रानीजी झटकि कए हिनका आगाँ आबि ठाढ़ भए गेलीह। हुनक खूजल केस भुइयाँ लोटाए लागल, काड़ा खनकि उठल, डँडकस मचकि गेलनि, केचुआ मसकि गेलनि, घोघट ससरि गेलनि, पसाहिन चमकि उठल, लट गमकि उठल, दुनू ठोर थरथरएलनि आ आँखिक दुनू कोरसँ दू बुन्न नोर गाल पर पिछड़ि गेल।
रानीजी बजलीह- “राजाजी! राजाजी! एते रातिमे के मोन पड़लीह, कजराबाली कि गजराबाली! मुजराबाली कि बजडाबाली! राजाजी! कतए विदा भेंलहु चुप्पेचाप। राजाजी! रूपाक दियामे हम पाटक टेमी जरौलौं, सोनाक कजरौटीमे हम कजरा जे पाडलों, से कजरा नोरसँ धोखरल जाइए यौ राजाजी! कोस भरिक फुलवारीसँ सोनजड़ी अँचरामे फूल हम बिछलियै, भौंरा कि मधुमाछियोक सूँघल फूल नै छुबलियै, खुरचनक टकुरीसँ बाड़ीक बाँङके हम सूतो कटलियै, ओहि सूतक तानीमे हम गजरा गँथलियै। अहाँक हाथक छुतियो ने भेलै; सिरमामे डाला पर, पुरैनिक पतौड़ामे, रखले मौलाए गेलै, यौ राजाजी! ओहो कजरा, ओहो गजरा रूचल नै अहाँ के, यौ राजाजी! तखनि आब हम नयनाक नोरसँ, हियाक दिया जरएबै, सुन्न अकासक कजरौटीमे पाड़ल कजरा हम लगेबै, इन्द्रक फुलवारीसँ लोढ़ल फूलक गजरा हम गँथबै, अछियाक बजड़ापर चढ़ि संसारक समुद्र नाँघि, ओहि पार हम जेबै, इन्द्रक फुलवारीक एक कोनमे अहाँक नामक हम आसन लगेबै, आसनक आगाँमे मुजरा लगेबै। ओतए तँ अहाँ अएबै ने यौ राजाजी!”
रानीक आँखिसँ दहो-बहो नोर झहरए लागल। राजाकें अकबक किछु नहि सुझाइन। असल बात कहि रानीजीकें डेरबए नै चाहैत रहथि। तखनि किछु कहि परतारि कए चलि दितथि, से कठिन छलनि। ओ दूधक धोएल तँ छलाह नहि जे हुनक बातपर रानीजीकें विश्वास भए जैतनि। एहिना कतेक राति ठकि-फुसियाकए गजराबाली आ कजराबालीक दुआरि नाँघि चुकल छलाह। तें ओ अस्त्र सभ आब रानीजी लेल व्यर्थ भए गेल छल।
तखनि राजा बजलाह- “हे धनि! जुनि कानू। गोसाउनिक सीरपर बरैत दीप अहाँ छी। नगरक चौबटियापर जरैत अंडी तेलक उकारीसँ सौतिनिया डाह किए करै छी? आश्विनीसँ रेवती धरि तारका सभक भोग कएनिहार चन्द्रमा की अपन चन्द्रिकाकें छोड़ि दैत छथि!! हे धनि, अग्निक ज्वाला, जलक शीतलता, आकाशक शून्यता जकाँ अहाँ हमर छी, जकरा बिना कजराबाली कि गजराबालीक कोनो मोल नै। मुदा एखनि तँ ओकर चर्चे व्यर्थ! हम तँ आइ दोसर काजसँ जा रहल छी। एकटा आवश्यक राजकाज भए गेल अछि।
– “एतेक रातिमे?” रानीजीकें जेना विश्वास नै भए रहल छलनि।
– “हँ धनि, आफदक बेरमे की राति आ की दिन?”
– तखनि कपड़ा छाड़बाक कोन काज?” रानी जिरह करए लगलखिन।
राजाक चोरि पकड़ा गेल। एकर कोनो जबाब हुनका लग नहि बँचल। अन्तमे राजा थाकि हारि सभटा खेरहा सुनाए देल।
रानी बजलीह- “हमरहु सँ छल कएलहुँ, राजाजी! हमरा तँ कहितहुँ। मुदा आब पछिला चूकक गप्पे कोन? आइ हमहूँ जाएब अहाँक संग।”
“अहाँ?” -राजा कुदि उठलाह।
– “हँ राजाजी! भूत-परेतक मुँहमे एसकर केना जाए देब। अहाँक रक्षा लेल हमहुँ जायब।”
– “हमर रक्षा अहाँ करब?” राजाकें रानीक ई गप्प ओहिना अनसोहाँत लागि रहल छलनि जेना ओ पुरैनिक पातक ढाल लए लड़ाइमे जएबाक गप्प कहि रहल होथि!
– “हँ राजाजी! बियाहक साल सुखराती निशाभाग रातिमे नानीसँ जे सिखलहुँ से आइ नै तँ कहिया काज देत?”
राजाकें सभटा रहस्यमय बुझा पड़ि रहल छलनि। रानीक एतेक आत्मविश्वास! सुुखरातीक निशाभाग रातिमे किछु सिखबबाक बात सुनि राजाकें ठकमूडी लागि गेल।
– “एना की तकै छी? हमर नानी की सभ जनै छलीह आ हमरा कते सिखओलनि से आइए परताए लिय। अपन टोना-टापरसँ हम एहन घेराबा बनाए लेब, जकर भीतर परेतक बापो किछु नहि कए सकत।” रानीक मुट्ठी तनि गेल।
– “मुदा दूनू गोटे जाएब केना? पहरूदार बुझि जाएत, तँ सौसे घोल भए जाएत, तखनि एक-एकके सभ संग लागि जाएत।
– “केओ नहि बुझत। थम्हू कने। हम सभटा जोगाड़ धराए लैत छी।”
रानीजी केबाड़ खोलि फुलबाड़ी पैसलीह; ओतए एकटा पैघ सन मएनाक पात तोडलनि। भनसाघर गेलीह; पिठार पिसलनि आ आबि गेली झट दए राजाक लग; मएनाक पातपर अरिपन देलनि। अपनहु ओहिपर ठाढ़ भए गेलीह आ राजाजीकें सेहो सटि कए ठाढ़ होएबा लेल बजओलनि। गेंठ जोड़लनि; किछु मन्त्र पढलनि आ ओ मएनाक पात धरतीसँ उठल आ खुजल केबाड़ देने आङन आएल आ अकासमे उड़ए लागल।
रानी पुछलनि- “डर तँ ने होइ-ए?”
– “नहि, आब सभ डर बिलाए गेल।” राजाजी हुनका भरि पाँज पकड़ि सभ किछु समर्पण कए देलनि।
ओ मएनाक पात दुनूकें थम्हने अकासमे उड़ल जा रहल छल। रानीजी बेर-बेर पुछथिन्ह- “ओ सिमरक गाछ केम्हर छैक?”
राजाकें दिसाँस लागि गेल रहनि। एक तँ रातिक समय, निचला घर-आङन, गाछ-बिरिछ किछु सुझि नहि रहल छलनि। ताहिपर सँ आकाशमार्ग देने यात्रा। से जएबाक छलनि पूब दिस, देखाए देलखिन पच्छिम दिसक बाट। रानीजी ओम्हरे इसारा कएलनि; ओ मएनाक पात ओम्हर उड़ए लागल। जखनि किछु दूर गेलाह तँ एकटा खूब चतरल गाछक अछाह बुझएलनि। ओकरहि सिमरक गाछ बूझि दुनू गोटे ओतहि धरती पर अएलाह। मुदा ओ सिमर नहि पाकड़िक अजोध गाछ छल।
राजा चिंतित भए गेलाह। अन्हार राति चारुकात भकोभन्न। कतए आबि गेल छी, सेहो ज्ञान नहि रहलनि। बिना प्रकाशक संचारसे कोनो उपाय करबामे अपनाकेँ असमर्थ बुझलनि। आकाश स्वच्छ छल, तेँ राजाकेँ अष्टमीक चन्द्रोदयक आस जगलनि। चन्द्रोदयमे किछु बिलम्ब रहैक तेँ ओकरे प्रतीक्षा करैत दूनू गोटे असोथकित भए बैसि गेलाह।
ओही पाकड़िक एकटा धोधड़िमे सोनचिडै दूनू परानी रहैल छल। राजा आ रानी जखनि ओतए बैसलाह तँ चिड़ै चिड़िनसँ बाजल- “हे धनि, आइ देखू जे केहेन हमरा सभक भाग जोड़गर अछि जे एक दिस हमरा सभक सन्तान हुअए बला अछि आ दोसर दिस एहन अभ्यागत आबि गेल छथि। हमरा सभके चाही जे हुनकर स्वागत सत्कार करी।”
राजा नीचामे बैसल दुनू परानीक गप्प सुनए लगलाह। चिड़िन बाजलि- “हँ ठीके कहलहुँ। एक तँ बच्चा हुअए की बूढ़, जबान हुअए कि बेसाहु, घर पर पहुचल अभ्यागत देवताक रूप होइत छथि, ताहूमे ई तँ एहि नगरक राजा आ रानी छथि, सेहो बाट भोतिया कए एतए आबि गेल छथि, तेँ जते धरि भए सकए से हुनकर सत्कार करियौन। दुःखक बात ई जे हमरा आइ बिछाओनहु परसँ उठबाक सक्क नै लगै-ए। तें हुनका दुनूसँ आशीर्वादो लै लेल हम नै निकलि सकब।”
– “आर तँ जे से…। सभसँ तँ चिन्ता अछि जे की लए कए सत्कार करबनि? आइ जे हम जर कए अनने छी से एक तरहें अँइठे अछि। ऐंठ लए अभ्यागतक सत्कार करब तँ पाप होएत।” चिड़ै बाजल।
– “झोड़ी तँ ओहिना मुनले छैक, तखनि अँइठ केना भेलै? लोलसँ पकडि कए जे अनने छी तेँ अँइठ कहै छियै की?” चिड़िन पुछलकै।
– “नै से बात नै छै। ई मनुक्खक अँइठ थिक।”
– “कत’ सँ अनलहुँ?”
– “हे धनि, आइ हम अहलभोरे अहाँ लेल कोनो बढ़ियाँ सनेसक खोजमे निकलहुँ, तँ इच्छा भेल जे इन्द्रासनक फुलबाड़ी जाए ओतहि सँ कोनो सोन्हगर फल नेने आबी। उड़ैत-उड़ैत ओतए गेलौं तँ ओकर रखबार हमरा एसकरे देखि भीतर पैसबासँ रोकि देलक। ओ कहलक जे एहि फुलबाड़ीमे विना अपन प्रियाके केओ नै जाए सकैए। की देवता, की गन्धर्व आ की पशु-पक्षी, एसकर मुँह बिधुअबैले’ एतए टपि नै सकै-ए। अपन जोड़ा नेने आबह तँ जाए देबौक।”
तखनि हम अपन सन मुँह नेने धरती पर घुरि अएलहुँ आ एतहि एहि नगर सँ ओहि नगर बौआए लगलहुँ। जाइत-जाइत एक नगर पहुँचलहुँ। ओ नगर एतए सँ पच्छिम अछि। ओतए राजाक अटारीक पछुआड़मे ई हवामिठाइक झोड़ी सभ मारते रास फेकल देखलियै। पहिने तँ हमरा सक भेल जे कहूँ कोनो जाल-फाँस तँ ने बिछाओल छैक। थोडेक काल एहि गाछसँ ओहि गाछ चकभाउर दैत रहलहुँ। देखलियै जे कौओ सभ निधोख भए एक-एकटा झोडी उठाए रहल अछि, तखनि हमरहु कने हिम्मत बढल। मुदा फेर सोचलहुँ जे पहिने एहि हवा मिठाइक सम्बन्धमे सभटा भजिया ली। सन्देह भेल जे एत’ ई फेकल किए गेलै? कहूँ जहर-माहुर तँ ने मिझहर भए गेलै? संयोग भेल जे एकटा कौआ ओहि हवामिठाइक झोडी लूझि कए ओही गाछ पर बैसल जाहि पर हम रही। हम ओकरा सँ पुछलियै तँ ओ कहए लागल-
“तों दूर देससँ आएल बुझाइत छह तेँ किछु नै बुझल छह। आइ एक माससँ सौंसे नगरमे घरे-घरे ताकि कए ई फेकल जाए रहलै-ए।
-“किए फेकल जाए रहलै-ए?” -हम पुछलियै।
-“किछु नै बुझल छह? तखनि सुनह चुपचाप। करीब एक मास भेल हेतै। रजकुमरीके मोन खराप भए गेलैक। एकटा वैद अएलै। ओकर दवाइ गुन नै कएलकै। दोसर अएलै। तेसर अएलै। एहिना वैद सभक धरड़ोहि लागि गेलै, मुदा रजकुमरी निकें नै भेलै। तखनि बहुत दूरके नगरसँ एकटा वैद अएलै। ओ रजकुमरी के मादे च-तु कए सभटा पुछारि कएलकै। की-की खाइए; कतए-कतए घुमै-ए; कोन-कोन कपड़ा पहिरै-ए से सभटा पुछलकै। सभटा जखनि भँजिया लेलकै, तखनि जे दवाइ देलकै तेँ दुइए दिनमे रजकुमरी टनमना गेलै। ओएह वैद कहलकै जे ई झोड़ीमे बन्न हवामिठाइ खएला सँ भाँति-भाँति के गरू हेतै। ओएह राजाके कहलकै जे सभकें मना कए दियौ जे ओ हवामिठाइ नै खाए। राजा ओइ वैदक करामात देखि नेने रहए, तेँ विश्वास भए गेलै। तहियासँ अइ नगरक लोक केओ ई हवामिठाइ नै खाइए।
– “तखनि तँ हलुआइ सभक लोटिया बुड़ि गेलै!” हम कहलियै।
– “नै बुड़लै। राजा एकटा तरकीब निकालि लेलकै। राजा कहलकै जे ओ हलुआइ सभ ई सभटा हवामिठाइ आन-आन नगरमे जाए बेचत। एहि राजाक सासुर एतए सँ दस कोस पूबमे छै। राजा अपन सारकें कहि ओहि नगरमे बनीज करबाए देलकै। ओतए तँ खूब पैकारी जमि गेलैए।”
गाछक तरमे बैसल राजा चौकलाह। सोनचिड़ै हिनके नगरक मादे कहि रहल छल। हवामिठाइक पैकारी ठीके हिनकर नगरमे खूब जमि गेल छलनि। राजा आर कान पाथि कए ओहि सोनचिड़ैक गप्प सुनए लगलाह। सोनचिड़ै कहि रहल छल- “हे धनि, सएह कहैत छी जे जखनि केओ ओहि हवामिठाइक भोग कएनाइ छोड़ि देलक, तखनि तँ ओकरामे आ अँइठमे कोन अन्तर? निछरल वस्तुके अँइठ नै कहबै तँ की कहबै। तेँ कहै छी जे एहन अँइठ वस्तु लए राजा-रानी सनक अभ्यागतक सत्कार केना करब।
– “तखनि की करी?” चिड़िन पुछलकै।
– “सएह तँ हम अहाँसँ पूछै छी?”
– एहि पर चिड़िन बाजलि जे राजा आ रानी अन्हारमे भोतिया कए एतए आबि गेल छथि, से अहाँ जाउ, हुनका रस्ता देखा दियनु। बड़ गुन मानताह। आ ई एकटा ठहुरी सेहो दए देबनि। ई हम इन्द्रासनक फुलबाड़ी सँ अनने रही। एकर चमत्कार छै जे मुइल लोक, कि सुखाएल हड्डियोमे जँ ई ठहुरी भिड़ा देल जाएत तँ ओ लोक जीबि उठत।”
ई सुनैत देरी राजा खुशी सँ नाचि उठलाह। अखनहु चन्द्रमाके उगैमे किछु देरिए छल, मुदा अन्हार कने कम भए गेल रहै। एही समयमे ओ चिड़ै गाछ परसँ उतरल। आबि कए राजारानीकेँ प्रणाम कएलक आ इन्द्रासनक फुलबाड़ीसँ आनल एक बीतक एकटा ठहुरी राजाक हाथमे देलकनि। राजा ओ लए, माथ चढाए, मिरजइमे खोंसलनि। तकर बाद ओ चिड़ै कहलकनि-
– “हे राजा! हे राजा! अहाँ सभकेँ कतए जेबाक अछि? कहू तँ बाट देखाए दी।”
राजा ओहि सिमरक गाछक नाम लेलनि तँ ओ चिड़ै आगाँ-आगाँ उड़ल। रानी सेहो मएनाक पात हँकलनि आ सिमरक गाछतर पहुँचि गेलाह।
तावत धरि अष्टमीक चंद्रमा उगि गेलाह। साँसे बाध इजोरिया पसरि गेल। धरतीक फाटल दरारि सेहो देखा पड़ए लागल।
सोनचिड़ैकेँ घुरि जेबा लेल कहि रानीक सँगे राजा खोपडिमे जाए बैसलाह। पछिला रातिसँ खोपडियो बेसी नाम-चाकर रहैक। एतबे नहि, ओहि दिन पुआरक सेजौटक बदलामे गादी आ मसनद सेहो लागल रहैक। रानी कहलथिन- “राजाजी! ई कोनो छोट-छिन परेत नै छी। एकर आत्मा बहुत दिन सँ बौआए रहल छै। एकर उद्धार अहाँकेँ करबाक हएत।”