छठि पूजा विधि एवं व्रतकथा
सन्ध्याकाल नदी अथवा पोखरिक कछेर पर जाए अपन नित्यकर्म कए अर्थात् सधवा महिला गौरीक पूजा कए आ विधवा विष्णुक पूजा कए पश्चिम मुँहें सूर्यक दिस देखैत कुश, तिल आ जल लए संकल्प करी-Continue Reading
मिथिला झुक नहीं रही है, इसलिए कट्टरपंथी चिढ़ते हैं
मिथिला की उपासना-पद्धति में खासियत क्या है? इस प्रश्न पर हम विचार करते हैं तो पता चलता है कि मिथिला में पूजा-पाठ की परम्परा मध्यकाल के परिवर्तनों से प्रभावित नहीं हुआ है। यहाँ आज भी जो पूजा-विधि है वह आदिकाल की है। आपने देखा होगा कि मिथिला में सत्यनारायण कीContinue Reading
जनक-क्षेत्र एवं उसके विस्थापन का एक प्रलेखित अपवाह- प्रोपगंडा
यह आलेख अहल्या-स्थान मन्दिर, अहियारी, दरभंगा से प्रकाशित अहल्या-संदेश (स्मारिका) में 2023ई. में प्रकाशित है। महाकवि विद्यापति ने भी ‘भूपरिक्रमणम्’ नामक ग्रन्थ में जनक के देश का विवरण दिया है इसके अनुसार बलराम नरहरि नामक देश को छोड़कर पाटलि नामक देश पहुँचे जहाँ उन्होंने देवी की पूजा कर नगर कीContinue Reading
जितिया जिउतिया जीमूतवाहन-व्रत में गलतफहमी कहाँ से पैदा हुई?
भ्रान्ति तब आरम्भ हुई जब इसी जिताष्टमी या जीमूताष्टमी के साथ राधाकान्त देव ने लक्ष्मीव्रत का उल्लेख कर दिया।
लक्ष्मीव्रत के लिए ‘निर्णयामृतसिन्धु’ से उद्धरण दिया कि अष्टमी के चन्द्रोदय का समय यानी अर्धराति में यदि अष्टमी हो तो लक्ष्मीव्रत होगा और यदि सूर्योदय के समय अष्टमी रहे तो वह लक्ष्मी जीवित्पुत्रिका हो जाती है।
जो पण्डित धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों की भाषा और शैली नहीं जानते थे उन्हें अब यहाँ भ्रान्ति उत्पन्न हुई। उन्होंने ‘जीवित्पुत्रिका’ शब्द देखकर इसे जीमूतवाहन-व्रत समझ लिया। नामसाम्य के कारण ऐसा भ्रम उत्पन्न हुआ होगा।Continue Reading
पर्व-निर्णय, मिथिला के विद्वानों की सभा में लिया गया निर्णय, संकलनकर्ता- पं. कुशेश्वर शर्मा
दरभंगा में 1932 ई. में तत्कालीन स्थापित पण्डितों का योगदान मिथिला की धर्मशास्त्र-परम्परा में अविस्मरणीय है। उस समय के प्रख्यात ज्योतिषी पं. कुशेश्वर शर्मा, जिन्होंने 1921 ई. से 1931 ई. तक मिथिलादेशीय पंचांग का भी निर्माण किया था, पर्वों के निर्णय के लिए उस समय के विख्यात धर्मशास्त्रियों का आह्वान किया और एक एक पर्व पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर प्रमाण के साथ अपना मन्तव्य देने का अनुरोध किया। इसके अन्तर्गत कुल 83 पर्वो पर निवन्ध आये, जिनमें कुछ विषयों पर दो दो विद्वानों ने पृथक् पृथक् अपना निर्णय लिखा।Continue Reading
मातृनवमी के दिन क्यों कराते हैं पितराइन भोज
अन्वष्टका श्राद्ध में माताओं का स्थान प्रथम दिया गया है। यही मातृनवमी का शास्त्रीय पक्ष है। Continue Reading
श्राद्ध और पितृकर्म पर एक खुली बहस- सनातन धर्म हमें जोड़कर रखता है!
एक विकल्प है- सनातन धर्म की अवधारणाएँ। वे अवधारणाएँ, जो वसुधैव कुटुम्बकम्, का उद्घोष करती हैं क्या वे क्या हमें फिर हमारे अकेलेपन को दूर नहीं कर सकती हैं! सनातन धर्म में कोई अकेला नहीं होता- निर्जन रेगिस्तान में भी उसके साथ देवता होते हैं, पितर होते हैं। देवता-पितर के बल पर वह हमेशा सदल-बल होता है, उसमें हिम्मत होती है, अकेले में भी वह भीड़ में होता है, ऐसी भीड़ में जहाँ उसके सारे के सारे रक्षक होते हैं। Continue Reading
गोनू झाक खिस्सा- “सभ मधुरक जड़ि”
एक बेर गोनू झा भोज करबाक घोषणा कएलनि- ‘हम परसू भरि गामक लोककेँ अगबे मधुरक भोज खुआएब।’ गामक लोक जमानि फाँकब शुरू कए देलनि- “गोनू झा अगबे मधुरक भोज करताह तँ खूब खाएब।” किछु गोटे प्रस्ताव देलनि जे मधुरक संग कनेक चूड़ा सेहो भए जाए तँ कोन हर्ज? आ दहीContinue Reading
सनातन धर्म में बहुदेववाद बनाम धार्मिक स्वतंत्रता
सनातन धर्म पर उँगली उठाकर उसे बरबाद करने का एजेंडा चलाने वाले लोगों को भड़काते रहते हैं कि सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं, एक-एक अच्छत से से पूजा करें तों क्विंटल भर चावल लग जायेंगे…देश की जनता जहाँ भूखी है…वहाँ एक आदमी एक क्विंटल चावल एक बार कीContinue Reading
क्या सनातन धर्म में बदलाव सम्भव नहीं है?
सनातन धर्म में भी हर शताब्दी में समाज की आवश्यकता को देखते हुए हमारे सन्तों-महात्माओं ने परिवर्तन किया है। यहाँ उपासना-पद्धिते में आये परिवर्तन को रेखांकित किया गया है।Continue Reading
गोनू झा व्यक्तित्व आ इतिहासक स्रोतक रूपमे पंजी-विमर्श
गोनू झाक व्यक्तित्व आ ओकर स्रोत मिथिलामे पंजी अछि। एहि पंजीमे 1. अपन नाम, 2. पिताक नाम 3. मूल गामक नाम, 4. प्रव्रजित गामक नाम, 5. मातामहक नाम, 6. मातामहक मूल गाम आ 7. प्रव्रजित गामक नाम, 8. मायक मातामहक नाम, 9. हुनक मूल गाम आ 10. प्रव्रजित गामक नामContinue Reading