मित्रमिश्र संकलित धर्मशास्त्रीय ग्रन्थ वीरमित्रोदय के पूजा प्रकाश नामक चौथे खण्ड में भगवान् आदित्य की उपासना का प्राचीन विधान संकलित किया है। इसमें एक विशिष्ट स्तुति मिली है। आप सभी छठ पूजा के अवसर पर इसका पाठ कर लाभ उठायें-
नमस्ते विष्णुरूपाय नमस्ते ब्रह्मरूपिणे॥
सहस्ररश्मये नित्यं नमस्ते सर्वरूपिणे।
नमस्ते रुद्रवपुषे नमस्ते भक्तिवत्सल॥
पद्मनाभ नमस्तेऽस्तु कुण्डलाङ्गदभूषण।
नमस्ते सर्वलोकेश सप्तानामपि बुध्यसे॥
सुकृतं दुष्कृतं चैव सर्वं पश्यसि सर्वदा।
सर्वदेव नमस्तेऽस्तु प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तेऽस्तु प्रभाकर नमोऽस्तु ते।