गोनू झाक व्यक्तित्व आ ओकर स्रोत

मिथिलामे पंजी अछि।

एहि पंजीमे 1. अपन नाम, 2. पिताक नाम 3. मूल गामक नाम, 4. प्रव्रजित गामक नाम, 5. मातामहक नाम, 6. मातामहक मूल गाम आ 7. प्रव्रजित गामक नाम, 8. मायक मातामहक नाम, 9. हुनक मूल गाम आ 10. प्रव्रजित गामक नाम रहैत अछि। ई 10 टा सूचनाक संकलन थीक पंजी। एकर अतिरिक्त बहुत रास विशिष्ट उपाधि, पदनाम सभ सेहो भेटैत अछि। पंजी एतबे थीक। एकर अतिरिक्त आर जे किछु कहल जाइत अछि से एकर विमर्श थीक।

एकर विमर्शक दूटा दृष्टि अछि- सामाजिक आ ऐतिहासिक। सामाजिक दृष्टिसँ एकर विमर्श करैत काल ई प्रथा, व्यवस्था, कुलीनता, अनुचित वैवाहिक सम्बन्ध, ऊँच-नीच कुलक विमर्श करबाक स्रोत थीक तँ ऐतिहासिक दृष्टिसँ विमर्शक अवसर पर ई मात्र सूचनाक स्रोत थीक। दूनूक बीच कोनो घालमेल करब विमर्शकारक सीमा मानल जएबाक चाही।

ऐतिहासिक दृष्टिसँ पंजी पर विमर्श करैत काल हमरालोकनिकें देखए पड़त जे इतिहासक अनेक स्रोत होइत छैक- ग्रन्थमे उल्लेख, पाण्डुलिपिक पुष्पिकामे उल्लेख आदि। एहने एकटा स्रोत पंजी सेहो थीक। भारतमे आन ठाम एहि प्रकारक पंजी उपलब्ध नहि अछि जकरा आधार पर व्यक्तित्व आ कालक निर्धारण कएल जा सकए। मिथिलाक ऐतिहासिक पुरुषक व्यक्तित्व निर्धारणक लेल ई विशिष्ट स्रोत मिथिलामे अछि जकरा लेल हमरालोकनिकें गौरव होएबाक चाही।

इतिहासक स्रोतक रूपमे पंजीक अपन सीमा अछि। बहुतो अंश आइ हमरालोकनिकें उपलब्ध नहि अछि। बहुतो ठाम परवर्ती पंजीकार द्वारा नाममे एक-आध अक्षरक परिवर्तन भेल अछि। कोनो पंजीमे जँ एक भाइक शाखा उल्लेख नहि अछि तँ ओतए विमर्श करबाकाल भ्रम होइत छैक।

वर्तमानमे गजेन्द्र ठाकुरक द्वारा सम्पादित मिथिलाक पंजी तीन भागमे श्रुति प्रकाशन सँ प्रकाशित अछि। गजेन्द्र ठाकुरक उपर्युक्त जीनोम मैपिंग कें पंजीक आधार-ग्रंथ कहबाक चाही कारण जे एहिमे 18म शतीक लिखल जे पाण्डुलिपि जेना छलै, ओकरा सोझा उतारि देल गेल अछि। एकर उपयोग करबाक लेल पंजीलेखनक शैलीक बोध होएब आवश्यक अछि।

Panji Prabandh Volume I: Genealogical Mapping of Maithil
Brahmins of India and Nepal

Panji Prabandh Volume II: Genealogical Mapping of the Maithil
Brahmins of India and Nepal

डा. योगनाथ झाक पंजी-प्रबन्ध सेहो 3 भागमे अंकित प्रकाशन दरभंगासँ प्रकाशित अछि। एहिमे लेखक बहुत रास बात स्पष्ट कएने छथि आ ताहि कारणें ई सामान्य पाठकक लेल सेहो उपयोगी भए गेल अछि। ई दूनू टा स्रोत-ग्रंथ थीक।

तें हमरालोकनिकें ई देखए पड़त जे पंजी सूचनाक एकटा स्रोत मात्र थीक। जखनि एकर उपयोग ऐतिहासिक विमर्थक लेल कएल जाए तखनि एकर सामाजिक पक्ष पर कोनो विमर्श नहि होएबाक चाही। उदाहरणक लेल आदित्यसेनक अफसद अभिलेखकें लेल जाए। ओ एकटा मन्दिरक निर्माण आ पोखरिक निर्माणक अवसर पर लिखाओल गेल छल। मुदा इतिहासक दृष्टिसँ ओकर महत्त्व छैक जे गुप्तोत्तरकालमे मगधक इतिहास पर ओ सामग्री दैत अछि। ओहि सामग्रीक विवेचन करबाक बेर जँ केओ इतिहासकार आदित्यसेन द्वारा मन्दिर-निर्माणक सार्थकता पर विवेचन करए लागथि तँ एकरा पारिभाषिक शब्दमे अकाण्डप्रथन कहल जाएत।

मिथिला आ मैथिल लेखकक संग ई एकटा ग्रन्थि बनि गेल अछि जे जखनि कखनो पंजीक उपयोग इतिहासक विवेचन करबाक लेल होमए लगैत अछि तँ ओ एकर सामाजिक पक्ष केँ लए एकरा प्रथा आ व्यवस्था मानैत एकरा खारिज करबाक अथक प्रयास करैत छथि। पंजीक उत्तरवर्ती सामाजिक प्रभाव जे रहल हो, मुदा एकर ऐतिहासिक उपयोगिता आ इतिहासक स्रोतक रूपमे एकर प्रामाणिकता नै बिसरल जा सकैत अछि।

शोधक उचित दिशा ओएह थीक जे सामग्रीक एक दृष्टिसँ विवेचन करबाक क्रममे ओकर दोसर दृष्टिसँ विवेचन नै करबाक चाही। दियासलाइ अहाँ लग अछि, अहाँक विवेक पर निर्भर करैत अछि जे एहिसँ दीप जराबी वा घरमे आगि लगाबी।

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