राजाकें भोरहरबाक बसातक सिहकी अलसाए देने छलनि। कने काल लेल आँखि मुनाए गेलनि। सुरुजक इजोत पड़िते आँखि खुजलनि तँ ने परेत छल, ने खोपड़ि, ने घैल। सभ किछु अलोपित भए गेल रहए। ओ सिमरक गाछक जड़िमे अपनाकें दूबि पर बैसल पओलनि। कातमे सुखाएल धार साँपक केचुआ जका बूझि पडि रहल छल।

दोसर दिन राजाक मजलिस लागल। दरबारी सभ जुटल रहथि। चर्चा आरम्भ भेल। सभक मोनमे एकेटा चिन्ता; सभक ठोर पर एके गप्प, कमला माइक कोन अनठ भेलनि, जे एना निसोख भए गेलीह। पोखरिमे सोह किएक नहि फुटैत अछि’। पानि बेतरेक नगरक हालति खराप भए गेल रहैक। एक टूटा जे रजकूप टेक घएने रहए, ओहू सभमे पानि दुइ तीन हाथ खसि पड़ल रहैक। एम्हर बरखाक कोनो टा आस नहि। जखनि हथियो गरजि कए चल गेल, मेघ नहि बरसल, तखनि स्वातीसँ की आस!

राजा घाड़ झुकओने सभटा सुनैत चुपचाप बैसल छलाह। एही बीच दरबान इतलाए बाजल- “फाटक पर चारि गोटे ठाढ छथि। सरकार सँ भेटँ करए चाहैत छथि।”

राजा कहल- “हाजिर करह।”

थोड़ेक कालमे ओ चारू गोटे आबि राजाकें सलामी दए कातमे ठाढ भए गेलाह। एक गोटे डाँड़सँ एकटा चीठी निकालि राजाकें देलनि। राजा चीठी पढ़ि जखनि राखि देलनि तखनि ओ बजलाह-

“सरकार, अपनेक नगरमे हम सभ अपनेक आदेशसँ हवा-मिठाइक बनीज करैत छी आ ओकर लगान ठीक समय पर खजानामे जमा करैत छी। एहि नगरक धियापुता ई हवामिठाइ किनैत अछि। ई हवामिठाइ बनाए कोन धरानिए अपन नगरसँ अनैत छी, से सरकारकें की कहब। हमरा नगरक रानीजी सरकारक बहिन थिकीह। एही बेर भरदुतियामे जएबामे सरकारकें कोन कष्ट भेल रहएसे जनैत होएबैक। चारि टा धारतँ नाहसँ टपए पडै़ छै। एते तरद्दुत उठाए हम सभ एतए बनीज करैत छी जे दुइ एक सेर धान जर करी आ एहि नगरक धियापुता लिलोह नै हुअए। मुदा……..।

“मुदा की?” -राजा पुछलनि।

-“हम सभ सरकारक जुत्ता तर छी। किछु ऊँच-नीच बजना जाए तँ जान बकसि दी।” दाँत निपोड़ैत ओ पइकार बजलाह।

-”निडर भए कहू।” राजा गंभीर होइत बजलाह।

-“सरकारक खास आदमी हमरा सभक बनीज के भुस्साथरि बैसाबए चाहैत अछि। हमरा सभक पेट पर लात मारए चाहैत अछि। तैयो………।”

-“तैयो की? खुलासा बाजू”। राजा तनि कए बैसलाह।

-“तैयो जँ केवल हमरा सभक बनीजके भुस्साथरि बैसाए हुनकर हिया जुड़ा जानि तँ हमसभ बिना किछु गलगुल कएने दोसर नगरक बाट धए लेब। मुदा एहिमे ओकर छओ कतहु, घाओ कतहु छैक। ओ चाहैत अछि जे एही बहाना सँ सरकारक ठोरक लाली छीनि ली। हमर नगर सँ सरकारक हबेलीमे जे किछु वस्तुजात अबैत अछि, ओहिसभ लेल सरकारकें लिलोह कए दी। बाहरी दिन दुनियाँसँ सरकारक लागि तोडि दी। ताहूसँ बढि कए एकटा भाइ-बहिनक सिनेहक डोरीके झटकि तोडि दी”।

राजा चौंकलाह। थोड़बे काल पहिने अपन बहिनक चीठीमे पढ़ने रहथि जे सरकार बड़ बिगड़ल छथि। तखनि तँ अर्थ नहि लगलनि, मुदा आब बुझि गेलाह। राजाकें चुप देखि ओ पइकार फेर बजलाह-

“हमर नगरक राजाजी बड़ बिगड़ल छथिन। रानीजीसँ चिठी लिखाए हमरा सरकारक सोझाँ हाजिर भए नौ-छौ करबाक आढ़ति देलनि अछि। आगाँ सरकारक आढ़ति माथ पर”।

-“के अछि ओ हरामी, जे एहन काज कए रहल अछि”।

राजा बमकलाह। लोहा तपि चुकल छल। हथौड़ाक चोट दए तरुआरि बनएबाक ताक भए गेल रहै।

-“सरकारक खास आदमी अछि। केसो साहु। हवेलीक खास हलुआइ”।

-“केसो साहु? ओ तँ बड नीक लोक अछि।” राजा कें आश्चर्य भेलनि।

-“सरकारक आबेस पाबि ओ अपना कें नल महराज आ धन्वन्तरि वैदराजहु सँ पैघ बुझए लागल अछि।”

-“ओ की कएलक, से खोलासा बाजह।” राजा कने उत्तेजित भए गेलाह।

तुरत केसो साहु बजाओल गेलाह। तखनि ओ पइकार बजलाह- “हमर सभक हवामिठाइक ई देखसी कए बेचैत छथि। हमसभ एक पसेरी धानमे जतेक बेचैत छी, ओतेक ई एके अढ़ैयामे बेचि दैत छथि। हमसभ मुहें तकैत रहि जाइत छी।”

केसो साहुसँ पूछल गेल तँ ओ बाजल- “ई ठीके कहैत छथि। एक दिन हमर नाति एक झोड़ी हवामिठाइ किनलक तँ दुइ-चारि टा हमहूँ चिखलहुँ। सुआदलहुँ तँ बुझि गेलियै जे ई मखानक लाबाके बनल छै। ओकरा चीनीक सिरकामे पागि कए रंग मिलाए झोडीमे सीबि कए बेचैत छथि। तखनि हमरा ओ बड़ महग बुझाएल। एक दिन अपन नाति लेल अपनहि सँ बनओलहुँ। तकर बाद आढ़ति पर सँ आढ़ति आबए लागल। हमहूँ घानी पर सँ घानी बनबैत गेलहु। इएह बात छियै सरकार”।

केसो साहु चुप भए गेलाह। ओ पइकार एक गोटे दिस संकेत करैत उतराचौरी आगाँ बढाओलनि- “सरकार, ई छथि हमरा नगर ओ हलुआइ, जे पहिले-पहिल ई हवामिठाइ बनओलनि। आ संगहि दोसर छथि हमरा सभक वैद्यजी; जे ओहि मिठाइमे एहन दवाइ फेंटैत छथि, जकरा खएलासँ तागति बढैत छैक। बहुत तरहक बिमारी सँ बचाओ होइत छैक। हमरा सभक हवामिठाइक बिक्री घटलासँ एहि नगरक धियापुता ओहि दवाइसँ वंचित रहि जाइत अछि आ हिनक बनाओल लाबा खाए ठकल जाइत अछि। तें एहन ठककें सजाए देल जाए। आगाँ सरकारक आढति माथपर।”

केसो साहु राजाक खास हलुआइ रहथि। हुनकहु अपन लूरि पर गुमान रहनि। तें ओहो हारि मानि चुप बैसनिहार नहि।

-“सरकार, हमरे नगरमे उपजल मखानकें माटिक मोल कीनि कए ओकरा ई लोकनि आगिक मोल बेचैत छथि। जतेक हवामिठाइ ई एक पसेरी धानमे बेचैत छथि, ओतेक मखान तँ एतए लोक मङनीमे बिलहि दैत अछि। चीनी बड़ थोड़ लगै छै। ओकरा सोन्हगर बनबै लेल हम कचूर दैत छियैक, जे सभ ठाम बाडी-झाडीमे अलेल उपजै-ए। एहन मिठाइक बदलामे मेहनतिसँ उपजाओल एक पसेरी धान आन नगर चल जाइत अछि, से हमरा नहि सोहाएल, तें हमहूँ बनबए लगलहुँ। टटका-टटकी बनबै छी। टटकाके परतर हिनकर हवामिठाइ कतए सँ करतनि। नै जानि कते दिनुका बनलाहा रहैत छनि।”

एतबहिमे हवेलीक घंटा बाजल। सभक भोजनक बेर भए गेल रहनि। तें राजा कने अगुताइत पइकारसँ पुछल- “अहाँकें आर जे किछु कहबाक हो से कहि दिय। हम विचार करब आ जा धरि कोनो नौ-छौ नहि भए जाइत अछि ता धरि हवामिठाइक बनीज नहि हुअए। केसो साहु सेहो ओ मधुर नहि बनाबथि’।”

ओ पइकार बजलाह- “हमर हवामिठाइमे सहरगंजा रंग नहि मिलाओल जाइत अछि। ओ रंग हम बनारससँ मङबैत छी। नेपालक जंगल छानि कए आनल जडी-बूटी सँ ओकरा सोन्हगर बनबै छी। जाहि झोडीमे बन्न कए ओ बेचल जाइत अछि से कलकत्तासँ अबैत अछि। ओहिमे बन्न कएलाक बाद बासि-तेबासिमे कोनो अन्तर नहि पड़ैत छैक। मासो दिनका बाद ओहने रहैत अछि। एहि सभमे खर्च पड़ैत छैक, तरद्दुत होइत छैक। तखनि एक सेर धानमे एक झोड़ी बिकाइत अछि। सरकारकें बेसी कहबाक काज नहि। बुधियारकें कनखिए काफी। तखनि तँ सरकारक आढति माथ पर।” 

ओ पइकार चुप भए गेलाह। राजाक मजलिस टुटल। राजा चुप्पे अन्नर दिस बढ़ि गेलाह, जतए चेड़ी हाथ-पयर धोबा ले सोबरना नेने ठाढि छलि।

दिन बीतल; साँझ पड़ल; सूर्य अस्त भेलाह; राति भेल। राजाक छातीक धुकधुकी बढ़ैत गेलनि। पछिला रातुक एक-एकटा गप्प मोन पडैत छलनि तँ रोइयाँ ठाढ़ भए जाइत रहनि। सिमर गाछपर उनटा लटकल ओ परेत आ ओकर हँसब-बाजब आ कानब, सभटा आँखिक सोझाँ नाचि उठनि। बुझाइन जे ओ कोनो दोसर लोकमे आबि गेल होथि। एसकर होइतहि राजा एहि लोकक सभटा बात बिसरि जाथि।

अनमनाएले जकाँ राजा रातुक भोजन कए जखनि अपन कोठरी अएलाह। तखनि दस बाजि रहल छल। सिमर गाछ तर जएबाक बेर लगिचाए गेल रहनि तें छातीक धुकधुकी आर बढ़ि गेलनि। एक मोन भेलनि जे आइ नहि जाइ, मुदा फेर दोसर मोन तुरत चेतौनी देलकनि जे नहि गेला सँ जँ कहूँ ओ परेत खिसिआए गेल तँ किछु कए सकैए। सँगहि इहो मोन मानि गेल रहनि जे गोसाउनि जकरा मादे कहने रहथिन से ओएह परेत थिक। तखनि जँ परेतक सभटा गप्प नै सूनि लेताह तँ कमला माइक रुसबाक कारण आ बौंसबाक उपाय केना बुझताह। तें जाएब तँ आवश्यक छलनि।

समय बितल जा रहल छल। राजा पलंग पर पड़ल टकटकी लगओने घड़ी दिस देखि रहल छलाह। राजाकें घड़ीक प्रतीक्षा जतेक नै छलनि, ओतेक छलनि रानीजीक सुति रहबाक प्रतीक्षा। तें अपन छाती पर राखल हुनक बामा हाथक कँगनाके कखनहु खनखनाए बुझबाक प्रयास कए लेथि जे ओ सूति रहलीह कि जगले छथि।

जखनि बेस काल धरि राजा सूइल सँ पाइत धरि आ पाइत सँ सबरब धरि सोहरओलनि आ रानी नहि सगबगएलीह, तखनि गँओसँ हुनक हाथ अपन छाती परसँ हँटाए कात कएलनि। रानीजीकें नीक जकाँ देखलनि तँ बुझएलनि जे ओ निभेर भए सूतलि छथि। राजा निश्चिन्त भए पलंगसँ उठलाह।

कामदार कपड़ा सभ खोलि सहरगंजा मिरजइ आ धोती पहिरलनि। खुरिया खोंसलनि आ कोठलीक केबाड खोलए बढलाह कि रानीजी भभाकए हँसैत पलंग पर बैसि गेलीह। राजा थकमकाए गेलाह।

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