जानकीक प्रादुर्भाव मिथिलाक भूमिसँ भेल छल। ताहि लागिसँ एतएक लोककेँ हुनका प्रति विशेष समादर भाव उचिते। खासकए जानकीनवमी दिन अनेक ठाम हिनकर पूजनोत्सव कएल जाइत अछि जे पुरान परम्परा थिक। पन्द्रहम शताब्दीमे म.म. रुद्रधर उपाध्याय वर्षकृत्यमे जानकीपूजाक विधान देने छथि। 1938 ई.मे पं. जीवानन्द ठाकुर ‘जानकीपूजापद्धति’ लिखलनि आ 1939 ई.मे अद्भुत रामायणक जानकी सहस्रनाम छपओलनि। Continue Reading

article by Radha kishore Jha

वेद या वेदान्त प्रतिपाद्य धर्म क्या है? तैत्तिरीय श्रुति हमें आदेश एवं उपदेश देती है कि धर्म पथ पर चलो- धर्मं चर। वसिष्ठ धर्मसूत्र भी कहता है कि धर्मं चर माधर्मम्। धर्म पथ पर चल, अधर्म पर नहीं। अतः हमें जानना चाहिए कि वेद या वेदान्त प्रतिपाद्य धर्म क्या है?Continue Reading

यह अंक विषयों की विविधता से भरा हुआ है। इसमें भारत की शक्ति-उपासना, कृष्ण-उपासना, गणेश-उपासना, पितृ-उपासना, लक्ष्मी-उपासना तथा लोकदेवताओं की उपासना से सम्बन्धित प्रामाणिक सामग्री संकलित किये गये हैं। साथ ही, विशिष्ट आलेख के रूप में धर्म के स्रोतों पर विवेचन किया गया है।Continue Reading

Krishna-janma cover

पाठोद्धार के लिए अर्थसंगति, छन्द का अनुरोध, तुकबन्दी की समता, त्रुटिपूर्त्ति, मिथिलाक्षर से देवनागरी में लिप्यन्तरण के दौरान स्वाभाविक भ्रम आदि का विवचेन करते हुए पाण्डुलिपि-शास्त्र एवं भाषा के मर्मज्ञ विद्वान् डा. शशिनाथ झा ने यहाँ संगति बैठाते हुए अनेक पाठ-संशोधन कर इस मैथिली प्रबन्ध काव्य को पूर्णता प्रदान की है।Continue Reading

Kirtilata cover

प्रस्तुत संस्करण में कीर्त्तिलता के मूल हस्तलेख (काठमाण्डू में स्थित) की फोटो प्रति एवं प्रतिलिपि का उपयोग किया गया है, प्राचीन एवं नवीन मैथिली भाषा को दृष्टि में रख कर इसका निरीक्षण किया गया है, मैथिली लिपि से प्रतिलिपि करने में जो स्वाभाविक रूप से भूल होती है, उसका ध्यान रख कर अर्थ संगति के अनुसार पाठ संशोधन किया गया है, पूर्व संस्करणों के पाठभेद से पाठ निर्धारण में सहायता ली गयी है और संस्कृतच्छाया एवं हिन्दी मैथिली व्याख्या प्रस्तुत की गयी है।Continue Reading

विद्यापति कृत कीर्तिगाथा एवं कीर्तिपताका, डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

विद्यापतिकृत कीर्तिपताका का एकमात्र हस्तलेख मिथिलाक्षर में लिखित तालपत्र नेपाल राजकीय हस्तलेखागार, काठमाण्डू में है। इसमें ग्रन्थ पूर्ण नहीं है। परीक्षण करने पर इस हस्तलेख में छोटे-छोटे तीन स्वतन्त्र ग्रन्थ सिद्ध हुए हैं-Continue Reading

अपभ्रंश काव्य में सौन्दर्य वर्णन

लेखक- डॉ. शशिनाथ झा- विस्तृत परिचय सम्मति  आदरणीय झा जी, नमस्कार ।  आपका आलेख ‘अपभ्रंशकाव्य में सौन्दर्यवर्णन’ मिला। मैं उसे पूरा पढ़ गया। अतिप्रसन्नता हुई। आप-जैसे विद्वान् से जो अपेक्षा थी उससे अधिक ही आपका आलेख प्रीतिकर हुआ। हार्दिक साधुवाद।  आपके आलेख की एक बड़ी विशेषता है कि उसमें आपनेContinue Reading

डाकवचन-संहिता

डाकक महत्ता सभ वर्गक लोकक लग समाने रहल अछि। हिनक नीति, कृषि ओ उद्योग सम्बन्धी वचन सभधर्मक लोक अपनबैत अछि। ई भ्रमणशील व्यक्ति छलाह, जतए जाथि, अपन व्यावहारिक वचनसँ सभके आकृष्ट कए लेथि। एहि क्रममे हिनक वचन बंगालसँ राजस्थान धरि पसरि गेल ओ एखनहुँ लोककण्ठमे सुरक्षित अछि, परन्तु ओहिपर स्थानीय भाषाक ततेक प्रभाव पड़ि गेल जे परस्पर भिन्न लगैत अछि। हिनका मिथिलामे डाक ओ घाघ, उत्तर प्रदेश आदिमे घाघ, बंगालमे डंक तथा राजस्थानमे टंक कहल जाइत अछि। ई अपन ‘वचन’ जनिकाँ सम्बोधित कए कहने छथि तनिकाँ मिथिला ने भाँडरि रानी, मगधमे भडुली तथा आनठाम भड्डरी कहल जाइत अछि। Continue Reading