अप्रकाशित कृतिक विवरण
मैथिल दुर्गादत्त ओ हुनक छन्दःशास्त्रीय ग्रन्थ वृत्तरत्नावली
छन्दःशास्त्रक रचनाक परम्परा मिथिलामे प्राचीन काल सँ रहल अछि। हलायुध (11म शती), रविकर मिश्र, दामोदर मिश्र, हरिहर, रमापति उपाध्याय, गंगादास, कालिदास मिश्र, म.म. भीष्म मिश्र, राघव झा, विद्यानाथ मिश्र, जानकीनन्दन कवीन्द्र, केशव, मधुसूदन, चिरंजीव, बबुजन झा, वसंत मिश्र आदि मैथिल रचनाकार भेल छथि, जे छन्दःशास्त्र पर अपन लेखनी चलौलनि। मिथिलाक छन्दःशास्त्रक परम्परा पर विशेष अध्ययनक लेल डा. त्रिलोकनाथ झाक पुस्तक Contribution of Mithila to Sanskrit Kavyas and Sahityasastra पुस्तक द्रष्टव्य अछि। इ दिल्लीक नाग प्रकाशन सँ 1995ई.मे प्रकाशित अछि।
एहि परम्परा मे दुर्गादत्तक वृत्तमुक्तावलीक प्रसंग चर्चा एतए अपेक्षित अछि। दुर्गादत्तक नामसँ एक पंडित म.म. बच्चा झाक पिता सेहो छलाह। बहुत गोटे भ्रमसँ हिनकहि वृत्तमुक्तावलीक रचनाकार मानि लैत छथि। History of Tirhut (पृ. 127) मे कहल गेल अछि जे हिनक समय एखनि धरि निर्धारित नहिं भए सकल अछि मुदा हिनका 16म शतीसँ पूर्वक नहिं मानल जाए सकैत अछि।
हिनक परिचय सम्बन्धमे Migration and Achievement of Maithil Panditas मे डा. जे. सी. झा बड़ भ्रम उत्पन्न कएने छथि। ओ दुर्गादत्त झाक समय 1750सँ 1820 दैत छथि आ तखनि हुनका रत्नपाणिक पुत्र आ म.म. बच्चा झाक पिता मानि लेने छथि। संगहि कालीप्रतिष्ठा आ वृत्तमुक्तावलीक दूनूक रचनाकार एही दुर्गादत्त केँ मानि लेने छथि। वस्तुतः नवानीक दुर्गादत्त झा उपाधि वाला थिकाह आ वृत्तमुक्तावलीक रचनाकार दुर्गादत्त मिश्र थिकाह जेना कि डा. श्याम नारायण सिंह History of Tirhut मे लिखैत छथि।
म.म. हरप्रसाद शास्त्री वृत्तमुक्तावलीक रचयिता दुर्गादत्त कें बुंदेला राजा हिन्दुपतिक आश्रयमे मानने छथि।
Vrtta-muktavali is by Maithila Durga-datta (I.0. Catal, 1113). The author was patronised by Hindu-pati, a raja of the Bundela tribe. The first king of the dynasty was Campati-rao; his son Chatra-sala; his son was Sabha- simha. (A Descriptive Catalogue Of The Sanskrit Manuscripts 1931 Vol. VI Vyakarana Royal Asiatic Society MM Haraprasada Shastri, by Royal Asiatic Society MM Haraprasada Shastri)
वास्तविकता अछि जे वृत्तमुक्तावलीकार दुर्गादत्तक सम्बन्धमे जे किछु लिखल गेल अछि से पाण्डुलिपि-विवरणीक आधार पर। एतए हमरा एहि ग्रन्थक एक पाण्डुलिपि उपलब्ध अछि जे संवत् 1866मे भराम गाम मे रामवत्स नामक व्यक्ति द्वारा लिपिबद्ध कएल छल। तदनुसार एकर लेखनकाल 1810ई. थीक। एकर पुष्पिकामे एहि प्रकारें अछि-
इतिश्रीमैथिलदुर्गादत्तविरचितायां वृत्तमुक्तावल्यां वृत्तबोधको नाम तृतीयः प्रयासः। शुभमस्तु संवत्सरः 1866 मिथिलादेशे भरामग्रामे लिखितोऽयं ग्रन्थो रामवत्सेन।
सम्प्रति ई पाण्डुलिपि जम्मूक रघुनाथ टेम्पुल ट्रस्टक पुस्तकालयमे सुरक्षित अछि आ एकर डिजिटल कापी ई-गंगोत्रीक द्वारा बेबसाइट पर उपलब्ध कराओल गेल अछि। एहि पाण्डुलिपिक पहिल पत्र अनुपलब्ध अछि आ ग्रन्थक 10म श्लोकक उत्तरार्द्धसँ उपलब्ध अछि।
ई ग्रन्थ तीन ‘प्रयास’ नामक अध्यायमे विभक्त अछि। प्रथम प्रयासमे वर्ण, लघु-गुरु विवेचन, मात्रा, प्रस्तार आदिक उल्लेख अछि आ दोसर प्रस्तारमे मात्रिक छन्दसभक लक्षण कहल गेल अछि। एहिमे ग्रन्थकार लिखैत छथि जे छन्दक नवीन पद्य बनाए राजाक वर्णन करबाक लेल दोसर लक्ष्यक संग छन्दक लक्षण लिखैत छी-
अथ नूतनपद्येन वर्णनाय महीपतेः।
लक्ष्यान्तरेण सहितं छन्दोलक्षणमुच्यते।।
उदाहरणस्वरूप उपगीति छन्दक उदाहरण देखल जाए-
हिन्दूपतेतिशोणस्तावकभालस्थितो बिन्दुः।
उदयाद्रिशृङ्गसङ्गिश्रीसूर्यस्य श्रियं जयति।।
अर्थात् हे राजा हिन्दूपति! अहाँक कपार पर जे तिलक अछि से उदयाचल पर्वतक चोटीपर स्थित सूर्यदेवक शोभाकेँ जितैत अछि।
एहिना ओ राजाक गुणगान करैत कालिञ्जर नामक दुर्गक उल्लेख करैत छथि-
तव कालञ्जरदुर्गं कैलाशनगादीशदुर्गमं मन्ये।
श्रीनीलकण्ठवासः कथमिह पातोन्यथा हि तमुपेक्ष्यः।।
दोहाक उदाहरण दैत लिखैत छथि-
यशोविशोभितविधुकला धवलीकृतसंसार।
श्रीहिन्दूपतिभूपते चिरञ्जीवि सदुदार।।
सोरठाक लक्षण दए ओकर उदाहरण दैत छथि-
वारिधयो भुवि सप्त कथयन्तीति न केधुना।
तत्तु यशःपथिकेन दृष्टन्ते नृप तेमुना।।
एहि देसर प्रयासमे आर्या, गीति. उपगीति, विगाथा, गाथिनी, सिंहनी, दोहा, सोरठा, दीपक, आभीर, हालि, छत्ता, पादाकुलक, अलिला, प्रज्झटिका, सिंहावलोकित, कुण्डलिया, रोला, चौपैया, छप्पय, हरिगीतिका, मरट्टा, पद्मावती, त्रिभङ्गी, आदि छन्दक विवेचन अछि। तेसर प्रयासमे वर्णवृत्तक लक्षण आ उदाहरण अछि। सभ उदाहरण में रचनाकार अपन आश्रयदाता राजा हिन्दुपतिक नाम कोनो ने कोनो शब्दें लैत छथि।
एहिना म.म. भीष्ममिश्रक वृत्तदर्पणक दूटा पाण्डुलिपि उपलब्ध अछि।