मिथिला की संस्कृति में कैसे मनाया जाता है भैया दूज? मैथिली में इसे कहते हैं – भरदुतिया।
आइए जानते हैं विस्तार से – श्रीमती रंजू मिश्रा का आलेख- “लोकाचार में शास्त्रीयता- यमद्वितीया के सन्दर्भ में”
लोक-परम्परा नदी का बहती धारा है, जबकि शास्त्र उसी नदी में से निकाल कर संरक्षित किया गया घड़ा का जल। पर लोकधारा और नदी के किनारे गड्ढों में भरे जल के बीच अंतर समझने के लिए हमें धारा की गहराई मापनी होगी।
आम नोतै छथि जाम के
जमुना नोतै छथि यम के
हम नोतै छी भाय के
हमरा भाय के एकसय अस्सी बरखक औरदा।।
भ्रातृ-द्वितीया—यम द्वितीया यानी भैयादूज के बारे में पौराणिक मान्यता तो बस इतनी है कि सूर्य के पुत्र यमराज इस दिन अपनी बहन यमुना के पास जाते हैं और उनके घर अन्न ग्रहण करते हैं। अतः इस दिन जो भाई बहन के घर खाना खाता है, उसकी लम्बी उम्र होती है तथा बहन का भी भाग-सुहाग बढता है।
इस शास्त्रीय अवधारणा के साथ ही कुछ ऐसे लोक-व्यवहार हैं, जो अटपटे लगते हैं। जैसे इस दिन बहन के द्वारा भाई को शाप देने की परम्परा। लेखिका ने इस परम्परा के पीछे छिपे कारणों को ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से संगति बैठायी है तथा उसने स्पष्ट किया है कि इस शाप देने के पीछे जो उद्देश्य है वह कल्याणकारी है।
इसके साथ ही लेखिका ने मिथिला में भ्रातृद्वितीया की परम्परा का भी प्रलेखन किया है। गाये जाने वाले लोक गीत भी दिये गये हैं।
मिथिला की लोक-संस्कृति
लोकाचार में शास्त्रीयता- यमद्वितीया के सन्दर्भ में
श्रीमती रंजू मिश्रा
द्वारा, श्री बी.के. झा, प्लॉट सं. 270, महामना पुरी कालोनी, बी.एच. यू., वाराणसी