राजाकें बुझएलनि जेना केओ डेन पकडि कए घीचि रहल अछि। गाछक जडि मे पहुँचलाह। ओतए एकटा खोपडि छल, जकर मुँहथरिपर एक घैल पानि राखल छलै। खोपडिक भीतर एकटा डिबिया जरि रहल छलै। राजा निहुरि कए देखलनि तँ ओतए केओ नहि रहय। ओ बुझलनि जे जकरा मादे गोसाउनि कहलनि से कतहु गेल अछि। थोडेक कालमे घूरि कए आबि जाएत तखनि ओकरा सँ गप्प करब। राजा ओही खोपडिमे जा कए बैसि गेलाह।

सिमरक गाछ परसँ फेर केओ हँसल। राजा ओहि दिस अकानलनि तँ नजरि गेलनि ओकर एकटा डारि पर, जतए मनुक्खक कंकाल उनटा लटकल छल। ओकर दुनू टा पयर एकटा डारिमे बान्हल रहैक। ओएह हँसि रहल छल।

-“के थिकाह तों, किएक हँसि रहल छह?।” -पुछलखिन राजा। राजा डेराए गेल रहथि, तैयो अपन कुलदेवीक मंत्र जपैत साहस कएने रहथि।

ओ परेत बाजल- “दू टा बात एके बेर पुछैत छह मूरख! पहिने एकटाक उत्तर सुनह। तखनि दोसरक उत्तर कहबहु।”

ओ परेत एक बेर बपहारि कटलक आ बाजल-

“हे राजा, अहाँक पाँचम पुरखाक समयक गप्प थिक। हमर जन्म एकटा मलाहक घरमे भेल रहय। हमर बाबा बड़ कलामी रहथि। एक बेर जाल घुमाबथि तँ एक कट्ठा भरि छापि लेथि। एक डूबमे एक धूर मखान बहारि लेथि। आब अछि केओ एहन। केओ नहि; केओ नहि। हमर बापो तेहने। चौरी-चाँचरक कमी नै रहै। सभतरि पानिए पानि। उपरमे ओइरी धान आ तरमे खलबल करैत सिंगी, माँगुर आ कबै माछ। हमरा माछे भात खाइत मोंछक पमही भेल।

ओही गामक दोसर टोलमे एकटा छौड़ी रहै। नाँओ रहै- फुलिया। ओकरा अपन गाममे केओ नै रहै, तें अपन बहिन-बहिनोए लग आबि गेल रहए। ओकरहु चढंतिए छलै। लोक सभ झुट्ठे कहै जे फुलियाक देह इछाइन मँहकै छै। भेटक ढ़ेरही तोड़ैत काल जखनि ओ डाँड भरि पानिमे चुभकैत हमर लगीच आबए तँ बुझाए जे सौंसे चौरी भेट फुला गेलै-ए। हमहूँ ताकि हेरिकए दू चारि भेटक माला बनाए ओकरा पहिराबए लगियैक कि ओ लाल होइत गाल छिपबैत भागि जाए।’

राजा बिच्चहिमे टोकि देलनि- “फुलियाक खिस्सा सुनाबए लगलह। ई ने कहह जे तों के थिकह?”

परेत हँसल- “सत्ते मूरख छह। हओ फुलियाक बिना की हमरा चीन्हि सकबह। सुनह चुपचाप।”

परेत फेर कहए लागल- “गाममे फुलिया आ हमर बात सभ केओ बूझि गेल रहए। ओकर बहिन सेहो सुनलक। गप्प चललै। फुलिया सँ हमर बियाह भए गेल। ओही साल कमला माइ सेहो किरपा कएलखिन। एही गाम देने बहए लगलीह। खूब धानो उपजै। माछ मखान भेट, सिंघार, करहर, सारूख ई सभ तँ अलेल रहै। केओ पुछनिहार नहि। ओहीसँ लोकक गुजर चलै। जोलहा के एक पसेरी भेटक चाउर आ दू-चारि दिन माँछ दए अबियैक तँ एक जोड़ी सलगा बीनि दिअए। बोचा मियाँक सलगा नामी रहै परोपट्टामे। मजगुत तेहेन जे एक जोड़ीमे साल भरि निचेन। धारक ओइ पारमे अखनि जतए तोहर नरै कलमबाग छह, ओतहि सरपतक बोन रहै। ओकरे टाटी-फड़की बिनल जाइ। सभ अपन-अपन काज करए; दिन हँसी खुशी बितल जाइ।

राजा बड़ नीक लोक रहथि। नीक लोक की बूझू जे सुधंग रहथि। लोक सभ कहै जे राजा कें आँखि छन्हिए नै, काने टा छनि। सोझाँमे कतबो लए लिएक तँ हँसी-खुशी दए दैत रहथिन। मुदा परोच्छमे नहियो लिऐक आ केओ झुट्ठे कहि सुनाबनि तँ बुझू जे ओकरा पर अट्ठाबज्जर खसि पड़ै। राजा रहथि कने जीहक पातर। माँगुर माछ जरे अँगूरक दारू खूब नीक लगनि। हम सभ पारी लगा कए बिछलहा मांगुर हवेली दए अबियै। दारू टा बाहर सँ अबै। ओकर बदलामे राजा एतएसँ मखानक लाबा पठाबथि।

हमर बियाहक तीन बरखक बाद हमर बापो मरि गेलै। तेहेन ने सिंगी बिन्हलकै जे दू दिन जर-धाह भेलै आ तकर परात मरि गेलै। सिंगीक जहरक मादे बुझले हएतह। कहाँदन एक बेर अजोध गहुमन अपन बिक्ख खरहीक झाँखुड़मे नेराए चराउर करै लेल गेल। ओम्हरसँ सिंगी आबि सभटा खाए गेलै। गहुमन जे घुरल तँ जहर नै भेटलै, तँ ओ आन्हर भए गेल आ अन्हइ बनि गेल। सिंगीक जहर हमर बाप ले तँ सते गहुमनेक जहर भए गेले। ओकरे फिरिया करम लेल बोचा मियाँक ओतए कप्पा लेल समाद पठओलियै तँ घरमे बीनल नै रहै। तखनि ओएह कहलकै जे राजाक हवेली पर एकटा पइकार अएलैए। रंग-बिरंग के कपड़ा-लत्ता बेचै छै। कपड़ा सभ बड पातर छै आ चिक्कन तेहन जेना पुरैनिक पात होइ।’ हमरा सभ लग नकदी रुपैया कतए सँ पाबी। से माइक गराक हँसुली कटबन्हकी लगाए ओतहिसँ धोती मङओलियै। ओही बरख पच्छिमसँ आरो बहुत रास पइकार अएलै। भाँति-भाँतिके जिनिस सभ लए कए। राजाकें अनदेसी चीजसँ लोभाकए पोटि लेअए आ एही नगरमे बसल जाए। पइकारी खूब चलै। लोक सभ सेहो अनदेसी जिनिसमे परकि गेल रहए। आब बोचा मियाँक कपड़ा केओ नै पुछै। सभ नकदी रुपैया हथियबै लेल अपसियाँत रहए लागल। राजाक संगे हुनकर देबान आ आरो हसबखाह सभ ओहने भए गेल। आस्ते आस्ते ओ पइकार सभ जमैत गेल। बादमे तँ अपनै नियम-कानून चलाबए लागल। तखनि राजाकें चाँकि भेलनि। ताबत तँ समय बीति गेल रहै। पइकार सभ गोलैसी कए नेने रहय। ओकर मेंटसँ राजाकें लडाइ भेलनि। मुदा राजा हारि कए जान बचबै लेल रानीकें संग लए कतौ भागि पड़एलाह। ओएह पछिमाहा गादी पर बैसल।

अपन घरमे हम तिनिए गोटे रही माए, हम आ फुलिया। हम मखानक तैयारी सुरू कएने रही। ओहिसँ नगदी रुपया आबए लागल रहए। ई राजा भेल तँ ओ मखानक दाम घटाए देलकै। अपन-अपन पहिलुका नगरक पइकारक हाथें पानिक मोल बेचि दै आ अपने जे जिनिस बेचए से आगिक मोल। सभक हाल खराप होइत गेलै।

ओहि राजाकें कथुक विचार नै छलै। हम सभ कमला माइक अरधना करी तँ चौल करए। कहै जे पहाड़ पर जे बरखा होइ छै आ बरफ गलै छै, सएह उपरसँ नीचाँ खँघरै छै, ओकरा नदी कहल जाइ छै। ओहीमेसँ एकटाके नाँओ छियै कमला। ओकर पूजा कए की है तै? ई पूजा-पाठ सभ काहिल आ अमरुखके चलाओल छियै। आर की की ने कुचरए कमला माइक मादे। ओकर देखादेखी अपनहु नगरक धनिकहा सभ हँ मे हँ मिलाबए- खरखाही लूटए। हम सभ की करितहुँ। राजा रहए। केओ किछु नाकर-नुकर बाजए तँ भकसी झोंकाए मरबाए दै।

एम्हर लोकक ई हालति भए गेलै जे पाँचो आङुर मुँहमे जाएपर अट्ठाबज्जर। साँझक साँझ उपास पड़ए लागल। राजाक दिस सँ चौरी-चाँचर बन्दोबस्त हुअए लगलै। जकरा डाक बाजि कए पइकार सभ खरीदए आ ओहिमे बोनिपर हम सब खटी। अपन धंधा सभ चौपट्ट भए गेल। हमर माए, जे सेरक सेर भेटक चाउर हँसैत बिलहि लै छल, तकरा मरबा बेरमे पाओ भरि खोंछिमे नै दए सकलियै।”

एतबा कहि ओ परेत थोड़ेक काल चुप्प भए गेल, आ हिचुकि-हिचुकि कानए लगाल। राजा सेहो सकदम्म भेल सभटा खिस्सा सूनि रहल छलाह। ओ किछु बाजए चाहलनि, मुदा जीह जाँतल जेना भए गेल रहनि।

ओ परेत दम्म साधि फेर बाजल- “मायक किरिया-करममे करज चढ़ि गेल। मास दिन पर जखनि मोहनमाला टुटल तखनि जान सँ उपर काज लगलहुँ। सक्क नै लागए। पेट बढि गेल रहए। लोक सभ कहए जे तिल्ली बढि गेल छह। पथ्थो पानि पर आफद तँ दवाइ-बीरो कतए सँ होइतै। हम खटोसल भए गेलहुँ। सभटा भार फुलिया पर पड़ि गेलै। तावत एकटा टेल्ह सेहो जनमि गेल रहै। ओकरा कन्हेठने ओ देवानक हवेली जाए आबए लगलै। काराक बासि सँठले हमरा लेल नेने आबए आ अपने की खाए से नै बुझियै। बादमे बुझलियै जे हवेलीक अँइठ खाए अपन पेट पोसै-ए। ई बात एक कान दू कान बयाबान भए गेलै। बिरादरीमे फुलियाक बदनामी हुअए लगलै। हमरा सभ कहए- “हवेली क काज छोडा दहक।”

 हम खेंघरा पर ओंघराइत सभटा लहूक घोट जकाँ पियैत रहलहुँ। बैसकीक दामस सेहो देल गेल। मुदा फुलिया के किछुओ टोकबाक साहस नै हुअए।

किछु दिन जखनि हवेलीक सुअन्न खोराकी भेटल, तखनि कने सक्क भेल। एक दिन हमहूँ फुलियाक जरे हवेली पर गेलौं कोनो काज मङै लेल। पानिमे पैसएवला काज करबाक साहस नै हुअए।

हवेली पर पहुँचले रही कि एकटा अजगुत खेल देखलहुँ। उतरबरिया कोठाक असोरापर कुमर आ कुमरी खाइत रहथि। चेड़ी सभ भाँति-भाँतिक पकमान सभ चङेरिए चङेरी रखने रहैक। ओहीठाम नीचाँमे थहाथहि करैत टोल परहक धीयापुता रहैक। कुमर आ कुमरी थारमे एक-एक टा पकमान लिअए। जे नीक लगै से अपने खाए, नहि तँ धियापुताक हेंज दिस फेकि दै। दू चारि टा कुकूर सेहो ताक लगओने रहै। फेकल पकमान के लुझै लेल जखनि छौडासभ पछड़म-पछड़ा करए तँ ओहि दुनूक संग चेड़िया सभ सेहो हँसए। इएह खेल रहै। एही हेंजमे हम अपन फेकनाके सेहो देखलियै। हमरा घिरना भए गेल।

हम अपन फेकनाकें डेन धएने घूरि गेलहुँ। फुलियाके सेहो हवेली छोड़ाए देलियैक। एहिपर फुलिया कने नाकर-नुकर कएलक। कहबो कएलक जे हवेली महलमे काज करै छियै। सालमे टू टा फाटलो-पुरान तँ भेटि जाइए। चिक्कन केहन रहै छै, जेना भेटक फूल होइ। फुलियोके बोचा मियाँक सलगासँ हवेलीक फाटल-पुरान बेसी रुचए लागल रहैक। मुदा हम कने दमसओलियै तँ मानि गेल।

हवेली तँ छोड़ाए देलियै, मुदा ओही राति ठकउपासक हालति भए गेल। फुलिया खूब हनहन-पटपट कएलक आ फेर भोकाड़ि पाड़ि कए कानए लागलि। हमहूँ कनैत-कनैत सूति रहलहुँ। रातिमे सपन देखलहुँ जे माएक कोरामे सूतल छी। माएक माथपर दुनू कात छही माँछ चमकि रहल छैक। भेटक फूलक माला गरामे महमहा रहल छैक। हम कानि रहल छी, माय चुचकारि रहल अछि। हमरा परतारैत माय कहै छथि जे तों उत्तर नेपाल दिस सुकठीक बनीज करह। खूब उछराए हेतहु।

माएक आढ़ति कतहु बेकार गेलै-ए। से सत्ते, कमला माइ हमरा जे बाट धरओलनि से बड़ नीक लागल। आर चारि-पाँच गोटेके सङोर कएलहुँ। धारमे पानि घटए लागल रहैक। इचना आ पोठीक अबार चलैत रहैक। छानि छानि कए सुखाबए लगलहुँ। सुकठीक बनीज खूब जमल। नेपाल पहुँचिते गामे-गाम छिड़िया जाइ। दुइए दिनमे एक बोड़ा छुहक्का उडि जाए। फेर सभ सङोर कए गाम घुरि आबी।

दुइए सालमे हमहूँ थितगर भए गेलहु। बेस जकाँ रुपैया जर भए गेल। तखनि सभ मीलि कए एकटा पोखरि तेसाला बन्दोबस्त लेलहुँ। भदवारिमे मखान तैयारी करी। मखान तँ अपनहि राजमे बिका जाए।

तेसर साल सुकठी लए कए जखनि नेपाल पहुँचलहुँ तँ एक राति एकटा जंगलमे राति भए गेल। हाथ-हाथ नै सुझै। सभक मोन भेल जे एतहि राति बिताबी। लगमे एकटा घराड़ी सेहो देखलियै। पानियोक सुपास रहै। ओतहि भानसक इन्तजाम-बात भेलै। फुलिया ओहि घराड़ीसँ आगि माँगि आनलक तँ तेहन गप्प कहलक जे छगुन्ता लागि गेल। ओ कहलक जे अपन नगरक पुरना राजाजी एतहि रहै छथि। ओ हिनका सभक बोली-बानीसँ बुझि गेल रहनि। बादमे गरसँ रानीजी कें देखलकनि तँ चट चीन्हि गेलनि। हमहूँ सभ जाइ गेलहुँ सत्ते ओएह रहथि। सभटा ओहिना अखियास छलनि। हमरा सभकें चीन्हि गेलाह। आँखि छुटलनि की घैल भए अएलनि। भरि पाँज कए पकड़ि लेलनि। रातिमे किन्नहु फूट मानस नै करए देलनि।

जखनि गाम घुरि अएलहु तँ राजाजीक गप्प टोल भरिमे कहलियैक। सभ हँसेरीक तैयारीमे लागि गेल। सहथ तँ सभक घरमे रहबे करए बाँकी एक सय फड़सा आ एक सय भाला बनवाए घरे-घर छिपाए देलियैक। राजाजीसँ गप्प कएलाक बाद ठीके दुर्गा महरानी सभक मोन पर सवार भए गेल रहथि। पछिमाहा राजाकें कानो-कान नै भनक लागए देलियै।

तावत भदवारि सेहो बीति गेल रहै। मखानक गूड़ी फोड़ैके जोगारमे लागि गेलहु। राजाक एकटा पोखरिमे तेकड़ी पर मखान उपजओने रही। एक दिन सिपाही आबि कए कहि गेल जे राजाजी अपनै दलान पर सोझाँमे फोड़ओथिन। हम सभटा गूड़ी लए हवेली पर पहुँचलहु। ओतहि सभटा व्योंत धराए फोड़ए लगलहुँ। हमर नियम रहए जे मखान के ढेरी सँ पाँचटा पहिलुक फोंका कमला माइकें भोग लगा दियनि, तकर बाद बाँट-बखरा होइ। थोडेक गूड़ी फोडै लेल बाँकिए छल कि तावत रंगमे भंग भए गेलै।

बड़की रजकुमरी जकर वयस पनरह-सोलह छल हेतै, ऐंठैत-जुठैत आएलि आ देखिते-देखिते मखानक ढेरियेमे हाथ लगाए खाए लागलि। फुलिया एक-दू बेर दबले मुहें रोकबो कएलकै, मुदा ओ माननिहारि नै। तखनि हमहूँ कने जोर सँ कहलियै जे पहिलुक फोंका कमला माइकें चढतनि। अहाँ हाथ लगा देलियै तँ सौसे ढेरी अँइठ भए गेलै। अँइठक नाम सुनिते ओ भभा कए हँसए लागलि आ कहलक जे हम कि गाए-मँहीस जकाँ ढेरीमे मुँह लगाकए खेलियैए? तखनि अँइठ केना भेलै?

“निखनात नै ने रहलै”- कहलकै फुलिया।

ई गप्प-सप होइए रहै कि ओ चंडलबा राजा हनहनाइत आएल।

– की बकझक करै छें? गोढिबे, बड़ अँइठ-कुँइठ बुझए लगलहिन-ए। भाँड़मे जाथु तोहर कमला माइ। सरबे पंडिताइ झारै छें। चुपचाप काज कर।’- राजा बमकए लागल।

हमरहु एँड़ीसँ टिकासन धरि लेसि देलक। सभसँ बेसी खराब लागल कमला माइ के गरिआएब। भदेससँ आबि कए केओ हमरा सभक अदौके बातकें नकारि देत, ओकरा पर हँसत तँ से केना बरदास्त हैत। एक तँ ई राजा पच्छिम दिससँ जिनिस सभ आनि आनि कए एतुका लोककें कोंढि बना देलक। जखनि मिलहा कपड़ा अनलक तकर बाद बोचा मियाँक दुर्गति हमरा देखल छले। ओइ सभ चालिसँ दूहि लेलक ई अइ लोककें। तइ पर सँ आब हमरा सभक कमला माइकें सेहो गरिआओत। हम सभ जँ कमला माइक अरधना करिते छी, तँ एकर कोन दालि गलै छै। ई सभटा बात हमरा माथमे घुमए लागल। हमहूँ तानि कए कहलियै-  “मुँह सम्हारि कए बाजह। कमला माइक मादे किछु अंट-संट बजलह, तँ जे ने से भए जेतह।”

हमर ई गप्प सुनिते ओ चंडलबा राजा जेना बताह भए गेल। हाक देलकै तँ चारि पाँच टा सिपाही दौड़ल। ओहिमे सभ अपने जाति-भाय रहए। मुदा राजाक एँड़ी चटनिहार सभ। ओ सभ डंटा लए कए हमरा चारूदिस सँ लठियाबए लागल। से देखि क हमरा आर लहरि चढ़ि गेल। की कमला माइ ओकरा सभक माय नहि छलखिन?

राजाक आढति पर हमरा दुनू गोटेकें रस्सामे बान्हि घिसियौने एही सिमर गाछ तर अनलक। हमरा गाछक एही डारिमे उलटा लटकाए देलक आ हमरा सोझाँमे ओ पाँचो-छबो टा सिपाही फुलियाके नोंचि पटकि मारि देलकै।”

एतबा कहि ओ परेत बपहारि काटए लागल। ओकरा कस्साक मारि मोन पड़ि आएल रहै।

ताबत पह फाटि रहल छलै। राजा उठि कए घैलसँ पानि लए कुरुर कएलनि आ खोपडिमे बैसि रहलाह।

परेत फेर बाजल- “हे राजा, आब राति बीति रहलै-ए। आब हमरा चल जएबाक बेर भए गेल। अहाँक दोसर सबालक जबाब हम काल्हि देब”।

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