मिथिला की उपासना-पद्धति में खासियत क्या है? इस प्रश्न पर हम विचार करते हैं तो पता चलता है कि मिथिला में पूजा-पाठ की परम्परा मध्यकाल के परिवर्तनों से प्रभावित नहीं हुआ है। यहाँ आज भी जो पूजा-विधि है वह आदिकाल की है। आपने देखा होगा कि मिथिला में सत्यनारायण कीContinue Reading

यह आलेख अहल्या-स्थान मन्दिर, अहियारी, दरभंगा से प्रकाशित अहल्या-संदेश (स्मारिका) में 2023ई. में प्रकाशित है। महाकवि विद्यापति ने भी ‘भूपरिक्रमणम्’ नामक ग्रन्थ में जनक के देश का विवरण दिया है इसके अनुसार बलराम नरहरि नामक देश को छोड़कर पाटलि नामक देश पहुँचे जहाँ उन्होंने देवी की पूजा कर नगर कीContinue Reading

misunderstanding about jiutiya vrat

भ्रान्ति तब आरम्भ हुई जब इसी जिताष्टमी या जीमूताष्टमी के साथ राधाकान्त देव ने लक्ष्मीव्रत का उल्लेख कर दिया।
लक्ष्मीव्रत के लिए ‘निर्णयामृतसिन्धु’ से उद्धरण दिया कि अष्टमी के चन्द्रोदय का समय यानी अर्धराति में यदि अष्टमी हो तो लक्ष्मीव्रत होगा और यदि सूर्योदय के समय अष्टमी रहे तो वह लक्ष्मी जीवित्पुत्रिका हो जाती है।
जो पण्डित धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों की भाषा और शैली नहीं जानते थे उन्हें अब यहाँ भ्रान्ति उत्पन्न हुई। उन्होंने ‘जीवित्पुत्रिका’ शब्द देखकर इसे जीमूतवाहन-व्रत समझ लिया। नामसाम्य के कारण ऐसा भ्रम उत्पन्न हुआ होगा।Continue Reading

parva nirnay

दरभंगा में 1932 ई. में तत्कालीन स्थापित पण्डितों का योगदान मिथिला की धर्मशास्त्र-परम्परा में अविस्मरणीय है। उस समय के प्रख्यात ज्योतिषी पं. कुशेश्वर शर्मा, जिन्होंने 1921 ई. से 1931 ई. तक मिथिलादेशीय पंचांग का भी निर्माण किया था, पर्वों के निर्णय के लिए उस समय के विख्यात धर्मशास्त्रियों का आह्वान किया और एक एक पर्व पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर प्रमाण के साथ अपना मन्तव्य देने का अनुरोध किया। इसके अन्तर्गत कुल 83 पर्वो पर निवन्ध आये, जिनमें कुछ विषयों पर दो दो विद्वानों ने पृथक् पृथक् अपना निर्णय लिखा।Continue Reading

मातृनवमी

अन्वष्टका श्राद्ध में माताओं का स्थान प्रथम दिया गया है। यही मातृनवमी का शास्त्रीय पक्ष है। Continue Reading

एक विकल्प है- सनातन धर्म की अवधारणाएँ। वे अवधारणाएँ, जो वसुधैव कुटुम्बकम्, का उद्घोष करती हैं क्या वे क्या हमें फिर हमारे अकेलेपन को दूर नहीं कर सकती हैं! सनातन धर्म में कोई अकेला नहीं होता- निर्जन रेगिस्तान में भी उसके साथ देवता होते हैं, पितर होते हैं। देवता-पितर के बल पर वह हमेशा सदल-बल होता है, उसमें हिम्मत होती है, अकेले में भी वह भीड़ में होता है, ऐसी भीड़ में जहाँ उसके सारे के सारे रक्षक होते हैं। Continue Reading

एक बेर गोनू झा भोज करबाक घोषणा कएलनि- ‘हम परसू भरि गामक लोककेँ अगबे मधुरक भोज खुआएब।’ गामक लोक जमानि फाँकब शुरू कए देलनि- “गोनू झा अगबे मधुरक भोज करताह तँ खूब खाएब।” किछु गोटे प्रस्ताव देलनि जे मधुरक संग कनेक चूड़ा सेहो भए जाए तँ कोन हर्ज? आ दहीContinue Reading

सनातन धर्म पर उँगली उठाकर उसे बरबाद करने का एजेंडा चलाने वाले लोगों को भड़काते रहते हैं कि सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं, एक-एक अच्छत से से पूजा करें तों क्विंटल भर चावल लग जायेंगे…देश की जनता जहाँ भूखी है…वहाँ एक आदमी एक क्विंटल चावल एक बार कीContinue Reading

सनातन धर्म में परिवर्तन की दिशा

सनातन धर्म में भी हर शताब्दी में समाज की आवश्यकता को देखते हुए हमारे सन्तों-महात्माओं ने परिवर्तन किया है। यहाँ उपासना-पद्धिते में आये परिवर्तन को रेखांकित किया गया है।Continue Reading

manuscript from Mithila

गोनू झाक व्यक्तित्व आ ओकर स्रोत मिथिलामे पंजी अछि। एहि पंजीमे 1. अपन नाम, 2. पिताक नाम 3. मूल गामक नाम, 4. प्रव्रजित गामक नाम, 5. मातामहक नाम, 6. मातामहक मूल गाम आ 7. प्रव्रजित गामक नाम, 8. मायक मातामहक नाम, 9. हुनक मूल गाम आ 10. प्रव्रजित गामक नामContinue Reading