सीताक अपनहिँ मुँहसँ सीताक जन्मक कथा
सीताक आत्मकथाक प्रसंग वाल्मीकि रामायणक अयोध्याकाण्डमे प्रामाणिक रूपसँ अबैत अछि। एतए सीता स्वयं अपन जन्म आ विवाहक प्रसंग इतिहास सुनबैत छथि। ई महामुनि अत्रिक आश्रमक कथा थीक, जतय हुनक पत्नी अनसूया सीतासँ पुछैत छथिन्ह जे अहाँ के थिकहुँ आ रामक संग अहाँक विवाह केना भेल?
इस प्रसंग गीता प्रेस, मुंबई संस्करण अर्थात् दक्षिणी-पश्चिमी पाठक वाल्मीकि रामायणमे अयोध्याकाण्डक 118म सर्गमे अछि। कुम्भकोणम संस्करण मे सेहो 118मे सर्गमे अछि। मिथिला, नेपाल, आसाम, बंगाल आ उड़ीसा क्षेत्रक पूर्वोत्तर भारतीय संस्करण जकर सम्पादन गोरैशियो कएने छथि, ओहिमे ई अरण्यकाण्डक सर्ग संख्या 3-4मे अछि। जखनि कि पश्चिमोत्तर पाठ अर्थात् लाहौर संस्करण में अरण्यकाण्डक तेसर सर्गक श्लोक संख्या 61सँ आरम्भ होइत सम्पूर्ण चारिम सर्ग धरि कहल गेल अछि। बड़ौदा ओरियंटल रिसर्च इंस्टीच्यूटसँ प्रकाशित वाल्मीकि-रामायणक आलोचनात्मक संस्करणमे ई सीता-अनसूया संवाद अयोध्याकाण्डक सर्ग संख्या 110मे अछि।
सीताक उत्पत्तिक अनेक कथा परवर्ती रामकथाक संग जुडल, जाहिमे रावण आ मन्दोदरीक सहयोगक कथा पर्याप्त प्रचलित रहल। आनन्द रामायणमे ई परवर्ती कथा आएल अछि।
जनक हर चलौलनि आ एकटा कन्या भूमिसँ उत्पन्न भेलीह आ थिकीह अयोनिजा सीता- ई कथासँ सभसँ बेशी विख्यात भेल आ प्रतिष्ठा पओलक। मुदा जनक हर किएक चलौलनि? एकर कथा कहल गेल जे राज्यमे अकाल पड़ल तँ जनकजी हर चलौलनि। की अकाल भेला पर राजाक द्वारा हर चलएबाक कोनो विधान अछि? अकाल पड़बाक कथा कतए सँ आएल?
की सीता माँटिक घैलमे छलीह? चित्रकार आ मूर्तिकारलोकनि अपन मनसँ सीताक उद्भव चित्र आ मूर्ति बनएबाक काल हरक फारक नीचाँ फूटल घैल देखबैत छथि, जाहिमे एकटा कन्याक अंकन करैत छथि। एहि अंकनक की स्रोत? की ई ओही आनन्द रामायणक कथाक पुनरावृत्ति तँ ने थीक जे मिथिलाक अपन कथा पर थोपल जा रहल अछि!
राजा जनक हर किएक चलौलनि?
वाल्मीकि-रामायण मे स्पष्ट उल्लेख अछि जे यज्ञ करबाक लेल वेदी शोधनक कार्य भए रहल छल। ओहिमे यजमानक द्वारा हर चलएबाक विधान आएल अछि। तें राजा जनक हर चला रहल छलाह। वाल्मीकि-रामायणमे केवल वेदीशोधनक लेल हर चलएबाक प्रसंग आएल अछि। किएक चला रहल छलाह से परवर्ती कालक जोड़ल खिस्सा थीक।
मिथिला क्षेत्रसँ उपलब्ध वाल्मीकि-रामायण मे एकटा कथा अछि जे सीता दिव्यकन्या छलीह। हुनक उत्पत्तिमे रावणक कोनो भूमिका नहि छल। वेदवतीक पुनर्जन्मक कथा सेहो मिथिलाक कथा नहिं थीक। मिथिलासँ उपलब्ध वाल्मीकि-रामायण मे ई श्लोक भेटैत अछि। स्वयं सीता अनसूयासँ कहैत छथिन्ह-
स सीराकर्षणं कर्तुं गतः काले पिता मम।
पत्नीभिः सह धर्म्याभिः स ददर्शाद्भुतं महत्।।7।।
अन्तरीक्षे च गच्छन्तीं दिव्यरूपां मनोरमाम्।
मेनकां वै ह्यप्सरसं द्योतयन्तीं दिशस्त्विषा।। 8।।
तां दृष्ट्वा रूपसम्पन्नां मन्मथस्य रतीमिव।
तस्यासीन्मानसीबुद्धिस्तदा धैर्य्यविचालिनी।।9।।
अस्यां नाम ममोत्पद्येदपत्यं कीर्तिवर्धनम्।
ममापत्यविहीनस्य महान् स स्यादनुग्रहः।10।।
अन्तरीक्षे च वागुच्चैरुवाचामानुषी किल।
प्राप्स्यस्यपत्यमस्यास्त्वं सदृशं रूपवर्चसा।।
(वाल्मीकि रामायण गौरैशियो संस्करण, पेरिस, 1845ई. पृ. 13-14. अरण्यकाण्ड, सर्ग-4, श्लोक- 7-11)
जखनि धर्मात्मा राजा जनक पत्नीसभक संग धर्मकार्य करबाक लेल गेल छलाह तँ ओ अद्भुत दृश्य देखलनि। ओ अद्भुत रूपसँ सम्पन्न मेनकाकेँ आकाशमार्गसँ जाइत देखलनि। ओहि मेनकाक रूप आ सौन्दर्यसँ दशो दिशा चमकि रहल छल। एहन मेनकाकेँ देखि राजा जनककेँ प्रसन्नता भेलनि आ ओ कामदेवक बाणसँ आहत भए गेलाह। हुनका मनमे भावना जगलनि जे हम निःसन्तान छी, हमरा एहने सुन्दरी सँ जँ संतति होइत तँ बड़ कृपा होइत। राजा जनक जखनहि ई मनमे सोचलनि तँ अंतरिक्षसँ अलौकिक शब्द भेल- अहाँकेँ एकरे समान संतान भेटत।
एतए अंतिम पंक्तिक अन्वय होएत- “अस्याः सदृशं अपत्यं त्वं प्राप्स्यसि।” एतए ‘अस्याःʼ शब्दमे षष्ठी विभक्ति मानव उचित होएत। एतए पंचमी विभक्ति मानि सीताकेँ मेनकाक पुत्री सिद्ध करबाक लेल जे कथा प्रचलनमे अछि से आदरणीय नहि। सीतायाः सदृशी भार्या त्रयमेकत्र दुर्लभम् मे सेहो सीताक समान भार्याक बात कहल गेल अछि। तें उपर्युक्त पंक्ति “प्राप्स्यस्यपत्यमस्यास्त्वं सदृशं रूपवर्चसा” मे अस्या शब्दमे पंचमी विभक्ति मानि सीताकेँ मेनकाक संतान मानब अनुचित अछि। तेँ एतए सादृश्यमे षष्ठी विभक्ति मानल जाएत।
राजा जनक गृहस्थ छलाह, निःसन्तान छलाह, हुनका मनमे ई भावना आएब स्वाभाविक छल। ई आकाशवाणी शीघ्र सिद्ध भेल। राजा जनक यज्ञ करबाक लेल वेदीक भूमि-शोधनक क्रममे हर चलबितहिँ रहथि कि एकटा कन्या माँटिसँ बहरएलीह।
क्रमशः…