होएत। एतए पंचमी विभक्ति मानि सीताकेँ मेनकाक पुत्री सिद्ध करबाक लेल जे कथा प्रचलनमे अछि से आदरणीय नहि। सीतायाः सदृशी भार्या त्रयमेकत्र दुर्लभम् मे सेहो सीताक समान भार्याक बात कहल गेल अछि। तें उपर्युक्त पंक्ति “प्राप्स्यस्यपत्यमस्यास्त्वं सदृशं रूपवर्चसा” मे अस्या शब्दमे पंचमी विभक्ति मानि सीताकेँ मेनकाक संतान मानब अनुचित अछि। तेँ एतए सादृश्यमे षष्ठी विभक्ति मानल जाएत। Continue Reading

Kumbhakarna sleeping

ब्रह्माजी ने कहा- हे वाणी सरस्वती, जैसा देवतालोग चाहते हैं, इस राक्षस की वैसी ही वाणी तुम बन जाओ।
सरस्वती ने यही काम किया। एक दिन सोना और छह महीना खाना खाने के बदले कुम्भकर्ण उलटा बोल गया- एक दिन खाना और छह महीना सोना।Continue Reading

वाल्मीकि-रामायण सबसे पुरानी प्रति

“संवत् 1076 अर्थात् 1019 ई. में आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी तिथि को महाराजाधिराज, पुण्यावलोक, चन्द्रवंशी, गरुडध्वज उपाधिधारी राजा गांगेयदेव के द्वारा शासित तिरहुत में कल्याणविजय राज्य में, नेपाल देश के पुस्तकालयाध्यक्ष श्रीआनन्द के लिए गाँव के एक टोला में रहते हुए पण्डित कायस्थ श्री श्रीकर के पुत्र श्रीगोपति ने इसे लिखा।”
यह तालपत्र में लिखित 800 पत्रों का ग्रन्थ नेवारी लिपि में है, जिसमें सातों काण्ड हैं। यह काठमाण्डू के वीर पुस्तकालय (राजकीय अभिलेखागार) में है, जिसकी फोटोप्रति बड़ौदा में ग्रन्थ सं–14156 है। इसके किष्किन्धाकाण्ड के अन्तमें एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुष्पिका (समाप्तिसूचक लेखीय वाक्य) है।Continue Reading

महावीर हनुमानजी

श्रीराम के बगल में बैठी हुई सीताजी ने इससे आगे का आशीर्वाद दे डाला कि हनुमानजी देवता के रूप में पूजित होंगे। जहाँ हनुमानजी का स्मरण किया जायेगा, वहाँ पेड़ों पर अमृत के समान फल लगेंगे, स्वच्छ जल का प्रवाह बहता रहेगा।Continue Reading

भण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इंस्टीच्यूट, पूना से वाल्मीकीय रामायण का आलोचनात्मक संस्करण प्रकाशित हुआ जो पाठ भेदों को समझने के लिए स्थानीय प्रक्षेपों को, अपपाठों को जानने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य है।Continue Reading

विलियम कैरी एसियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के सदस्य थे। वाल्मीकि रामायण का प्रकाशन गद्यानुवाद के साथ किया, जो 3 खण्डों में सेरामपुर प्रेस से 1806-07 में प्रकाशित हुआ।Continue Reading

Schlegel's Ramayan

1846 ई. में विलियम वॉन श्लेगल ने वाल्मीकि रामायण के दो काण्डों बालकाण्ड एवं अयोध्याकाण्ड का सम्पादन लैटिन अनुवाद के साथ किया।Continue Reading

वाल्मीकि रामायण का लाहौर संस्करण

पश्चिमोत्तर पाठ के मूल यहाँ संकलित हैं। इस संस्करण का भी हिन्दी अनुवाद नहीं हुआ है। काश्मीर का मुख्य रूप से पाठ होने के कारण यह अपनी विशेषता तथा प्राचीनता लिये हुए है।Continue Reading

valmiki Ramayana

पूर्वोत्तर का पाठ नेपाल, मिथिला, और बंगाल में प्रचलित हैं। इन तीनों का पाठ एक है। जहाँ कहीं भी थोड़ा बहुत पाठान्तर दिखायी देता है, उसमें भी अर्थ का अन्तर नहीं है। यह सबसे महत्त्वपूर्ण पाठ है।Continue Reading