अपने नाम का लोभ नहीं पर पढने वालों की थी चिन्ता

दरभंगा के महाराज रमेश्वर सिंह ने शिक्षा के क्षेत्र में अपना बहुमूल्य योगदान किया था। वे बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय की स्थापना में तन-मन-धन से अपना करते रहे।

इसी सिलसिले में राँची आर्ट आर्ट कॉलेज की स्थापना तथा वहाँ के छात्रावास निर्माण में भी उनका योगदान रहा। भारत सरकार के गृह विभाग की प्रोसीडिंग, शिक्षा विभाग- ए, अगस्त 1907, सं. 10-15 राँची में “आवासीय आर्ट्स कॉलेज” से सम्बन्धित प्रस्ताव है। यह अभिलेख राष्ट्रीय अभिलेखागार, दिल्ली में संरक्षित है।

इसके अनुसार दरभंगा के महाराज रमेश्वर सिंह ने इसके छात्रावास के निर्माण के लिए 40,000 रुपये का अनुदान दिया था।

इस योजना के अन्तर्गत अन्य राजा-महाराजाओं ने भी अनुदान किया था। इनमें से कुछ लोगों ने शर्त रखा थी कि उनके नाम पर छात्रावास का निर्माण किया जाये। उदाहरण के लिए

  • वर्धमान के राजा विजय चन्द्र महताब ने अपने नाम पर छात्रावास बनाने के लिए 40,000 रुपये थे।
  • ढाका के नबाब शालिमुल्ला ख्वाजा बहादुर ने स्व. ख्वाजा अलिमुल्ला के नाम से छात्रावास बनाने के लिए 40,000 रुपये दिये।
  • मनभूम के झरिया इस्टेट के मालिक राजा दुर्गा प्रसाद सिंह ने हिन्दुओं के लिए छात्रावास बनाने हेतु 50,000 रुपये दिये थे।
  • हथुआ की महारानी ने श्रीकृष्ण प्रसाद शाही बहादुर के नाम से उनकी स्मृति में छात्रावास के लिए 40,000 रुपये दिये थे।

लेकिन दरभंगा के महाराज रमेश्वर सिंह ने यह अनुदान इस शर्त पर दिया था कि बिहार के सनातनी छात्रों को इसमें प्रवेश में प्राथमिकता दी जायेगी। यहाँ ध्यातव्य है कि उन्होंने नाम जोड़ने की कोई शर्त नहीं रखी थी।

शिक्षा विभाग के टी. बी. रिचर्डसन के द्वारा लिखे गये पत्र में इसका उल्लेख है।

आज इस संस्था तथा इसके होस्टल के इतिहास में दरभंगा के महाराज रमेश्वर सिंह का नाम है या नहीं, यह खोज का विषय है।

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