मिथिलाक्षर
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मिथिलाक्षर पढ़बाक अभ्यास-माला- 2
मिथिलाक्षर सिखबाक क्रममे केवल लिखब पर्याप्त नहिं होइत अछि। आनक लिखल अक्षर पढ़ल होएबाक चाही। एही उद्देश्यसँ हम एकटा अभ्यासमाला आरम्भ कएल अछि। -
मिथिलाक्षर पढ़बाक अभ्यास-माला 1
आनक लिखल मिथिलाक्षरकेँ पढ़बाक अभ्यास आवश्यक अछि, तेँ ई अभ्यास-माला हम आरम्भ कएल। एहि एक पत्र केँ पढ़ि कॉमेंट बॉक्समे अपन पाठ लीखि पठाबी ... -
कैथी, तिरहुता आ मिथिलाक्षर
ई भ्रम स्वयं पसरल अथवा पसारल गेल- पसारल जा रहल अछि, से खोजक विषय थीक। जँ जानि बूझि कए ई भ्रम पसारल जा रहल ... -
“घुरि आउ कमला” मैथिलीमे लिखल दीर्घ कथा- मिथिलाक्षरमे
आइ मिथिलाक्षर बहुत गोटे सीखि रहल छथि। हुनका पढबाक लेल समग्री चाही, नहीं तँ सिखल सभटा बिसरि जएताह। एहि स्थिति कें देखैत किछु सामग्री ... -
मिथिलाक्षर के विकास के लिए सरकारी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता
मिथिलाक्षर अथवा तिरहुता बृहत्तर सांस्कृतिक मिथिला क्षेत्र की लिपि है। इसका प्राचीन नाम हम पूर्ववैदेह लिपि के रूप में ललितविस्तर में पाते हैं। ऊष्णीषविजयधारिणी ... -
डॉ० पं. आमोद झा ‘निर्मोदः’ व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
स्व. डा. आमोद झा मिथिलाक कुशल पाण्डुलिपि-विज्ञानी रहथि। ई अनेक संस्कृत ग्रन्थ कें मिथिलाक्षरक पाण्डुलिपिसँ लिप्यन्तरण कए ओकर सम्पादन कएने रहथि। कमे समयमे हिनक ... -
मैथिली 1804 ई.मे बंगाल प्रेसिडेंसीक दोसर भाषा मानल जाइत छल
मैथिली भाषाक सन्दर्भमे जँ देखल जाए तँ ग्रियर्सनसँ बहुत पहिने 1804 ई.मे जेम्स रोमर अपन आलेखमे एकरा महत्त्वपूर्ण स्थान देने छथि -
“गोसाञिक नाँओ” कार्तिक मासक सिमरिया कल्पवासमे विशेष रूपसँ पाठ होइत छल
मिथिलाक संस्कृतिमे, प्रतिदिन, विशेष रूपसँ कार्तिक मासमे, सभठाम, विशेष रूपसँ सिमरियामे, कल्पवासक अवधिमे गोसाञिक नामक पाठ करबाक आ सुनबाक परम्परा रहलैक अछि। एहि गोसाञिक ... -
हनुमानजीक धुजा गाड़बाक पूजा-पाठ
मिथिलामे सेहो बहुत गाममे पीपरक गाछ तर हनुमानजीक ध्वजाक स्थापित होइत अछि। ई ध्वज यद्यपि कोनो शनि अथवा मंगल दिनकें स्थापित कएल जा सकैत ... -
मिथिलामे रामनवमी-पूजाक संक्षिप्त विधि, (पाण्डुलिपि सँ सम्पादित)
सोना अथवा माँटिक प्रतिमा बनवा कए भोरेमे नित्यकर्म सम्पन्न कए आचमन करी। तकर बाद तामाक सराइ लए उत्तर मुँहें ठाढ भए सोना ...