1933ई. मे मन्दिरमे दलित प्रवेशक लेल कानून बनए लागल आ मिस्टर सी. एस. रंगा आयर द्वारा एकटा बिल आनल गेल। सम्पूर्ण भारतसँ लोक सभक विचार लेबाक लेल एहि बिलकें जन-जन धरि पहुँचएबाक आवश्यकता भेलैक। (National Archives of India, File No. 50/16/33/Poll. 1933, Government of India)
एहि कालमे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति सभसँ विचार माँगल गेल छल। एहिमे राम कृष्ण झाक विचार छल जे सभसँ पहिने एहि बिल सम्बन्धी अवधारणाकें मातृभाषासभमे अनुवाद कराए ओकरा बाँटल जाए। पं. राम कृष्ण झा, ओदिकालमे दरभंगा आ सारणक एम.एल.ए. रहथि। ओ 20 अगस्त 1933 ई.कें ई पत्र देने छथि। एहिमे ओ चारि टा सुझाव देने छथि। हुनक पहिल सुझाव छनि जे ई बिल भारतक सभ राज्यक सभ जिलाक भाषामे अनूदित कएल जाए आ ओ मातृभाषामे अनूदित प्रति प्रत्येक गाम आ शहरमे थानाक अधिकारी आ पंचायतक प्रधान आ ग्रामसभा आदिक माध्यमसँ बाँटल जाए।
हिनक दोसर प्रस्ताव छल जे एहि बिलकें बँटलाक बाद सभक विचार एही उपर्युक्त माध्यमसँ लेल जाए।
एतए ओ अपन पत्रमे किछु भाषाक नाम सेहो देने छथि जाहिमे हिन्दी, मैथिली, बंगाली, तेलुगु, उड़िया, गुजराती आदि अछि। ई बिल ओहि सभ व्यक्ति धरि पहुँचाओल जाए जे मन्दिर प्रबन्धनमे रुचि रखैत छथि। (उपरिवत् पृ. 1)
हुनक ई प्रस्ताव मानि लेल गेल अछि। एम.जी. हॉलेट 01.091933ई.कें लिखल अपन पत्रमे लिखैत छथि जे पं. राम कृष्ण झाक जे चारि टा सुझाव अछि ताहिमे पहिल आ दोसर महत्त्वपूर्ण अछि। ओकर अनुपालन कएल जाए।
अर्द्धसरकारी पत्र पत्रांक D.6384/33-Pol, दि. 20 सितम्बर 1933 ई.क द्वारा स्थानीय सरकार आ प्रशासनकें लिखल गेल जे जून 1934 ई. धरि मातृभाषासभमे अनुवाद भए जेबाक चाही।
एही पत्रक तेसर अनुच्छेदमे सरकारी निर्देश देल गेल जे जतए हिन्दू एकसँ अधिक भाषा जनभाषाक रूपमे व्यवहार करैत छथि ओतए सभ भाषामे एकर अनुवाद नहि कएल जाए।
फलतः बिहार उड़ीसा गजटमे ई बिल 11 अक्टूबर, 1933 कें अंगरेजीमे, 18 अक्टूबर 1933 कें हिन्दी आ उर्दूमे आ 1 नवम्बर 1933 कें उड़ियामे आ 15 नवम्बर 1933 कें बंगलामे प्रकाशित भेल। (पृ. 181)
एतए स्पष्ट अछि जे एकटा मैथिलक दिससँ मैथिलीमे अनूदित करबाक लेल प्रस्ताव देल गेल मुदा जें कि एहि ठामक लोक हिन्दी सेहो बुझैत छल तें सरकारी आदेशसँ केवल हिन्दी भाषामे अनुवाद भेल।