misunderstanding about jiutiya vrat

भ्रान्ति तब आरम्भ हुई जब इसी जिताष्टमी या जीमूताष्टमी के साथ राधाकान्त देव ने लक्ष्मीव्रत का उल्लेख कर दिया।
लक्ष्मीव्रत के लिए ‘निर्णयामृतसिन्धु’ से उद्धरण दिया कि अष्टमी के चन्द्रोदय का समय यानी अर्धराति में यदि अष्टमी हो तो लक्ष्मीव्रत होगा और यदि सूर्योदय के समय अष्टमी रहे तो वह लक्ष्मी जीवित्पुत्रिका हो जाती है।
जो पण्डित धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों की भाषा और शैली नहीं जानते थे उन्हें अब यहाँ भ्रान्ति उत्पन्न हुई। उन्होंने ‘जीवित्पुत्रिका’ शब्द देखकर इसे जीमूतवाहन-व्रत समझ लिया। नामसाम्य के कारण ऐसा भ्रम उत्पन्न हुआ होगा।Continue Reading

parva nirnay

दरभंगा में 1932 ई. में तत्कालीन स्थापित पण्डितों का योगदान मिथिला की धर्मशास्त्र-परम्परा में अविस्मरणीय है। उस समय के प्रख्यात ज्योतिषी पं. कुशेश्वर शर्मा, जिन्होंने 1921 ई. से 1931 ई. तक मिथिलादेशीय पंचांग का भी निर्माण किया था, पर्वों के निर्णय के लिए उस समय के विख्यात धर्मशास्त्रियों का आह्वान किया और एक एक पर्व पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर प्रमाण के साथ अपना मन्तव्य देने का अनुरोध किया। इसके अन्तर्गत कुल 83 पर्वो पर निवन्ध आये, जिनमें कुछ विषयों पर दो दो विद्वानों ने पृथक् पृथक् अपना निर्णय लिखा।Continue Reading

एक विकल्प है- सनातन धर्म की अवधारणाएँ। वे अवधारणाएँ, जो वसुधैव कुटुम्बकम्, का उद्घोष करती हैं क्या वे क्या हमें फिर हमारे अकेलेपन को दूर नहीं कर सकती हैं! सनातन धर्म में कोई अकेला नहीं होता- निर्जन रेगिस्तान में भी उसके साथ देवता होते हैं, पितर होते हैं। देवता-पितर के बल पर वह हमेशा सदल-बल होता है, उसमें हिम्मत होती है, अकेले में भी वह भीड़ में होता है, ऐसी भीड़ में जहाँ उसके सारे के सारे रक्षक होते हैं। Continue Reading

manuscript from Mithila

गोनू झाक व्यक्तित्व आ ओकर स्रोत मिथिलामे पंजी अछि। एहि पंजीमे 1. अपन नाम, 2. पिताक नाम 3. मूल गामक नाम, 4. प्रव्रजित गामक नाम, 5. मातामहक नाम, 6. मातामहक मूल गाम आ 7. प्रव्रजित गामक नाम, 8. मायक मातामहक नाम, 9. हुनक मूल गाम आ 10. प्रव्रजित गामक नामContinue Reading

धूर्तराज गोनू कर्णाट शासनक कालक ऐतिहासिक पुरुष छलाह म.म. परमेश्वर झा हिनक काल देवसिंहक समयमे मानैत छथि। मिथिलातत्त्वविमर्शमे ओ लिखैत छथि जे महाराज भवसिंह जखनि छत्तीस वर्ष राज्य कए वाग्वतीक कातमे अपन शरीर त्याग कएल ओही आसन्नकालमे धूर्त गोनू रहथि। (पृ. पूर्वार्द्ध 150-51, प्रथम संस्करण, दरभंगा, 1949ई.) म.म. परमेश्वर झाकContinue Reading

सतीप्रथा

हमें पढ़ाया जाता है कि भारत में सतीप्रथा थी। पति की मृत्यु होने पर विधवा पत्नी को जिन्दा जला दिया  जाता था। इसे एक प्रचलित प्रथा कहकर अंगरेजों ने इसके लिए भारतीय धर्मशास्त्र को दोषी ठहराया और उसके उन्मूलन के लिए मुहिम चलायी। इस प्रकार, उन्होंने भारतीय धर्मशास्त्र में अमानवीयContinue Reading

Arya Samaj

जॉन मुइर की पुस्तक ‘मतपरीक्षा’ तथा दयानन्द के ‘सत्यार्थप्रकाश’ का ‘साइड इफैक्ट’ सन् 1868ई. की बात है। जॉन मुइर की पुस्तक ‘मतपरीक्षा’ का हिन्दी संस्करण प्रकाशित हुआ। फादर रुडॉल्फ ने इसे लुधियाना से प्रकाशित कराया। इसमें ‘मतपरीक्षा’ के दोनों भाग एक साथ प्रकाशित किये गये। इसका पहला भाग था, जिसमेंContinue Reading

bipra-dhenu--

लाला बैजनाथ ने Modern Hindu Religion And Philosophy यानी आधुनिक भारतीय धर्म एवं दर्शन पर व्याख्यान दिया था। इस व्याख्यान के अंतर्गत उन्होंने तुलसीदास के रामचरितमानस के विषय में जो कुछ लिखा है, वह इस विषय में कहा गया सबसे महत्त्वपूर्ण व्याख्यान प्रतीत होता है। वे लिखते हैं- ‘आधुनिक राम वाल्मीकि के राम नहीं है, जो कि उनके समकालीन थे, वे आज तुलसीदास के राम हैं, जो 1600ई. के आसपास हुए थे औऱ उनका प्रभाव उनके जीवनकाल से अधिक आज के समाज पर है।”Continue Reading

Vritta Muktavali of Maithil Durgadatta

एतए हमरा एहि ग्रन्थक एक पाण्डुलिपि उपलब्ध अछि जे संवत् 1866मे भराम गाम मे रामवत्स नामक व्यक्ति द्वारा लिपिबद्ध कएल छल। तदनुसार एकर लेखनकाल 1810ई. थीक। एकर पुष्पिकामे एहि प्रकारें अछि-
इतिश्रीमैथिलदुर्गादत्तविरचितायां वृत्तमुक्तावल्यां वृत्तबोधको नाम तृतीयः प्रयासः। शुभमस्तु संवत्सरः 1866 मिथिलादेशे भरामग्रामे लिखितोऽयं ग्रन्थो रामवत्सेन। Continue Reading