देवता, परिजन, परिकर, वाहन सभक स्थान निर्धारित छैक, सभक संख्या सेहो प्रत्येक देवताक लेल निर्धारित छनि। एही कारणें पूजाक पटल (यन्त्र माने अरिपन) देल जाइत अछि।

अरिपनक स्वरूप

शास्त्रीय यन्त्रक कर्णिका, केशर, दल आ भूपुर ई चारि टा अंग होइत अछि। एकर अतिरिक्त मण्डल मे ई विभाजित रहैत अछि।
मिथिलाक अरिपन मूल रूपसँ यैह शास्त्रीय यन्त्र थीक, जाहिमे आब भूपुरक रेखांकन समाप्त भए चुकल अछि, मुदा एखनहुँ कर्णिका, केशर आ दल प्रत्यक्ष विद्यमान अछि। एहि तीनू टाक शुद्धता पर आइयो ध्यान राखब आवश्यक।
एतय शुद्धताक अर्थ ई जे कमसँ कम संख्याक पालन कएल जाए। टेढ-सोझ भए सकैत अछि, मुदा कर्णिकाक स्वरूप, केसरक संख्या आ दलक संख्या मे परिवर्तन नै होएबाक चाही। कारण जे मुख्यदेवताक परिजन आ परिकरक संख्या जखनि निर्धारित अछि तखनि ओहिमे कमी-बेशी कोनो प्रकारें उचित नै।
मिथिलामे देवीक पूजामे षट्दल आ पुरुषदेवताक पूजामे अष्टदलक प्रचलन अछि।
तैं सत्यनारायण भगवानक पूजामे अष्टदल देल जाइत अछि। एतबे नहिँ, महादेवक विशेष पूजामे, जेना रुद्राभिषेक आदि मे सेहो अष्टदलक निर्माण होएबाक चाही। एकर परम्परा मिथिलामे रहल अछि। गौरीशंकर, जमुथरिक महादेव आ हाजीपुरक गौरीशंकर आ आनोठाम महादेवक स्थापना अष्टदल पर भेल अछि। जँ घरोमे रुद्राभिषेक आदि विशेष पूजामे एकर व्यवहार कएल जाए तँ उत्तम।

अष्टदलक निर्माणक प्रथम चरणमे एकर कर्णिका सेहो आठकोण वला होएबाक चाही। एकर निर्माण विधि एना अछि। सभसँ पहिने चित्रानुसार एहन आकृति बनाबीः-

एकर बाद कर्णिका कें अष्टकोणीय बनबैत एक रेखा कें दोसरसँ मिलाबी जाहिसँ एहन आकृति बनि जाएत।

एकर बाद एकटा वृत्त बनाबी। एकरा लेल एक विन्दुसँ दोसर विन्दु कें मिलौला सँ बनि एना बनि जाएत।

तकर बाहर आठ टा दल बनाबी।

आब अरिपनक रेखांकन भए गेल। एहिमे कलाकारी भेल जे बीचक कर्णिका एहि प्रकारक देखाए।

अष्टदलमे अष्टकोणीय आ षट्दलमे षट्कोणक कर्णिका अनिवार्य अछि।
आब ध्यानसँ देखू जे कर्णिकाक बाहर दू चक्रमे आठ टा कें त्रिभुज बनि गेल अछि। ई दूनू आवरण थीक। एकरे केशर कहल जाइत अछि। दू आवरणमे केशर रहबाक चाही। तखनि ने भगवानक परिवार देवता आ परिजन देवताक लेल स्थान बनत। एको टा आवरण जँ छुटि जाएत तँ ओएह अशुद्धि भेल।
एकर बाद दू टा केशरक बीच जे स्थान अछि ओहिमे भगवानक अस्त्र-शस्त्र आ हुनक धारण करबाक वस्तु सभ लिखल जाएत। एकर अनेक परम्परा अछि। एतहि आबि अरिपन मे अंतर भए सकैत छैक। प्रत्येक देवताक लेल अलग अलग वस्तु रहैत अछि। एहिमे ध्यान राखी जे कोनो घर छुटए नै।
एहि प्रकारें शुद्धतापूर्वक अरिपन बनाबी। ई अरिपन देवताक संग हुनक अंगदेवता सभक स्थान होइत छनि।

एकटा दलक रेखांकन

पूजा करबाक लेल जे अरिपन देल जाएत ओहि मे कर्णिका पर दू टा पयर रहत। एहि दूनू पयरक अंगुरी सभ पूजा केनिहारक दिस रहबाक चाही। तखनि सम्मुख पूजा होएतैक। कल्पना करी जे भगवान् आगाँमे ठाढ छथि। तखनि हुनक पयरक अंगुरी पूजा केनिहार दिस रहबाक चाही।

एतए अष्टदल कमलक मूल वस्तु देखाओल गेल अछि। एकर आठो टा दल पर शंख, चक्र, तरुआरि, गदा, कमलक फूल, डमरू, स्वस्तिक आ धनुषक अंकन होइत छैक। मुदा ई चिह्न कौलिक परम्परानुसार बदलैत अछि। तें कोन कोन चिह्न दल पर देल जेतैक से घरक बूढ-पुरान लोकसँ जनबाक प्रयास करी। परम्परा कें सुरक्षित राखी।

प्राचीन कालमे एहि सभ दल पर मातृकावर्ण लिखल जाइत छल, मुदा आब ओ परम्परा समाप्त भए गेल अछि। शास्त्रीय ग्रन्थ सभमे आ स्थापित मूर्ति सभमे ई भेटैत अछि। जेना गौरीशंकरमे आठो टा दल पर अ सँ ह धरि अक्षर लिखल अछि।

पहिने मिथिलाक महिला एतेक पढलि-लिखलि रहथि जे अपनहिं सँ विधानपूर्वक यन्त्र बना लैत छलीह, मुदा बीचमे ई परम्परा विलुप्त भए गेल अछि। प्रसन्नताक विषय जे आब महिलालोकनि नीक पढल-लिखल छथि। हुनकासँ आशा जे परम्पराकें फेरसँ जगाबथि। कलाकारीक नाम पर एकर मूल रूपकें दूरि करबाक प्रवृत्ति उचित नै।

मिथिलामे गोसाउनिक सीर पर जे आरतक पात साटल जाइत अछि ओहि पर पहिने यन्त्र लिखल जाइत छल आ यन्त्रपूजाक विधान आ परम्परा छलैक। एहिना छठिक अर्घौती पर सेहो सूर्यक यन्त्र लिखाइत छल हैत से कल्पना कए सकैत छी। मुदा आब केवल कागज बचि गेल अछि। इहो जनबाक चाही जे पहिने तूरसँ कागज बनाओल जाइत छल। ओकरे घसाएल रूप आधुनिक आरतक पात थीक।

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