धूर्तराज गोनू कर्णाट शासनक कालक ऐतिहासिक पुरुष छलाह म.म. परमेश्वर झा हिनक काल देवसिंहक समयमे मानैत छथि। मिथिलातत्त्वविमर्शमे ओ लिखैत छथि जे महाराज भवसिंह जखनि छत्तीस वर्ष राज्य कए वाग्वतीक कातमे अपन शरीर त्याग कएल ओही आसन्नकालमे धूर्त गोनू रहथि। (पृ. पूर्वार्द्ध 150-51, प्रथम संस्करण, दरभंगा, 1949ई.) म.म. परमेश्वर झाकContinue Reading

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एतए स्पष्ट अछि जे एकटा मैथिलक दिससँ मैथिलीमे अनूदित करबाक लेल प्रस्ताव देल गेल मुदा जें कि एहि ठामक लोक हिन्दी सेहो बुझैत छल तें सरकारी आदेशसँ केवल हिन्दी भाषामे अनुवाद भेल।Continue Reading

samvedana

डा० सिन्हा चोट्टे घूरि घर गेलाह। लैपटॉप खोललनि आ अपन सहयोगी सभके ई-मेल कएल- “हमर शोध लेल वरदक स्पेसीज उपयोगी नै होएत। अहाँ सभ दोसर कोनो जानवरक खोज करू जकरामे भावना नै रहए। Continue Reading

घुरि आउ कमला आवरण

परेत फेर कहए लागल- “गाममे फुलिया आ हमर बात सभ केओ बूझि गेल रहए। ओकर बहिन सेहो सुनलक। गप्प चललै। फुलिया सँ हमर बियाह भए गेल। ओही साल कमला माइ सेहो किरपा कएलखिन। एही गाम देने बहए लगलीह। खूब धानो उपजै। माछ मखान भेट, सिंघार, करहर, सारूख ई सभ तँ अलेल रहै।…Continue Reading

mandan-bharati

-“तँ की महाराजसँ कहि भकसी झोंकबाक मरबा देब आ कि हमर गुरुए जकाँ पहाड़परसँ धकेलि देब।” मण्डन मिश्र बजलाह।
-“अहाँ अइयो वैदिक धर्मक पताका कन्हेठने संघारामक साधनाक विरोध कए रहल छी। हमरा अहाँक सभटा क्रिया-कलापक सूचना अछि। अहाँ सनक विद्वानकेँ एतेक छोट दण्ड नै भेटबाक चाही वैदिकप्रवर!’ श्रमण महाराजहि जकाँ आदेश-स्वरमे बजलाह। लंकामे जे सबसँ छोट सेहो उनचास हाथ!Continue Reading

dhani kalhi jebai panjab

रूपनक मोन छौ-पाँच करए लगलनि। नाँओ खूजि जेतै त गाममे उकबा ऊठि जेते। आ तैमे मारल जेतै बेचारा बहुरी झा। तेहन लोकक बेटी पुतोहु उखाड़ने रहनि जे ओकरा पर कैफा करथिन त उनटले डेंगा देतनि। ओकरा कोन! नढड़ा हेलल अछि। सभ चिन्है छै ओकरा दरोगासँ एम० पी० धरि। भोटक दिन ओहिना थोड़बे धड़फड़न देने रहै-ए बूथ पर। ते नाँओ कहै सँ नीक जे बेचारा अनभुआरेमे दैवेक डाङ बूझि कʼ छातीमे मुक्का मारि लेथु। ते रूपन बुझियो कʼ झूठ बाजि गेला जे हम नै चिनहलिए। जावत लग जाइ तावत ओ निपत्ता भʼ गेल।Continue Reading

article by Radha kishore Jha

वेद या वेदान्त प्रतिपाद्य धर्म क्या है? तैत्तिरीय श्रुति हमें आदेश एवं उपदेश देती है कि धर्म पथ पर चलो- धर्मं चर। वसिष्ठ धर्मसूत्र भी कहता है कि धर्मं चर माधर्मम्। धर्म पथ पर चल, अधर्म पर नहीं। अतः हमें जानना चाहिए कि वेद या वेदान्त प्रतिपाद्य धर्म क्या है?Continue Reading

अपभ्रंश काव्य में सौन्दर्य वर्णन

लेखक- डॉ. शशिनाथ झा- विस्तृत परिचय सम्मति  आदरणीय झा जी, नमस्कार ।  आपका आलेख ‘अपभ्रंशकाव्य में सौन्दर्यवर्णन’ मिला। मैं उसे पूरा पढ़ गया। अतिप्रसन्नता हुई। आप-जैसे विद्वान् से जो अपेक्षा थी उससे अधिक ही आपका आलेख प्रीतिकर हुआ। हार्दिक साधुवाद।  आपके आलेख की एक बड़ी विशेषता है कि उसमें आपनेContinue Reading