वाल्मीकि रामायण के प्रमुख दो पाठ हैं- औत्तराह पाठ तथा दाक्षिणात्य पाठ। उत्तर भारत का पाठ औत्तराह कहलाता है तथा दक्षिण भारत का पाठ दाक्षिणात्य।
औत्तराह पाठ के भी तीन अंतरवर्ती स्वरूप हैं- पूर्वोत्तर का पाठ, पश्चिमोत्तर पाठ, पश्चिम पाठ।
पूर्वोत्तर का पाठ नेपाल, मिथिला, और बंगाल में प्रचलित हैं। इन तीनों का पाठ एक है। जहाँ कहीं भी थोड़ा बहुत पाठान्तर दिखायी देता है, उसमें भी अर्थ का अन्तर नहीं है।
पश्चिमोत्तर का पाठ काश्मीर का पाठ माना जा सकता है। इस क्षेत्र से शारदा लिपि की प्राचीन पाण्डुलिपियाँ मिली है। इस पाठ का प्रकाशन लाहौर से हुआ है, जो रामायण का लाहौर संस्करण कहलाता है। इसके प्रमुख संम्पादक पं. भगवद्दत्त रहे हैं।
रामायण के दाक्षिणात्य पाठ तथा काश्मीर के पश्चिमोत्तर पाठ का मिश्रित रूप हमें राजस्थान तथा गुजरात के क्षेत्र में मिलता है, इसे विद्वानों ने औत्तराह पाठ का पश्चिमी पाठ माना है।
पश्चिमोत्तर पाठ के मूल यहाँ संकलित हैं। इस संस्करण का भी हिन्दी अनुवाद नहीं हुआ है। काश्मीर का मुख्य रूप से पाठ होने के कारण यह अपनी विशेषता तथा प्राचीनता लिये हुए है। पाठकों को जो काण्ड पढना हो उस पर क्लिक करेंगे तो पुस्तक खुल जायेगी जिसे ऑनलाइन भी पढ सकते हैं तथा पूरा का पूरा डाउनलोड भी कर सहेज सकते हैं। डाउनलोड करने के बाद प्रिंट निकालकर उपयोग किया जा सकता है।