आज भले हम भोजपुरी गीतों में अश्लीलता और फूहड़पन पाते हैं, पर यहाँ की मूल धारा कहीं से भी फूहड़ नहीं। सनातन संस्कृति की वहीं धारा यहाँ भी आज विभिन्न पर्वों और त्योहारों के अवसर पर हम देखते हैं। भैया-दूज की ही परम्परा लें तो हमें भाव-विह्वल कर देने वाली संस्कृति यहाँ देखने को मिलती है।
बिहार में बक्सर का क्षेत्र सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। यहाँ अनेक संस्कृतियों का संगम हुआ है। हमें जानने की उत्सुकता है कि यम द्वितीया यानी भैया-दूज यहाँ पर कैसे मनाया जाता है। ऊपर के दो आलेखों में मगध एवं मिथिला की परम्परा का प्रलेखन किया गया है। यहाँ लेखिका ने बक्सर के आसपास की परम्परा पर प्रकाश डाला है। साथ ही चित्रगुप्त पूजा इसी दिन कैसे मनायी जाती है इस पर भी पर्याप्त सामग्री यहाँ है। लेखिका के द्वारा बनाया गया चित्रगुप्त दरबार का चित्र यहाँ आह्लादजनक है।
चौदह यमों में से एक चित्रगुप्त भी हैं। वे मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को उनकी पूजा यह याद दिलाती है कि हम बुरे कर्मों से दूर रहें।
भाई दूज के परबिया
याद रखिह हमार भैया
अइह तिलक लगवावे
तु बजरा खाए अइह,
भुलइह मत इ दिनवा
आस पूरा करे अइह
चंदा जइसन मुखड़ा तोहार
मिट्ठा-मिट्ठा मुस्कान बा
तहरे से भैया हमार
भोजपुर क्षेत्र की ‘चित्रगुप्त पूजा एवं भैयादूज ’ का प्रलेखन
चित्रगुप्त पूजा एवं भैयादूज
सुश्री पुनीता कुमारी श्रीवास्तव
लेखिका एवं कवयित्री, पिता- अरविन्द कुमार श्रीवास्तव, महाबीर चबूतरा, लाला टोली, डुमराँव जिला-बक्सर (बिहार)