मातृनवमी

अन्वष्टका श्राद्ध में माताओं का स्थान प्रथम दिया गया है। यही मातृनवमी का शास्त्रीय पक्ष है। Continue Reading

Dayananda's merits

आर्य समाज की मान्यता में दाह संस्कार के बाद श्राद्ध होता ही नहीं है। दयानंद की मान्यता है कि दाह-संस्कार से पूर्व चिता पर वैदिक मंत्रों से हवन कीजिए औऱ फिर आग में लाश को जला दीजिए फिर आपको जिन्दगी भर कुछ करने की जरूरत नहीं है। आर्य समाज का सिद्धान्त है कि जीवित अवस्था में ही माता-पिता एवं समाज के विद्वान् व्यक्ति पितर कहलाते हैं, उऩकी श्रद्धापूर्वक सेवा करना ही श्राद्ध है।Continue Reading

Sanatana religion

Under this Sanatan Dharma, Vedas, Vedanga, Smriti, Agam, Purana, religious literature written in all folk languages and all the texts created in Sanskrit come together, which has had an effect on Indian society. In the following articles, we will see how the same principles have been originally formulated throughout this vast tradition.Continue Reading

Krishnasthami

मिथिला के डाक पर्वों का संकेत करते कहते हैं- सुत्ता उट्ठा पाँजर मोड़ा, ताही बीचै जनमल छोड़ा। सुत्ता यानी भगवान् के सोने का दिन हरिशयन एकादशी, उट्ठा यानी उठने का दिन देवोत्थान एकादशी, पाँजरमोड़ा- करवट बदलने का दिन पार्श्वपरिवर्तिनी एकादशी और इसी के बीच छोरा यानी बालक श्रीकृष्ण का जन्म होता है। यह मंगलमय दिन भाद्र कृष्ण अष्टमी- श्रीकृष्णाष्टमी आज उपस्थित है।Continue Reading

सिरहर, सिरहड़

ई मुख्य रूपसँ कलश थीक, तें एकर मूल शब्द अछि “श्रीघट”। एही श्रीघट सँ सिरघड़ आ सिरघड़ सँ सिरहड़ भेल। श्रीघटक अर्थ भेल शोभा-घट अथवा मंगल-घट। ई शुभकारक घट थीक। ओ विशिष्ट व्यक्ति जनिका लेल ई मांगलिक कार्यक्रम होइत अछि ओ अपना हाथें ओहि कलश पर किछु रुपया चढ़बैत छथि ओएह भेल “सिरहड़ सलामी” माने मंगल-घट पर द्रव्य चढ़ाएब आ ओकरा प्रणाम करब सिरहड़–सलामी शब्दक अर्थ भेल।Continue Reading

श्राद्ध-कर्म

यह सनातन धर्म की विशेषता है कि इसमें सभी विपरीय परिस्थितियों को देखकर विधान किये गये हैं। यहाँ विष्णु-पुराण से उन दस श्लोकों को उद्धृत किया जाता है, जिनमें यह उल्लेख है कि श्राद्ध किन किन रूपों में किया जा सकता है। यहाँ श्राद्ध के सात विकल्पों का उल्लेख हुआ है।Continue Reading

डाकवचन-संहिता

डाकक महत्ता सभ वर्गक लोकक लग समाने रहल अछि। हिनक नीति, कृषि ओ उद्योग सम्बन्धी वचन सभधर्मक लोक अपनबैत अछि। ई भ्रमणशील व्यक्ति छलाह, जतए जाथि, अपन व्यावहारिक वचनसँ सभके आकृष्ट कए लेथि। एहि क्रममे हिनक वचन बंगालसँ राजस्थान धरि पसरि गेल ओ एखनहुँ लोककण्ठमे सुरक्षित अछि, परन्तु ओहिपर स्थानीय भाषाक ततेक प्रभाव पड़ि गेल जे परस्पर भिन्न लगैत अछि। हिनका मिथिलामे डाक ओ घाघ, उत्तर प्रदेश आदिमे घाघ, बंगालमे डंक तथा राजस्थानमे टंक कहल जाइत अछि। ई अपन ‘वचन’ जनिकाँ सम्बोधित कए कहने छथि तनिकाँ मिथिला ने भाँडरि रानी, मगधमे भडुली तथा आनठाम भड्डरी कहल जाइत अछि। Continue Reading

रवि दिन की सभ नहिं करी मिथिला मे प्राचीनकालक सदाचारक लेल सरोज-सुन्दर नामक एकटा अति संक्षिप्त पोथी अछि, जाहिमे सभ वर्णक लेल किछु आचार पालन करबाक प्रसंग आएल अछि। एहिमे सँ बहुतो एहन तथ्य अछि जे आइयो बूढलोकनिक मुँहसँ सुनैत छी। ओ लोकनि एकर पालनो करैत छथि। मगध क्षेत्रक परम्पराContinue Reading

Sticky
Responsibilities of a Brahmana

सच्चाई यह है कि छठपर्व की भी पूरे विधान के साथ पुरानी पद्धति है, पूजा के मन्त्र हैं, पूजा के समय कही जानेवाली कथा है। संस्कृत में वेद तथा पुराण से संकलित मन्त्र हैं। मगध में ङी ऐसी पद्धति है, मिथिला में तो बहुत पुराना विधान है। म.म. रुद्रधर ने प्रतीहारषष्ठीपूजाविधिः के नाम इसकी पुरानी विधि दी है। वर्षकृत्य में यह विधि उपलब्ध है।Continue Reading

जनक-याज्ञवल्क्य की धरती मिथिला एक ओर यजुर्वेद एवं शतपथ-ब्राह्मण की वैदिक परम्परा की भूमि रही है तो दूसरी ओर आगम-परम्परा में शक्ति-पूजन के लिए विख्यात रही है।Continue Reading