misunderstanding about jiutiya vrat

भ्रान्ति तब आरम्भ हुई जब इसी जिताष्टमी या जीमूताष्टमी के साथ राधाकान्त देव ने लक्ष्मीव्रत का उल्लेख कर दिया।
लक्ष्मीव्रत के लिए ‘निर्णयामृतसिन्धु’ से उद्धरण दिया कि अष्टमी के चन्द्रोदय का समय यानी अर्धराति में यदि अष्टमी हो तो लक्ष्मीव्रत होगा और यदि सूर्योदय के समय अष्टमी रहे तो वह लक्ष्मी जीवित्पुत्रिका हो जाती है।
जो पण्डित धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों की भाषा और शैली नहीं जानते थे उन्हें अब यहाँ भ्रान्ति उत्पन्न हुई। उन्होंने ‘जीवित्पुत्रिका’ शब्द देखकर इसे जीमूतवाहन-व्रत समझ लिया। नामसाम्य के कारण ऐसा भ्रम उत्पन्न हुआ होगा।Continue Reading

मातृनवमी

अन्वष्टका श्राद्ध में माताओं का स्थान प्रथम दिया गया है। यही मातृनवमी का शास्त्रीय पक्ष है। Continue Reading

एक विकल्प है- सनातन धर्म की अवधारणाएँ। वे अवधारणाएँ, जो वसुधैव कुटुम्बकम्, का उद्घोष करती हैं क्या वे क्या हमें फिर हमारे अकेलेपन को दूर नहीं कर सकती हैं! सनातन धर्म में कोई अकेला नहीं होता- निर्जन रेगिस्तान में भी उसके साथ देवता होते हैं, पितर होते हैं। देवता-पितर के बल पर वह हमेशा सदल-बल होता है, उसमें हिम्मत होती है, अकेले में भी वह भीड़ में होता है, ऐसी भीड़ में जहाँ उसके सारे के सारे रक्षक होते हैं। Continue Reading

भारतीय अवधारणा है कि हमारे पूर्वज हमारी सभी क्रिया-कलापों को देखते हैं। वे समय-समय पर हमें आशीर्वाद देते हैं, हमारी गलतियों पर कुपित भी होते हैं। उन्हें प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए हम प्रतिदिन उन्हें जल अर्पित करते हैं अथवा कम से कम पितृपक्ष में जल देते हैं। उनकी कृपा से हमारी उन्नति होती है।Continue Reading

sama-chakeba ki kahani

लेखिका – श्रीमती रंजू मिश्रा द्वारा, श्री बी.के. झा, प्लॉट सं. 270, महामना पुरी कालोनी, बी.एच. यू., वाराणसी धर्मायण, महावीर मन्दिर, पटना, 2022ई. अंक संख्या 125, पृ. 62-70 सम्पादक पं. भवनाथ झा की टिप्पणी : सामा-चकेबा मिथिला का लोकपर्व है। इसकी मूल-कथा कृष्ण, उनकी पुत्री साम्बा, पुत्र साम्ब, उनका एकContinue Reading

मगध में कब से होती है सूर्य पूजा

मित्रमिश्र संकलित धर्मशास्त्रीय ग्रन्थ वीरमित्रोदय के पूजा प्रकाश नामक चौथे खण्ड में भगवान् आदित्य की उपासना का प्राचीन विधान संकलित किया है। इसमें एक विशिष्ट स्तुति मिली है। आप सभी छठ पूजा के अवसर पर इसका पाठ कर लाभ उठायें-Continue Reading

Bhaiya dooj and godhana in Bhojpuri culture

भोजपुरी-संस्कृति फूहड़ नहीं, सनातन की कोमलता और मानवीयता से भरी-पूरी है- ‘धर्मायण’ पत्रिका, महावीर मन्दिर, पटना प्रकाशन
आज भले हम भोजपुरी गीतों में अश्लीलता और फूहड़पन पाते हैं, पर यहाँ की मूल धारा कहीं से भी फूहड़ नहीं। सनातन संस्कृति की वहीं धारा यहाँ भी आज विभिन्न पर्वों और त्योहारों के अवसर पर हम देखते हैं। भैया-दूज की ही परम्परा लें तो हमें भाव-विह्वल कर देने वाली संस्कृति यहाँ देखने को मिलती है।Continue Reading

Bharaditiya mithila men

दशपात पुरैन पर किसी पवित्र धातु या फिर मिट्टी का कोइ गहरा पात्र रखती हैं। उस पात्र में कुम्हरे का फूल, पान, सुपाड़ी, हर्रे, मखाना और साथ में चांदी का सिक्का रखती हैं। पीठार और सिंदूर की डिब्बी, जलपात्र, धूप-दीप भी रखा जाता है। भाई उस पीढे पर अपनी अंजलि को पात्र के उपर करके बैठता है। बहन उसे सिंदूर-पिठार से टीका लगाती हैं। अंजुरी के दोनों तलहथी में भी सिंदूर पिठार लगाती हैं, फिर जितना कुछ उस पात्र में सामग्री रखा रहता है, सब कुछ उठाकर पहले उसके अंजुरी में भर देती हैं फिर जल के द्वारा हाथ से उसे उसी पात्र में गिरा देती हैं। यह क्रम तीन बार किया जाता है। इस विधान को करते हुए बहने अपने भाई के आयुवृद्धि के लिए या तो संस्कृत का या फिर लोकमंत्र को पढते हुए निभाती हैं–Continue Reading

मगध में कब से होती है सूर्य पूजा

शाकद्वीप से जो 18 ब्राह्मण लाये गये थे उनके नाम साम्बपुराण में मिलते हैं- मिहिरांशु, शुभांशु, सुधर्मा, सुमति, वसु, श्रुतकीर्ति, श्रुतायु, भरद्वाज, पराशर, कौण्डिन्य, कश्यप, गर्ग, भृगु, भव्यमति, नल, सूर्यदत्त, अर्कदत्त, और कौशिक।Continue Reading

jiutiya vrat 2022

इस प्रकार, यह सिद्ध है कि जीवित्पुत्रिका व्रत की मूल परम्परा मैथिलों की है। मैथिलेतर यदि इस व्रत को करते हैं तो उन्हें मिथिला की परम्परा माननी चाहिए। लेकिन केवल भिन्नता दिखाने के लिए इस प्रकार की अव्यवस्था फैलने से हमारे व्रतों-पर्वों की परम्परा की हानि होगी, यह बात हम सबको समझनी चाहिए। सिद्धान्त रूप में हमें चाहिए कि जहाँ का व्रत हम करते हैं वहाँ की जो अपनी मूल परम्परा है, उसका अनुसरण करें। अतः सभी श्रद्धालुओं को दिनांक 17 को जीमूतवाहन व्रत करना चाहिए।Continue Reading