- पुस्तक का नाम- अपभ्रंशकाव्य में सौन्दर्य वर्णन
- रचनाकार- डॉ. शशिनाथ झा, कुलपति, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा।
- प्रकाशन वर्ष- 2021ई.
- सर्वाधिकार- लेखक, डा. शशिनाथ झा
- रचनाकार के आदेश से तत्काल पाठकों के हित में अव्यावसायिक उपयोग हेतु ई-बुक के रूप में https://brahmipublication.com/ पर प्रकाशित।
- प्रकाशक- ब्राह्मी प्रकाशन, द्वारा भवनाथ झा, ग्राम-पोस्ट हटाढ़ रुपौली, झंझारपुर, जिला मधुबनी। सम्पर्क
लेखक- डॉ. शशिनाथ झा- विस्तृत परिचय
सम्मति
आदरणीय झा जी, नमस्कार ।
आपका आलेख ‘अपभ्रंशकाव्य में सौन्दर्यवर्णन’ मिला। मैं उसे पूरा पढ़ गया। अतिप्रसन्नता हुई। आप-जैसे विद्वान् से जो अपेक्षा थी उससे अधिक ही आपका आलेख प्रीतिकर हुआ। हार्दिक साधुवाद।
आपके आलेख की एक बड़ी विशेषता है कि उसमें आपने रूपरेखा का पूर्णतः अनुगमन किया है, प्रत्येक बिन्दु पर प्रचुर सामग्री दी है, जिससे सामान्य पाठक भी उसे भली भाँति हृदयंगम कर सकता है।
- दिनांक- 15.09.1996
- परिमल 138/3, विजयनगर,
- मेरठ-250001
- भवदीय डॉ० रामेश्वर दयालु अग्रवाल
- पूर्वअध्यक्ष, हिन्दी विभाग
- मेरठ कालेज, मेरठ
विषय-सूची
- प्राक्कथन
- उद्धृत पद्यों के कवि
- नर-नारी के शारीरिक सौन्दर्य
- नर-नारीके शीलगत सौन्दर्य
- मानवेतर जीवों के रूप एवं क्रियागत सौन्दर्य
- प्रकृतिसौन्दर्य
- सहायक ग्रन्थ
प्राक्कथन
रमणीय शब्द द्वारा रमणीय अर्थ प्रस्तुत करना की कवि का कृत्य होता है जिसे काव्य कहते हैं । इसी रमणीयता को सौन्दर्य कहा जाता है । इसी सौन्दर्य को जुटाने की कला के सिखाने वाले शास्त्र को सौन्दर्यशास्त्र कहते हैं तात्पर्य यह कि काव्यशास्त्रियों के सभी श्रम सौन्दर्य प्रकाशनके लिए ही होता है । परन्तु प्रस्तुत सन्दर्भ में इससे लौकिक सौन्दर्य ही अभिप्रेत है । काव्य में शारीरिक एवं आन्तरिक सौन्दर्य का स्वाभाविक आकर्षक वर्णन प्रचुरतया देखा जाता है । इस पर आलोचकों की निगाहें बनी रहती हैं ।
आज से 25 वर्ष पूर्व मेरठ के प्रोफेसर माननीय श्री रामेश्वर दयाल अग्रवाल जी ने ‘विश्वसाहित्य में सौन्दर्यवर्णन’ नामक शोध योजना को पूर्ण करने के क्रम में ‘अपभ्रंश काव्य में सौन्दर्यवर्णन’ पर लिखने हेतु मुझसे आग्रह करते हुए इसकी एक रूपरेखा भेज दी, क्योंकि वे नागप्रकाशन से प्रकाशित विद्यापतिकृत कीर्तिपताका (अवहट्ठकाव्य) की मेरी व्याख्या से प्रभावित हो चुके थे । मैंने परिश्रमपूर्वक आलेख भेज दिया । उनके द्वारा मुझे साधुवाद दिया गया । फिर उसके बाद इस विषय में कोई जानकारी नहीं मिल सकी ।।
इधर स्वरचित पुराने निबन्धों की संचिका में इस पर दृष्टि पड़ी तो इसे प्रकाशित करने की उत्कण्ठा जाग गयी और भगत्कृपा से आज पाठकों के हाथों में समर्पित कर रहा हूँ । इसके प्रेरक प्रो० अग्रवाल जी का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
14.4.2021
ग्राम- दीप जिला- मधुबनी, मो.- 9199475909
डॉ० शशिनाथ झा, कुलपति का०सिं०द० संस्कृत विश्वविद्यालय
दरभंगा- 846008