मिथिलाक्षर पढ़बाक अभ्यास-माला- 2
मिथिलाक्षर सिखबाक क्रममे केवल लिखब पर्याप्त नहिं होइत अछि। आनक लिखल अक्षर पढ़ल होएबाक चाही। एही उद्देश्यसँ हम एकटा अभ्यासमाला आरम्भ कएल अछि।Continue Reading
दरभंगामे रामबागक भीतर दुर्गामन्दिरक अभिलेख, मिथिलाक्षरक 18म शतीक नमूना
मिथिलाक्षर हमरालोकनिक अपन लिपि थीक। एकर प्रयोग आइसँ 30 वर्ष पहिने धरि खूब होइत रहल अछि। हम भवनाथ झा स्वयं ई कहेत छी जे 1970ई.मे हमर अक्षरारम्भ मिथिलाक्षरेमे भेल अछि। हम पितासँ ई लिपि सिखने छी। देवनागरी लिपि तँ हम अपन गामक विद्यालयमे सीखल। मात्र 50 वर्ष पहिलुक बिसरल लिपिकेँ पुनः आइ हमरालोकनि प्रचलनमे आनी से प्रयास करी। अपन भाषा बिसरि जाएब, अपन लिपि बिसरि जाएब तँ अपन क्षेत्रक अस्तित्व समाप्त होइत जाएत आ एहिना अपन क्षेत्र मजदूरक बिड़ार बनल रहत।
मिथिलाक्षर सिखबाक क्रममे केवल लिखब पर्याप्त नहिं होइत अछि। आनक लिखल अक्षर पढ़ल होएबाक चाही। एही उद्देश्यसँ हम एकटा अभ्यासमाला आरम्भ कएल अछि।Continue Reading
आनक लिखल मिथिलाक्षरकेँ पढ़बाक अभ्यास आवश्यक अछि, तेँ ई अभ्यास-माला हम आरम्भ कएल। एहि एक पत्र केँ पढ़ि कॉमेंट बॉक्समे अपन पाठ लीखि पठाबी हम ओकरा देखि उचित जानकारी देब।Continue Reading
ई भ्रम स्वयं पसरल अथवा पसारल गेल- पसारल जा रहल अछि, से खोजक विषय थीक। जँ जानि बूझि कए ई भ्रम पसारल जा रहल अछि तँ एकरा मिथिला आ मैथिलीक विरुद्ध बड़ पैघ षड्यंत्र बुझू।Continue Reading
आइ मिथिलाक्षर बहुत गोटे सीखि रहल छथि। हुनका पढबाक लेल समग्री चाही, नहीं तँ सिखल सभटा बिसरि जएताह। एहि स्थिति कें देखैत किछु सामग्री मिथिलाक्षरमे प्रकाशित करबाक निर्णय लेल गेल अछि। ओही शृंखलाक ई पहिल प्रकाशन थीक।Continue Reading
मिथिलाक्षर अथवा तिरहुता बृहत्तर सांस्कृतिक मिथिला क्षेत्र की लिपि है। इसका प्राचीन नाम हम पूर्ववैदेह लिपि के रूप में ललितविस्तर में पाते हैं। ऊष्णीषविजयधारिणी नामक ग्रन्थ की 609 ई. की एक पाण्डुलिपि में जिस सिद्ध-मातृका लिपि की सम्पूर्ण वर्णमाला दी गयी है, उस लिपि से लिच्छिवि गणराज्य से पूर्व की ओर एक न्यूनकोणीय लिपि का विकास हुआ है, जिस परिवार में वर्तमान काल में मिथिलाक्षर, बंगला, असमिया, नेबारी, उड़िया, एवं तिब्बती लिपियाँ है। इस प्रकार यह अत्यन्त प्राचीन एवं पूर्वोत्तर भारतीय बृहत्तर परिवार की लिपि है।Continue Reading
स्व. डा. आमोद झा मिथिलाक कुशल पाण्डुलिपि-विज्ञानी रहथि। ई अनेक संस्कृत ग्रन्थ कें मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपिसँ लिप्यन्तरण कए ओकर सम्पादन कएने रहथि। कमे समयमे हिनक कएल काज सभ दिन महत्त्वपूर्ण रहल। दुर्भाग्य जे अल्प अवस्थामे 1993 ई. मे हिनक देहान्त भेल आ मिथिलाक्षरक एकटा पाण्डुलिपि-शास्त्री सँ हमरालोकनि वंचित भए गेलहुँ। हिनक असमय देहान्त सँ एकटा अपूरणीय क्षति भेल छैक।Continue Reading
मैथिली भाषाक सन्दर्भमे जँ देखल जाए तँ ग्रियर्सनसँ बहुत पहिने 1804 ई.मे जेम्स रोमर अपन आलेखमे एकरा महत्त्वपूर्ण स्थान देने छथिContinue Reading
मिथिलाक संस्कृतिमे, प्रतिदिन, विशेष रूपसँ कार्तिक मासमे, सभठाम, विशेष रूपसँ सिमरियामे, कल्पवासक अवधिमे गोसाञिक नामक पाठ करबाक आ सुनबाक परम्परा रहलैक अछि। एहि गोसाञिक नामक अन्तर्गत तीन टा स्तोत्रक पाठ होइत छलContinue Reading
मिथिलामे सेहो बहुत गाममे पीपरक गाछ तर हनुमानजीक ध्वजाक स्थापित होइत अछि। ई ध्वज यद्यपि कोनो शनि अथवा मंगल दिनकें स्थापित कएल जा सकैत अछि मुदा रामनवमी एवं हनुमान-जयन्तीकें स्थापित करब विशेष फलदायक होइत अछि।Continue Reading
सोना अथवा माँटिक प्रतिमा बनवा कए भोरेमे नित्यकर्म सम्पन्न कए आचमन करी। तकर बाद तामाक सराइ लए उत्तर मुँहें ठाढ भए सोना अथवा माँटिक प्रतिमा बनवा कए भोरेमे नित्यकर्म सम्पन्न कए आचमन करी। Continue Reading