मिथिला की उपासना-पद्धति में खासियत क्या है? इस प्रश्न पर हम विचार करते हैं तो पता चलता है कि मिथिला में पूजा-पाठ की परम्परा मध्यकाल के परिवर्तनों से प्रभावित नहीं हुआ है। यहाँ आज भी जो पूजा-विधि है वह आदिकाल की है। आपने देखा होगा कि मिथिला में सत्यनारायण कीContinue Reading

यह आलेख अहल्या-स्थान मन्दिर, अहियारी, दरभंगा से प्रकाशित अहल्या-संदेश (स्मारिका) में 2023ई. में प्रकाशित है। महाकवि विद्यापति ने भी ‘भूपरिक्रमणम्’ नामक ग्रन्थ में जनक के देश का विवरण दिया है इसके अनुसार बलराम नरहरि नामक देश को छोड़कर पाटलि नामक देश पहुँचे जहाँ उन्होंने देवी की पूजा कर नगर कीContinue Reading

एक बेर गोनू झा भोज करबाक घोषणा कएलनि- ‘हम परसू भरि गामक लोककेँ अगबे मधुरक भोज खुआएब।’ गामक लोक जमानि फाँकब शुरू कए देलनि- “गोनू झा अगबे मधुरक भोज करताह तँ खूब खाएब।” किछु गोटे प्रस्ताव देलनि जे मधुरक संग कनेक चूड़ा सेहो भए जाए तँ कोन हर्ज? आ दहीContinue Reading

सनातन धर्म में परिवर्तन की दिशा

सनातन धर्म में भी हर शताब्दी में समाज की आवश्यकता को देखते हुए हमारे सन्तों-महात्माओं ने परिवर्तन किया है। यहाँ उपासना-पद्धिते में आये परिवर्तन को रेखांकित किया गया है।Continue Reading

manuscript from Mithila

गोनू झाक व्यक्तित्व आ ओकर स्रोत मिथिलामे पंजी अछि। एहि पंजीमे 1. अपन नाम, 2. पिताक नाम 3. मूल गामक नाम, 4. प्रव्रजित गामक नाम, 5. मातामहक नाम, 6. मातामहक मूल गाम आ 7. प्रव्रजित गामक नाम, 8. मायक मातामहक नाम, 9. हुनक मूल गाम आ 10. प्रव्रजित गामक नामContinue Reading

bipra-dhenu--

लाला बैजनाथ ने Modern Hindu Religion And Philosophy यानी आधुनिक भारतीय धर्म एवं दर्शन पर व्याख्यान दिया था। इस व्याख्यान के अंतर्गत उन्होंने तुलसीदास के रामचरितमानस के विषय में जो कुछ लिखा है, वह इस विषय में कहा गया सबसे महत्त्वपूर्ण व्याख्यान प्रतीत होता है। वे लिखते हैं- ‘आधुनिक राम वाल्मीकि के राम नहीं है, जो कि उनके समकालीन थे, वे आज तुलसीदास के राम हैं, जो 1600ई. के आसपास हुए थे औऱ उनका प्रभाव उनके जीवनकाल से अधिक आज के समाज पर है।”Continue Reading

बिप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार भगवान् श्रीराम के अवतार लेने के बारे में गोस्वामीजी कहते हैं कि वे ब्राह्मण, गाय, देवता तथा संत की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। स्पष्ट है कि जो लोग इस पृथ्वी पर कष्ट पाते हैं और कष्ट का अंत करने केContinue Reading

sama-chakeba ki kahani

लेखिका – श्रीमती रंजू मिश्रा द्वारा, श्री बी.के. झा, प्लॉट सं. 270, महामना पुरी कालोनी, बी.एच. यू., वाराणसी धर्मायण, महावीर मन्दिर, पटना, 2022ई. अंक संख्या 125, पृ. 62-70 सम्पादक पं. भवनाथ झा की टिप्पणी : सामा-चकेबा मिथिला का लोकपर्व है। इसकी मूल-कथा कृष्ण, उनकी पुत्री साम्बा, पुत्र साम्ब, उनका एकContinue Reading

Bhaiya dooj and godhana in Bhojpuri culture

भोजपुरी-संस्कृति फूहड़ नहीं, सनातन की कोमलता और मानवीयता से भरी-पूरी है- ‘धर्मायण’ पत्रिका, महावीर मन्दिर, पटना प्रकाशन
आज भले हम भोजपुरी गीतों में अश्लीलता और फूहड़पन पाते हैं, पर यहाँ की मूल धारा कहीं से भी फूहड़ नहीं। सनातन संस्कृति की वहीं धारा यहाँ भी आज विभिन्न पर्वों और त्योहारों के अवसर पर हम देखते हैं। भैया-दूज की ही परम्परा लें तो हमें भाव-विह्वल कर देने वाली संस्कृति यहाँ देखने को मिलती है।Continue Reading

Bharaditiya mithila men

दशपात पुरैन पर किसी पवित्र धातु या फिर मिट्टी का कोइ गहरा पात्र रखती हैं। उस पात्र में कुम्हरे का फूल, पान, सुपाड़ी, हर्रे, मखाना और साथ में चांदी का सिक्का रखती हैं। पीठार और सिंदूर की डिब्बी, जलपात्र, धूप-दीप भी रखा जाता है। भाई उस पीढे पर अपनी अंजलि को पात्र के उपर करके बैठता है। बहन उसे सिंदूर-पिठार से टीका लगाती हैं। अंजुरी के दोनों तलहथी में भी सिंदूर पिठार लगाती हैं, फिर जितना कुछ उस पात्र में सामग्री रखा रहता है, सब कुछ उठाकर पहले उसके अंजुरी में भर देती हैं फिर जल के द्वारा हाथ से उसे उसी पात्र में गिरा देती हैं। यह क्रम तीन बार किया जाता है। इस विधान को करते हुए बहने अपने भाई के आयुवृद्धि के लिए या तो संस्कृत का या फिर लोकमंत्र को पढते हुए निभाती हैं–Continue Reading