• पुस्तकक नाम- डाकवचन संहिता
  • (टिप्पणी-व्याख्या सहित विशुद्ध पाठ, सम्पूर्ण)
  • रचनाकार- डाक
  • व्याख्या-टिप्पणीकार सम्पादक- डॉ. शशिनाथ झा, कुलपति, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा।
  • प्रकाशन वर्ष- 2021ई.
  • सर्वाधिकार- सम्पादक, डा. शशिनाथ झा
  • सम्पादकक आदेशसँ तत्काल पाठकलोकनिक हितमे अव्यावसायिक उपयोगक लेल ई-बुकके रूपमे bramipublication.com पर प्रकाशित।
  • प्रकाशक- ब्राह्मी प्रकाशन, द्वारा भवनाथ झा, ग्राम-पोस्ट हटाढ़ रुपौली, झंझारपुर, जिला मधुबनी। सम्पर्क

सम्पादक- डॉ. शशिनाथ झा -विस्तृत परिचय

संक्षिप्त भूमिका

डाक नामक एक तेजस्वी व्यक्ति छलाह जे जीवनोपयोगी अनेक व्यावहारिक विषयके पद्यबद्ध लोकभाषामे लिखि देने छथि। हिनके दोसर नाम ‘घाघ’ छल। ई नवम शताब्दीमे भेल छलाह। ई अपन रचनामे अपनाके गोआर (गोप) कहैत छथि। लोकमे प्रसिद्ध अछि जे हिनक पिता ज्योतिषी वराह मिहिर (ब्राह्मण) ओ माता गोपपुत्री छलथिन्ह। लालन-पालन नानाक घर भेल छलन्हि, ते गोप कहओलनि आ से कहबामे गौरवक अनुभव होइन्हि। 

डाक शब्दक अर्थ होइछ तेजस्वी पुरुष। ई लोकभाषाक शब्द थिक, जकर संस्कृत मूल दक्ष-दक्क-डाक अथवा टङ्क डङ्क=डाँक-डाक मानल जाय सकैछ। एकरे स्त्रीलिङ्ग रूप डाकिनी (डाइनि) = तान्त्रिक सिद्ध महिला कहाए प्रसिद्ध अछि, परन्तु एहन पुरुषके सम्प्रति ओझा कहल जाइछ। डाक शब्दसँ तीक्ष्णता, शीघ्रता ओ उत्कटता एखनहँ अनेक रूपमे देखल जाइछ, जेना

  • डकब-उत्कट गन्ध पसरब (हींग डकैत अछि), कौआक भारमे बाजब (तेज शब्द करब),
  • डाकनि देब (जोरसँ शाबर मन्त्र पढ़ब),
  • डंका (ढोलहो),
  • डाक लागब (अतिशय भाँग लागब),
  • डकैत, डाकू, डाका इत्यादि एही तीक्ष्णतामूलक निन्दनीय शब्द प्रचलित अछि,
  • डाकिया (शीघ्र पत्र पहुँचओनिहार)। 

डाकक महत्ता सभ वर्गक लोकक लग समाने रहल अछि। हिनक नीति, कृषि ओ उद्योग सम्बन्धी वचन सभधर्मक लोक अपनबैत अछि। ई भ्रमणशील व्यक्ति छलाह, जतए जाथि, अपन व्यावहारिक वचनसँ सभके आकृष्ट कए लेथि। एहि क्रममे हिनक वचन बंगालसँ राजस्थान धरि पसरि गेल ओ एखनहुँ लोककण्ठमे सुरक्षित अछि, परन्तु ओहिपर स्थानीय भाषाक ततेक प्रभाव पड़ि गेल जे परस्पर भिन्न लगैत अछि। हिनका मिथिलामे डाक ओ घाघ, उत्तर प्रदेश आदिमे घाघ, बंगालमे डंक तथा राजस्थानमे टंक कहल जाइत अछि। ई अपन ‘वचन’ जनिकाँ सम्बोधित कए कहने छथि तनिकाँ मिथिला ने भाँडरि रानी, मगधमे भडुली तथा आनठाम भड्डरी कहल जाइत अछि। 

डाक मिथिलावासी छलाह, जाहिमे निम्नलिखित युक्ति अछि

  • डाकक रचनाके मिथिलामे ‘वचन’ (ऋषिक उक्ति, प्रामाणिक कथन) कहल जाइत अछि। आनठाम एकरा कहावत कहैत छैक। एतय घर-घरमे हिनक वचन प्रचलित ओ मान्य अछि। एतेक रास डाकवचन आन प्रान्तमे उपलब्ध नहि अछि।
  • मिथिलाक धर्मशास्त्र ओ ज्योतिषक प्राचीन ग्रन्थमे डाकक वचन प्रामाणिक रूपे उद्धृत कएल गेल अछि। तत्त्वचिन्तामणि प्रभाकार यज्ञपतिक (1430 ई.) पौत्र पशुपतिक (1400 ई.) व्यवहाररत्नावली, अनर्घराघव नाटकक टीकाकार म.म. रुचिपति उपाध्यायक (1430 ई.) पुत्र हरपतिक (1450 ई.) व्यवहारप्रदीप, शुभङ्कर ठाकुरक (1570 ई.) तिथिद्वैधनिर्णय, विष्णुदेवक (1630 ई.) रत्नकलाप आदि ग्रन्थमे डाकक विशुद्ध वचन भेटैत अछि (द्रष्टव्य-एहि डाकवचन संहिताक) तेसर खण्ड।।
  • डाकक कहल मुहूर्त सभ मैथिलक ग्रन्थ रत्नशतक, रक्तकलाप आदिसँ मिलैत अछि, अन्यदेशीय मुहूर्त्तचिन्तामणि आदि सँ नहि।।
  • डाक मिथिलाक भाँडरि रानीक आश्रय पाबि रचना कएने छलाह।
  • मिथिलामे गूढ आशय रखनिहारके एखनहुँ घाघ कहैत छैक। 

लौकहीक समीप ‘डकही’ गाम के डाकक स्थान मानल जाइत अछि। ओतए हिनक पोखरि आदि विद्यमान अछि। 

झंझारपुरक निकट दीप गाममे दरिहरा चरसँ पूब भँडोरा रजबान्ह अछि जे घघरा घाटक रेवले पुल लग मिलैत अछि। कोशीक एक शाखा एतए बहैत छल जे सम्प्रति भरिकए धनखेती भए नदी कहबैत अछि। ई घाघक स्थान छल जे रानी भाँडरिक भँडोरा रजबान्हक सम्पर्कसँ सिद्ध होइत अछि।

  • राशिक दैनिक मान (पृ. 102) जे डाक कहने छथि से मिथिलादेशीय मान थिक, आन ठाम ई स्वीकृत नहि अछि।
  • डाक अपनाके गोआर कहैत छथि जे मैथिलीक शब्द थिक। 

मिथिलामे आठम-नवम शताब्दीमे पालवंशीय बौद्धराजाक शासन छल जे कर्मकाण्डक घोर विरोधी छल आ अनेक बौद्ध सिद्ध के आश्रय देने छल। वर्णरत्नाकरमे ज्योतिरीश्वर (1320 ई.) एहन 84 सिद्धक उल्लेख कएने छथि। एहिमे अनेक सिद्धक उपनिवेश (कुटी) मिथिलामे छल आ ओहि स्थानक नाम हुनके सभक नाम पर पडल-वेरुपा (बेरमा), भिखरपा (भखरौली). कान्हपा (कन्हौली), सरहपा (सहरबा), भादेपा (भदुआर), लुइपा (लोआम), भुसुकपा (भुसकौल), दारिपा (दरभंगा), हलिपा (हरिभंगा) इत्यादि। ई सभ वैदिक धर्मक विपरीत छलाह, ते एतए हुनक आचारक निन्दाक क्रममे हुनक नाम निन्दित मानल-गेल भुसकौल, पलित (पलितपा), भद्दा, डोमा (डोम्बीपा) आदि। एहि सिद्ध सभक भाषा लोकभाषा छल। बहुतोक गीत ‘चार्यापद’ नामक पोथीमे मैथिलीक अछि। तें हुनक प्रचार अधिक होमए लागल। 

एही अवसर पर डाकक प्रादुर्भाव भेल। ओ सर्वप्रथम परम्परागत आचार-विचार, विधि-व्यवहारके लोकभाषाक माध्यमसँ कहए लगलाह। एहिसँ सर्वसाधारण लोक बौद्धतान्त्रिकक आचारक जालसँ बँचलाह आ अपन परम्परागत धर्मसँ यथार्थतः अवगत भेलाह। तें हिनक वचन मे सरस्वती, गौरी, गणेश, गोविन्द ओ शिवक स्मरण कएल गेल अछि (पृ.- 21, 31, 100)। 

‘डाक’ एक सिद्ध पुरुष छलाह। हिनक दृष्टि अत्यन्त सूक्ष्म छल, ते ई दूरदर्शी छलाह। प्रकृतिक परीक्षण कए ओहिसँ भावी समयक फलादेश कए लैत छलाह। एहन लोकोपयोगी विषयके लोकभाषाक पद्यमे हजारो वचन बनाए प्रचार कए गेलाह जे ततेक लोकप्रिय भेल जे लोकण्ठमे वास करए लागल। वचन कहैत छैक ऋषि-मुनिक वाणीके। से डाकक वाणीके लोक वचन मानि अभ्यास कए लेलक। प्राचीन कालहिसँ कतेको व्यक्ति एहि वचन सभक संग्रह करैत रहलाह। डाकक वचन सब सदा लोकप्रिय रहल अछि।

एहि तरहे डाकवचनमे मिथिलाक कृषि ओ विधि व्यवहारक संस्कृति भरल अछि। यद्यपि ‘जिज्ञासा’ पत्रिकाक जून 1996 अंक मे हम प्राचीनवचनक व्याख्या एवं कठिन शब्दक अकारादिक्रमें सार्थ सूची दए देने छी तथापि एहि ग्रन्थक व्याख्यासहित समीक्षात्मक संस्करण आवश्यक अछि। 

डाकक वचन जे प्राचीन ग्रन्थ सँ उद्धृत भेल अछि तकर भाषा अवहठ (प्राचीन मिथिलाक अपभ्रंश) थिक, जाहिमे विद्यापति कीर्तिलता बनओने छथि। परन्तु लोककण्ठसँ प्राप्त वचन पर बादक भाषाक रंग चढ़ि गेल, तथापि कतेको प्राचीनताक छाप अछिये। डाकवचन सामान्यतः चौपाइ ओ दोहा छन्दमे अछि, मुदा कतहु-कतहु सोरठा, अहीर, जयकरी आ सबैया छन्द सेहो अछि। 

मिथिलामे प्रचलित डाकवचनक संग्रह सबसँ पहिने शुभंकरपुर (दरभंगा) निवासी पं. मुकुन्दझाक पुत्र पं. कपिलेश्वर झा ‘डाकवचनामृत’ नामे 3 भागमे कएने छलाह जे 1905 ई.मे आ 1924 मे कन्हैयालाल कृष्णदास, दरभंगा द्वारा प्रकाशित भेल आ अनेक बेर छपैत रहल। 

तकर बाद 1950 ई.मे दरभंगा राज पुस्तकालयक पं. जीवानन्द ठाकुर (सर्वसीमाग्राम निवासी) ‘मैथिल डाक’ नामक पोथीक सम्पादन कएने छलाह जे मैथिली साहित्य परिषद, दरभंगासँ प्रकाशित भेल छल। एहिमे प्रथम बेर प्राचीन ग्रन्थ सभसँ डाकवचनक उद्धरण प्रस्तुत कएल गेल एवं सम्पूर्ण डाकवचनामृतक पाठसंशोधन भेल। परन्तु मूल उद्धृत वचनमे पाठसंशोधन अपेक्षित रहल, कतेको वचन छुटि गेल, कतेको दोहराए गेल। एकरे यथावत् पुनः प्रकाशन राँटीसँ ‘जिज्ञासा’ पत्रिकामे 1994 ई.मे भेल आ तकर अगिला अंकमे ‘मैथिल डाकक’ प्रथम खण्डक पाठ संशोधित व्याख्या हमर कएल, 1996 मे ‘डाकवचन संहिता’ नाम सँ छपल। 1955 ई.मे डाकवचन संग्रह चारि भागमे मधुबनीक ‘बाबू रघुवर सिंह बुक्सेलर’ द्वारा प्रकाशित भेल। एकरे पुनर्मुद्रण पुपरी सँ भेल छल। तकर बाद हमर ‘डाकवचन संहिता’ उर्वशी प्रकाशन, पटनासँ 2001 ई.मे छपल। तकरे ई परिवर्धित संस्करण थिक। 

संहिता शब्दक अर्थ होइछ संकलन, यथा ऋग्वेदसंहिता, महाकाल संहिता, भृगुसंहिता, नारदसंहिता। विषयक क्रमबद्ध प्रामाणिक संग्रह भेलाक कारण प्राचीनकालमे संहिता सभक नाम एहन पड़ल। डाकवचनक ई क्रमबद्ध संग्रह ऋषिवचनवत् मान्य भेलाक कारण एतए संहिता कहल गेल अछि। एहिमे डाकवचनामृत, मैथिल डाक ओ डाकवचनसंग्रहक सकल वचनक संग किछु आनो स्रोतसँ प्राप्त वचन देल गेल अछि, प्रकरणके सुव्यवस्थित कए पाठपरिशोधन कए अपेक्षित टीका-टिप्पणी सेहो कएल गेल अछि। 

बहुतो वचन मौखिक परम्परासँ प्राप्त कएल। तदनुसारे डाकवचनसंग्रहक अनेक वचनक संस्कार भए सकल। प्रस्तुत संस्करणक पहिल भाग डाकवचनामृत ओ लोकमुखक वचन. दोसर भाग डाकवचनसंग्रह ओ लोकमुखक वचन तथा तेसर भाग प्राचीन ग्रन्थक वचन थिक। 

यद्यपि सम्पूर्ण पोथीक विस्तृत व्याख्या अपेक्षित अछि, मुदा एखन एतबे प्रस्तुत कए लोकक आकांक्षाक पूर्तिमात्र करबाक उद्देश्यसँ उपलब्ध सकल वचनके सुव्यवस्थित रूपें राखल गेल अछि। आशा अछि जे समाज एहिसँ लाभान्वित होएत। ई हमर चिरकालक काज थिक। 1980 सँ हम एहिमे लागल छी। 

प्रख्यात समालोचक मोहन भारद्वाजक ‘डाकदृष्टि’ समीक्षात्मक पोथी 2012मे मुद्रित भेल जाहिमे डाकक विषयमे विविध पक्ष पर गहन आलोचना भेल अछि। एहिमे पृ.- 87 पर ओ लिखैत छथि- “कहय डाक तो सुनह रावन, केरा रोपी अषाढ़ सावन’ -डाकवचनामृतक एहि पाठमे डॉ० शशिनाथ झा रावनक स्थामने ‘बाभन’ कए देलनि’। 

एहि पर हमर वक्तव्य जे डाकवचन संग्रह (मधुबनी) मे ‘बाभन’ सएह छपल छै। हम मूलपाठमे एतेक मनमानीक विरोधी छी। हम ओतबे संशोधन करैत छी जतबा लेल सम्पादक अधिकृत रहैत छथि। विशेष संशोधनक लेल हमर नीति अछि

(1) कोनो आधार ग्रन्थमे प्राप्त हो।

(2) छन्द, भाषा, अर्थ संगतिक सहारा लैत एक-दू मान्य विद्वानक अनुमोदन हो।

(3) लोकक मुखसँ प्राप्त वचनमे संशोधन करैत मूलरूपक रक्षा हो।

(4) छपलाहा पोथीक वचन जॅ लोकमुखसँ प्राप्त भेल, ताहि स्थलमे मैथिलीक प्राचीन प्रकृतिक अनुरूपे पाठकें मान्यता देब उचित थिक। ते जतए संशोधित रूप देखि पड़ए ततए पूर्वोक्त हेतु जानल जाय।

पाठपरिशोधनमे परामर्श देनिहार सम्मान्य विद्वान् मे मुख्यतः स्व. पं० जीवानन्द ठाकुर, स्व. डॉ० रामदेव झा ओ अग्रज स्व. पं० हरिहर झा भेलाह। हिनका सभकें प्रणाम ओ कृतज्ञता निवेदित करैत छी। पूर्वाचार्य लोकनि एवं पोथी वा वचन उपलब्ध करओनिहार सभक प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करैत समसामयिक अनेक विद्वान्कें धन्यवाद दैत छियन्हि, जनिकासँ एतत्प्रसंग परामर्श लेल गेल। 

दिनांक : 14.4.2021 ई. 

पण्डित श्री शशिनाथ झा, कुलपति, का .सिं. द. संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा।

(ग्राम-दीप, जि०- मधुबनी)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *