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घुरि आउ कमला (मैथिली दीर्घकथा) –भवनाथ झा

By Bhavanath Jha
December 28, 2021
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घुरि आउ कमला आवरण

डिजिटल प्रकाशन

एक नगरमे एक राजा रहथि, हुनक यश दूर-दूर धरि पसरल छलनि। से सूनि कए आन-आन नगरसँ लोक सभ आबि ओतए बसए लागल। राजाक आमदनी बढ़ल गेलनि। ओ पहिनेसँ आर बेसी भोग-विलासमे लागि गेलाह। नवघरिया सभक द्वारा अपन-अपन नगरसँ आनल वस्तुजात सभक उपभोग बढैत गेलनि। पछिमाहा दारू आ दछिनाहा बुलकीवाली सभक चसक लागि गेलनि। आब ओ की तँ शिकार खेलाथि, नहि तँ अन्नरक कोठामे जमल-रमल रहथि। राज-काजक सभटा भार देवानजी पर छलनि। ओ बड़ बुधियार रहथि आ मुँहगर लोकसभ सुखी सम्पन्न छल तें नीक जकाँ दिन बितल जाइत रहनि।

मुदा, एक बेर राजमे रौदी भेल। इनार पोखरि सभ सुखा गेलै। पुक्खो रुक्खे चल गेलै; लोक अन्न पानि बेतरेक मरए लागल। राजाकें चाँकि भेलनि। एहि आफदमे लोकक रक्षा लेल पोखरि खुनबए लागलाह। राजाक बखारी खुजल। तिनसाला बासमती चाउर, जन कें बोनि भेटए लगलैक। अन्न तँ भेटलै मुदा पानि लेल लोक बेलल्ले रहल। दू चारि रजकूप टा टेक धएने छलैक। बाँकी सभमे चट्टा पड़ि गेल रहैक। माल-जाल सभ किछु दिन पोखरिक घोर मठार पानि पीलक मुदा बादमे ओहो सुखाए गेलै। चमरखल्ली गन्हाए लागल।

लोक सभकें आस लागल रहै जे पोखरि खुनाएत तँ पानिक सोह फुटतैक। मुदा से नहि भए रहल छलैक। सोह तँ दूर, गिलगर माँटियो नै अभरि रहल छलैक। राजा सभ दिन साँझके अपनहि जा कए देखथि आ निरास भए घूरि जाथि। लोक सभ बाजए लागल जे कमला माइक कोनो अनठ भेलनि तें रूसि रहलीह। 

राजाक आढ़ति भेल। सभठाम कमला माइक पूजा हुअए लागल। पाठी कबुला कएल गेल। आन-आन नगर सँ भाँति-भाँतिक धामि सभ बजाओल गेलाह। केओ धानक जुट्टी, तँ केओ डाला भरि पान आ डाला भरि मखान चढओलनि, मुदा कोनो फल नहि। एक गोटे कहलनि जे कमला माइक सुखाएल धारमे सोनाक माछ गाड़ल जाए।’ ई सुनितहि रानी झट दए अपन खोपासँ माछ निकालि धामिक आगाँ राखि देलनि। एहि टोनापर सभक विश्वास रहैक। जन सभ रातिमे सपना देखए लागल जे कोदारिक छओ लगितहि पानिक तेहन बमकोला छुटलै जे सभ कोदारि छोड़ि-छाड़ि भागि रहल अछि, जेना धरती फाटि गेल होइक। लोकक भरोस बढ़ल गेलै। दिन बेरागन देखि कए नगरक पुबरिया धारमे एक हाथ गँहीर, एक हाथ नाम आ एक हाथ चाकर खाधि खूनल गेल। ओहिमे राजा अपनहि हाथें माछ गाडलनि। दोसर दिन जन सभ दुन्ना जोश सँ माँटि कोड़ए लागल, मुदा सभ व्यर्थ। पोखरि एक बाँस गँहीर भए गेल रहैक, तैयो माटि ठक-ठक करै। राजा बड़ चिन्तित भेलाह। रातुक निन्न बिलाए गेलनि। कने काल लेल आँखि लागियो जाइन तँ तेहन ने’ सपना देखए लागथि जे चेहा कए उठि जाथि।

एही हालमे एक राति राजा सपनामे सुनलनि जे केओ स्त्री हिचुकि-हिचुकि कए कानि रहल अछि। राजा चेहा कए उठलाह। सपना सत्त बुझएलनि। भेलनि जे रानी कनैत छथि। मुदा नहि, रानी सूतलि रहथि। तखनि राजाकें छगुन्ता लगलनि। एक बेर इच्छा भेलनि जे रानीकें उठाए दियनि, मुदा फेर सोचलनि जे इहो तँ कइएक राति सँ जगरने कए रहल छथि, तें जँ निन्न भेल छनि तँ थोड़ेक काल सुतए दैत छियनि। राजा उठलाह। चारूकात अकानलनि। कानब बंद भए गेल रहैक। जखनि कोनो भाँज नहि लगलनि तँ फेर सूति रहलाह। थोड़ेक कालमे फेर कानब सुनलनि। एहिना, जहाँ ने राजाकें आँखि लागनि कि कानब सुनथि। उठि कए बैसथि की ओ आवाज बिला जाइ। राजा चिन्तित भेलाह। भिनसरे धामि सभकें बजाए कहलथिन। ओ लोकनि टोना-टापरमे लागि गेलाह। कते कँटैल, बङौर आ मरिचाइ आगिमे झोंकल गेल, तकर ठेकान नहि। मुदा सभ व्यर्थ।

एहिना कतोक दिन बीति गेल। एक राति राजाकें बुझएलनि जे हुनकर पलङरी लग एकटा स्त्री ठाढ़ि अछि। ओकर एक हाथमे धानक जुट्टी छैक आ दोसरमे भेटक फूल। लाल रङक पटोर पहिरने अछि आ गरदनिमे मखानक फोंकाक माला लटकल छैक। ओएह हिचुकि हिचुकि कानि रहल अछि।

राजा पुछलखिन- “अहाँ के छी? किए कनै छी।” 

ओ बजलीह- “बाउ! हम अहाँक गोसाउनि थिकहुँ। हमर सखी कमला तमसाए पताल लोक चल गेल छथि। हमरा एसकर मोन नै लगैए तें कोंढ फाटि जाइ-ए।”

राजा दुनू हाथ जोड़ि हुनका प्रणाम कएल आ पुछल- “हे माय, कमला माइ किए तमसाएल छथि?”

“अहींक किरदानी सँ’- बजलीह गोसाउनि।

“हमरासँ कोन अपराध भेलनि, हे माय!” राजा अकचकाइन पुछलथिन।

एहि पर गोसाउनि तमसाए कहल- “सभटा हमरहि मुँहे सुनब? जाउ धारक कछेरमे सिमरक गाछक तर निशाभाग रातिमे एक गोटे भेटत ओ एड़ी सँ टिकासन धरि बुझाए देत”। ई कहि गोसाउनि जाए लगलीह। राजा हुनक पयर पकड़बा लेल धड़फड़एलाह कि निम्न टूटि गेलनि।

राजा उठि कए बैसि गेलाह। सपनाक सभटा गप्प मोनमे घुरिआए लगलनि। रातुक एगारह बाजल रहैक। ओही राति सपना परतएबा लेल तरुआरि कसि लेलनि। तौनीसँ अपन सौंसे देह झाँपि साधारण लोकक बाना बनाए लेलनि। अनका केकरो नहि संग कए एसकरे कमलाक कछेर दिस विदा भेलाह। हवेलीक पछबारी कात छहरदेबारी टूटल रहैक। ओही देने चोर जकाँ हाता सँ बाहर भए गेलाह।

बाहर सौसे भकोभन्न रहैक। ककरो चाल-भजार नहि पाबि निश्चिन्त भए धारक कछेर पहुँचलाह। ओतए एकटा सिमरक गाछ छल। लोक कहल करए जे जहिया कमला माइ एतए बहए लगलीह, ओही दिन सँ ई गाछ अछि। ओकर जड़ि ततेक मोट भए गेल रहय जे चारि गोटे जँ हथ्थाजोडी कए पँजियाबए, तखनि पओतैक। राजा सिमरक गाछ अंदाजि कए ओतए जएबाक बाट धएलनि। अन्हारमे देखलखिन नहि, ओतए अमती काँटक एकटा झाँङरमे ओझराए गेलाह। तौनी एक दिससँ छोड़ाबथि तँ दोसर काँटमे बझि जाइन। एही प्रयासमे लागल रहथि कि तावत कोनो पैघ चिड़ै पाँखि फड़फड़ओलक आ बुझएलनि जेना सिम्मरक गाछपर सँ केओ अथाह पानिमे छप्पसँ कूदल होअए। धार सुखाएल छलै से हिनका बुझले छलनि तें आदंकसँ सर्द भए गेलाह। एम्हर काँट छुटबे नै कएलनि। गिदरक झुंड सेहो फकसियारी काटए लागल। अंतमे राजा ओहि तौनीकें काँटेपर छोडि अपने मुक्त भए गेलाह। ओ सिमरक गाछ लगीचेमे रहैक तें घेंघिआइते जकाँ सोर कएलनि- “सिमरक गाछ तर केओ छह हओ।” राजाक ई कहितहि एकटा बाझ हिनका दिस झपटल, मुदा माथक ठीक उपर देने दोसर दिस चल गेल। राजा तिलमिलाए गोलाह। पयर थरथराए लगलनि। एतबामे सिमरक गाछ परसँ केओ ठहक्का मारलक आ गरजए लागल- “आबि गेलह तों। आबहि पड़लौक ने।”

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Bhavanath Jha

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