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सनातन धर्म पर उँगली उठाकर उसे बरबाद करने का एजेंडा चलाने वाले लोगों को भड़काते रहते हैं कि सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं, एक-एक अच्छत से से पूजा करें तों क्विंटल भर चावल लग जायेंगे…देश की जनता जहाँ भूखी है…वहाँ एक आदमी एक क्विंटल चावल एक बार कीContinue Reading

सतीप्रथा

हमें पढ़ाया जाता है कि भारत में सतीप्रथा थी। पति की मृत्यु होने पर विधवा पत्नी को जिन्दा जला दिया  जाता था। इसे एक प्रचलित प्रथा कहकर अंगरेजों ने इसके लिए भारतीय धर्मशास्त्र को दोषी ठहराया और उसके उन्मूलन के लिए मुहिम चलायी। इस प्रकार, उन्होंने भारतीय धर्मशास्त्र में अमानवीयContinue Reading

भारतीय अवधारणा है कि हमारे पूर्वज हमारी सभी क्रिया-कलापों को देखते हैं। वे समय-समय पर हमें आशीर्वाद देते हैं, हमारी गलतियों पर कुपित भी होते हैं। उन्हें प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए हम प्रतिदिन उन्हें जल अर्पित करते हैं अथवा कम से कम पितृपक्ष में जल देते हैं। उनकी कृपा से हमारी उन्नति होती है।Continue Reading

sankar suvan

हनुमान चालीसा में ‘संकर सुवन केसरी नंदन’ पंक्ति में सुवन शब्द के अर्थ को लेकर भी भ्रान्तियाँ फैल रही है।
सुवन/सुअन शब्द का अर्थ होता है- पुत्र यानी बेटा।
तुलसीदासजी ने इस शब्द का प्रयोग कहाँ कहाँ किया है, यह देखना चाहिए-Continue Reading

वैताल-साधना

वैताल साधना सीखने के लिए बौद्धों को पूछें। हर आदमी चाहता है कि वह इतना शक्तिशाली बन जाये ताकि वह जो चाहे, उसे मिले। यही प्रवृत्ति इसे पतन के गर्त तक ले जाती है। इसीके लिए तंत्र-मंत्र, जादू-टोना सब काम करने पर वह उतारू हो जाता है। वह इस दुनियाँContinue Reading

Dayananda's merits

आर्य समाज की मान्यता में दाह संस्कार के बाद श्राद्ध होता ही नहीं है। दयानंद की मान्यता है कि दाह-संस्कार से पूर्व चिता पर वैदिक मंत्रों से हवन कीजिए औऱ फिर आग में लाश को जला दीजिए फिर आपको जिन्दगी भर कुछ करने की जरूरत नहीं है। आर्य समाज का सिद्धान्त है कि जीवित अवस्था में ही माता-पिता एवं समाज के विद्वान् व्यक्ति पितर कहलाते हैं, उऩकी श्रद्धापूर्वक सेवा करना ही श्राद्ध है।Continue Reading

Sanatana religion

Under this Sanatan Dharma, Vedas, Vedanga, Smriti, Agam, Purana, religious literature written in all folk languages and all the texts created in Sanskrit come together, which has had an effect on Indian society. In the following articles, we will see how the same principles have been originally formulated throughout this vast tradition.Continue Reading

बी.एच.यू की स्थापना

वाराणसी-विद्यापरिषद् की योजनाको स्वर्गीय महाराजाधिराज रमेश्वरसिंह बहादुरने स्वयं अपने दस्तखतोंसे उपस्थित किया था। भारत-गवर्नमेन्टने इन तीनों योजनाओंके पेश होनेपर यह मत प्रकट किया कि, तीनों जबतक एकमत होकर हमारे सम्मुख नहीं आयेंगे, तबतक विश्वविद्यालयकी राजाज्ञा नहीं दी जायेगी। Continue Reading

होएत। एतए पंचमी विभक्ति मानि सीताकेँ मेनकाक पुत्री सिद्ध करबाक लेल जे कथा प्रचलनमे अछि से आदरणीय नहि। सीतायाः सदृशी भार्या त्रयमेकत्र दुर्लभम् मे सेहो सीताक समान भार्याक बात कहल गेल अछि। तें उपर्युक्त पंक्ति “प्राप्स्यस्यपत्यमस्यास्त्वं सदृशं रूपवर्चसा” मे अस्या शब्दमे पंचमी विभक्ति मानि सीताकेँ मेनकाक संतान मानब अनुचित अछि। तेँ एतए सादृश्यमे षष्ठी विभक्ति मानल जाएत। Continue Reading

Gandhi in Mithila

मुदा गाँधीजी एहेन परिस्थितिमे उत्तर बिहारक यात्रा कएलनि। अपेक्षा छल जे एहि ठामक जनताक सहायताक लेल ओ किछु ठोस काज करितथि। मुदा स्थिति एकर विपरीत रहल।
ओ बिहारक अनेक स्थान पर घुमलाह, भाषण देलनि, चंदा एकत्र कएलनि। आरम्भमे घोषणा कएलनि जे जे किछु जमा होएत तकर आधा भूकम्प राहत कार्यक लेल लगाओल जाएत आ आधा हरिजन मदमे देल जाएत। मुदा अपन घोषणाक विपरीत जखनि 8,833 रुपया जमा भेल तँ 4,000 रुपया हरिजन फंडमे देलनि।Continue Reading