ओरियण्टल इंस्टीच्यूट, बड़ौदा से वाल्मीकीय रामायण का आलोचनात्मक संस्करण प्रकाशित हुआ जो पाठ भेदों को समझने के लिए स्थानीय प्रक्षेपों को, अपपाठों को जानने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके संम्पादकों ने पाठान्तरों को एकत्र करने के लिए भारत भर से प्राचीन पाण्डुलिपियों का संकलन किया तथा उन्हें क साथ रखकर सभी श्लोकों के पाठान्तर दिये। उदाहरण के लिए बालकाण्ड के सम्पादन में 10 लिपियों की कुल 86 पाण्डुलिपियाँ संकलित की गयीं।

  1. शारदा-1
  2. नेवारी-2
  3. मैथिली- 4
  4. बंगाली- 4
  5. देवनागरी- 45
  6. तेलगु- 7
  7. कन्नड़- 1
  8. नंदिनागरी- 3
  9. ग्रन्थलिपि- 10
  10. मलयालम- 9

इन पाण्डुलिपियों के आधार पर वाल्मीकि रामाय़ण के विभिन्न पाठों की तालिका इस प्रकार दी गयी है।

रामायण के विभिन्न पाठ

यहाँ पर यह भी स्पष्ट किया गया है कि पश्चिमोत्तर शाखा की जो देवनागरी पाण्डुलिपियाँ मिलीं, और दक्षिण की शाखा की जो देवनागरी की पाण्डुलिपियाँ थीं, उनका सम्मिश्रण राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के क्षेत्र में हुआ, जिससे एक अलग शाखा का जन्म हुआ। उसे पश्चिमी पाठ माना गया। यह पश्चिमी पाठ उस क्षेत्र में अधिक प्रसिद्ध हुआ तथा इस पर अनेक भाष्य 17-18वीं शती में लिखे गये। मुंबई में जब मुद्रण कार्य हुआ तो इसी शाखा का उपयोग किया गया। फलतः 20वीं शती में गीता प्रेस के माध्यम से यह सर्वाधिक प्रसिद्ध पाठ हुआ। यहाँ तक कि शेष जो मैलिक तथा प्राचीन पाठ थे, वे भुला दिये गये। विदेशी आलोचकों ने रामकथा एवं वाल्मीकि रामायण पर जो जो प्रश्नचिह्न लगाये वे इसी पाठ से सम्बद्ध थे। अतः आम लोगों ने इसी पाठ को सबकुछ मान लिया।

जबरकि आवश्यकता इस बात की है कि वाल्मीकि-रामायण के जो प्राचीन पाठ हैं, उनका विवेचन किया जाये ताकि जितनी शंकाएँ खड़ी की जाती हैं सबका समाधान हो सके।

आगे यह स्पष्ट किया गया है कि चूँकि कन्नड़ और नंदि नागरी की पाण्डुलिपि का पाठ तेलगू लिपि की पाण्डुलिपि के समान ही था, अतः इन दोनों को सम्पादन के समय हटा दिया गया और अन्ततः कुल 37 पाण्डुलिपियों का उपयोग बालकाण्ड के सम्पादन में किया गया। इनमें काल की दृष्टि से इस प्रकार विभाजन किया गया-

  • शारदा-1 –   लगभग 100 वर्ष प्राचीन
  • नेवारी-  2 –  1020 ई. तथा 1675 ई.
  • मैथिली- 4-   360 ई., 1551 ई., 1831 ई. तथा 1836 ई.
  • बंगाली- 4  –   1688 ई, 1789 ई., 1832 ई, अज्ञात
  • देवनागरी- 15 – 1455 ई., 1594 ई., 1717 ई., 1774 ई, 1786 ई., 1796 ई., 1812 ई. 1831 ई., 1848 ई., शेष में लिपिकाल अज्ञात
  • तेलगू-  3  –   इनमें से एक(T1) लगभग 500 वर्ष पुराना
  • ग्रन्थ-  4 –    1818 ई. अन्य अज्ञात तिथि
  • मलयालम-   4  –   1512ई., 1690ई., 1823ई. अज्ञात

यहाँ हम स्पष्ट देखतें है कि नेवारी एवं मैथिली लिपियों की पाण्डुलिपि सबसे प्राचीन है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वाल्मीकि रामायण का पूर्वोत्तर भारत का जो पाठ है वह प्रामाणिक है।

इस आलोचनात्मक संस्करण में पाण्डुलिपियों का संकेत इस प्रकार किया गया है-

  • N     नेपाली
  • V     मैथिली
  • B     बंगला
  • S     शारदा
  • D     देवनागरी
  • T     तेलुगु
  • M    मलयालम
  • G     ग्रन्थलिपि

इस आलोचनात्मक संस्करण में निम्नलिखित प्रकाशित पाठों में श्लेकसंख्या, एवं सर्ग संख्या का तुलनात्मक तालिका भी दी गयी है।

  • मुंबई संस्करण- यह पश्चिमी पाठ का प्रतिनिधित्व करता है, जो वस्तुतः पश्चिमोत्तर पाठ तथा दक्षिणी पाठ का सम्मिश्रण है। यही संकरण वर्तमान में गीता प्रेस से प्रकाशित है।
  • कुम्भकोणम्- यह विशुद्ध दक्षिण भारतीय पाठ है
  • गोरैशियो संस्करण- यह पूर्वोत्तर भारत का पाठ है
  • लाहौर संस्करण– यह पश्चिमोत्तर भारत का पाठ है।
  • आलोचनात्मक संस्करण- ओरियण्टल इंस्टीच्यूट, बड़ौदा से प्रकाशित पाठ प्रस्तुत संस्करण का पाठ।
  1. बालकाण्ड
  2. अयोध्याकाण्ड
  3. अरण्यकाण्ड
  4. किष्किन्धाकाण्ड
  5. सुन्दरकाण्ड
  6. युद्धकाण्ड
  7. उत्तरकाण्ड

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *