बिप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार
भगवान् श्रीराम के अवतार लेने के बारे में गोस्वामीजी कहते हैं कि वे ब्राह्मण, गाय, देवता तथा संत की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं।
स्पष्ट है कि जो लोग इस पृथ्वी पर कष्ट पाते हैं और कष्ट का अंत करने के लिए भगवान् को पुकारते हैं, उन्ही के हित के लिए वे मनुज का अवतार लेकर उनकी सहायता करते हैं। रामचरितमानस में स्पष्ट कहा गया है- सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना (सुंदरकाण्ड, 53) भगवान् उन्हीं की सहायता करते हैं, जो उनकी भगवत्ता पर विश्वास करते हैं। जिन्हें विश्वास ही नहीं है, उसके लिए वे क्यों अवतार लें भला?
रामचरितमानस भक्तिप्रधान ग्रंथ है। यहाँ भक्ति को सभी प्रकार के कष्टों को दूर करनेवाला कह गया है। रामावतार के सम्बन्ध में स्पष्ट कहा गया है कि देवताओं ने जब भगवान् विष्णु से प्रार्थना की तब वे रावण को मारकर पृथ्वी पर परपीडन की घटनाओं को दूर करने के लिए अवतार लिया। उन्होंने परपीड़क रावण को मारा। जिस रावण ने अपने अहंकार में चूर होकर अपनी बहन को भी विधवा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, उस रावण को मारा किन्तु उसी के भाई विभीषण जो शरणागत हुए उन्हें राजा बना दिया।
इस प्रकार इस पंक्ति से स्वामीजी स्पष्ट संकेत करते हैं जो संसार में पीड़ित हैं और अपनी पीड़ा के निवारण के लिए भगवान् का स्मरण करते हैं, उनकी भक्ति करते हैं, उऩके लिए भगवान् मनुष्य का रूप धारण करते हैं।
यहाँ किसी भी जाति का उल्लेख नहीं है। तुलसीदास कहते हैं कि जब जब धर्म की हानि होती है तो आसुरी प्रवृत्ति बढ़ती है। लोगों में अभिमान बढ़ता है। अनीति बढती है। अनीति से प्रभावित होते हैं वे लोग जो नीति पर चलते हैं। विप्र, गाय, देवता और पृथ्वी पीडा का अनुभव करते हैं तब उनकी रक्षा के लिए असुरों का संहार करना होता है औऱ ज्ञान की जो परम्परा है, उसकी रक्षा करनी होती है, उसी के लिए भगवान् का अवतार होता है।
तुलसीदास कहते हैं- विप्र इसलिए श्रेष्ठ है, क्योंकि उसके पास तपोबल है- तपबल बिप्र सदा बरियारा। तिनके कोप न कोउ रखबारा। वह तपोबल क्या है? यम. नियम आदि योग के आठ अंग तपोबल है। किसी दूसरे को कष्ट न देना तपोबल है। अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, आदि धर्म का आचरण करना तपोबल है। गोस्वामीजी ने उन्हीं को बिप्र कहा है, जो धर्म के सभी लक्षणों का पालन करते हैं। गोस्वामीजी ने रामचरितमानस में विप्र के जिस रूप का वर्णन किया है, उसे निभाना साधारण बात नहीं है। जो वेद-ज्ञान से हीन हैं, विषय-भोग में जिनकी रुपचि लगी है, ऐसे विप्र शोचनीय हो जाते हैं- “सोचिय बिप्र जो बेद बिहीना। तजि निज धर्म बिषय लयलीना।।“
इसलिए यदि ऐसे परोपकारी, धार्मिक, सांसारिक सुख से दूर रहने वाले विप्र की रक्षा के लिए भघवान् अवतार लेते हैं तो क्या बुराई है।
जो लोग इस पंक्ति को लक्ष्य कर तुलसीदास पर कीचड उछालने लगे हैं, वे अपनी मूर्खता दिखा रहे हैं। उन्हें रामचरितमानस के अनुसार विप्र के कर्तव्यों का अवलोकन करना चाहिए।