एक बेर गोनू झा भोज करबाक घोषणा कएलनि- ‘हम परसू भरि गामक लोककेँ अगबे मधुरक भोज खुआएब।’

गामक लोक जमानि फाँकब शुरू कए देलनि- “गोनू झा अगबे मधुरक भोज करताह तँ खूब खाएब।” किछु गोटे प्रस्ताव देलनि जे मधुरक संग कनेक चूड़ा सेहो भए जाए तँ कोन हर्ज? आ दही तँ भेटिए जाएत। तखनि दही चूड़ा आ मधुरक संग नीक भोज रहत!

गोनू झा मानि गेलाह। गौंआ सभ हुनकासँ पुछए लगलनि- जे कोन-कोन मधुर रहतैक?

गोनू झा कहि देथि- सभ मधुरक जड़िए के व्यवस्था करैत छी। जनिका जे नीक लगतनि से खएताह।

एहिना चूड़ा पर सेहो गप्प चलए तँ बाजि उठथि- सभ चूड़ाक जड़ि खुआएब। जनिका जे नीक लगतनि से खएताह।

लोक सभ चपचपाएल रहथि जे मधुर आ चूड़ाक जड़िए भेटि जाएत तँ ओ तँ अवश्य विशिष्ट होएतैक।

अंततः भोजक दिन आएल। सभ नोंतहारी पात लगाए बैसलाह। गोनू झा परसए लगलाह। एक चङेरा मे धान छल आ दोसर मे कुसियारक जड़ि- ओहिना सीर-लागल। एक एकटा टुकड़ी परसए लगलाह। धान आ ओ कुसियारक जड़ि सभक पात पर पड़ए लागल।

नौंतहारी खौंझाए बजलाह- ई की यौ गोनू। यैह थीक अहाँक मधुरक जड़ि! आ चूड़ाक जड़ि सेहो यैह थीक ?

तँ कोन बेजाए। सभटा मधुरक जड़ि थीक कुसियार, आ ओकर जड़ि हम परसि रहल छी, तँ सभ मधुरक जडि भेल ने! आ सभ प्रकारक चूड़ा धाने सँ बनैत अछि। माने धान ओकर जड़ि थीक। सैह तँ हम परसि रहल छी। अहाँलोकनि बैसल रहू- दहीक जड़ि सेहो आबि रहल अछि।

गौंआ सभ पात पर बैसि गेल रहथि। सोचलनि जे दहियो आबि जाएत तँ ओहीसँ किछु पेट भरि उठि जाएब।

थोड़ेक कालक बाद एकटा चँगेरा आएल जाहिमे घासक मुट्ठी बान्हि-बान्हि राखल छल। एक गोटेक पात पर जहाँ ने पड़ल आ कि ओ छटपटाए उठलाह- हमरालोकनि की गाय-महींस छी?

– देखू। दही बनैत अछि दूधसँ, तँ दहीक जड़ि भेल- दूध। दूधक जड़ि भेल- गाय-महींस। गाय महींस सेहो घास खाइत अछि, तखनि दूध दैत अछि। तें दूधक जडि वास्तवमे थीक यैह घास। हम सभ वस्तुक जडि खोएबाक नोंत देने छी। खाइ जाउ!

ई वास्तवमे एकटा बोध कथा थीक।

ई 19म शतीक अंतमे बड़ चर्चित भेल रहए। जखनि दयानंद सरस्वती आर्य समाजक माध्यमसँ वेदक प्रचार कर लगलाह तँ सनातनी लोकनि ओकर खण्डन करबाक लेल ई कथा सुनाओल करथि। हुनकालोकनिक कथन छल जे वेदसँ निकलि कए स्मृति, पुराण, आगम, महाभारत, रामायण आ बादमे अनेक ग्रन्थक रचना भेल। सभटा जड़ि वेद थीक। मुदा एकरा सभकेँ छोड़ि जँ केवल वेदे केँ मानए लागी तँ सनातन धर्मक लोप भए जाएत।

वास्तव मे स्थित सैह छल। सनातन धर्मक जे विशाल वृक्ष छल से ठारि-पातसँ रहित एकटा ठुट्ठ बचि गेल। ईसाईसभ ओहन स्थितिसँ फायदा उठाए लोकसभकें ठकि खूब ईसाई बनौलक।

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