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Home›मैथिली साहित्य›संवेदना (मैथिली कथा) – भवनाथ झा

संवेदना (मैथिली कथा) – भवनाथ झा

By Bhavanath Jha
December 28, 2021
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samvedana

डिजिटल संस्करण- भविष्यक लेल एकटा प्रयोग

लगभग बीस वर्षक शोधक उपरान्त डा० सिन्हाकेँ मनुक्खक मस्तिष्कमे संवेदनाक भौतिक आ रासायनिक संरचनाक पता लागि गेल रहनि। स्कैनिंश मशीन, कम्प्यूटर अल्ट्रासाउण्ड, एकर सभक विकासक बाद एहि क्षेत्रमे शोधमे बड़ सहायता भेल छलनि आ एकैसम शताब्दीमे ओ निश्चित रूपसँ खोज कए नेने छलाह जे मानवक कपारक सामने सेरीव्रमवला भागमे एकटा खधुली होइत छैक जाहिमे न्यूरॉन कोशिकाक एक समूह जखनि एकटा विशेष तरल पदार्थसँ भीजैत अछि, तखनि ओकरामे संवेदना जन्म लैत छैक। ओही तरल पदार्थक संरचनाक पता हुनका लागि गेल रहनि

डा० सिन्हा वैज्ञानिक छथि। हुनक प्रयोगशाला अमेरिकामे छनि जतए सभ तरह सुविधा छनि, राजकीय सहयोग छनि, संरक्षण छनि। अनेक सहयोगी छथिन। विज्ञानक विभिन्न शाखाक अधिकारी विद्वान् हुनक एहि उपयोगी शोधसँ जुड़ल छथि। अधिक काल ओहि प्रयोगशालाक सभागारमे संगोष्ठी भेल करै-ए। शोधक बीचमे आएल कोनो बाधापर विचार, विभिन्न शाखाक विद्वानक मन्तव्य, शोधक प्रगतिपर प्रतिवेदन आदि लेल ई संगोष्ठी सप्ताहमे कम सँ कम एक दिन होइते रहैए।

मुदा आजुक गोष्ठी एकटा विशेष समस्याक समाधान कतबा ले’ राखल गेल छल।

बात ई भेल रहै जे एक इन्टरनेट पत्रिका डा० सिन्हा शोधकार्यक संबंधमे लम्बा-चौड़ा टिप्पणी कएने रहय जे संवेदना जे कि बेकार वस्तु थिक, ओकर भौतिक आ रासायनिक संरचना पर शोध करबा ले’ लाखो डालर रुपया पानि जकाँ बहाओल जा रहल अछि। संवेदना एकटा व्यसन थिक, जे विकासमे बाधक अछि। संवेदना एकटा नशा थीक जे मनुक्खकेँ उत्तेजित कए दैत अछि,  संवेदना एकटा जंजाल थिक, जकर बन्धन कटलाक बादे के ओ चिड़ै जकाँ उन्मुक्त आकाशमे उडि. पाओत आ विकास कए सकत। तें एहन विषय पर शोध तत्काल बंद कएल जाए।

इंटरनेट पत्रिकाक एहि टिप्पणी पर विभिन्न देश सँ सहमति ई-मेल सँ आएल रहैक आ तें अमेरिका सरकार डा० सिन्हासँ हुनक मन्तव्य मँगने रहनि।

सभागार खचाखच भरल छल। एल०सी०डी० स्क्रीन डा० सिन्हाक लैपटॉपसँ जोड़ल रहए, जाहिपर मानव मस्तिष्कक संवेदनाक स्थानक चित्र चमकि रहल छल।

डा० सिन्हा बीज भाषणमे सोझे अपन शोधक उपयोगिता पर अएलाह-

“मानव जाहि गति सँ विकास कए रहल अछि, ओकरा देखैत कहल जा सकै-ए जे ओ सुपरमैनक रूप में बदलि जाएत आ ओकरामे बाँकी तँ सभ किछु मानवे जकाँ रहतैक केवल संवेदना नै रहतै। आ फेर ओ अतिमानव संवेदनाक खोजमे अपन समस्त उर्जा झोंकि देत। तें हम एहि संवेदनाक रासायनिक आ भौतिक संरचनाक खोज कए ओहि अतिमानवक पीढ़ीके दिय चाहैत छी जे भविष्यमे मानवीय संवेदनाक ओ रसायन प्रयोगशाला मे बनाए लेतैक।”

एहि बीज भाषण पर मत-मतान्तर उपस्थित भेल। केओ एकर नैतिक पक्ष पर प्रश्न उठाओल तँ केओ कहलनि जे एके कालमे मानव आ अतिमानव दुनूक पीढ़ी आस्तित्वमे रहत तें ओ दुनू एक दोसरा सँ तालमेल कए अपन विकास कए लेत। एही मत मतान्तरक बीच एकटा वैज्ञानिक जे अपन मन्तव्य देलनि ओ डा० सिन्हाकें छू देलकनि।

ओ कहने रहथिन जे मानव आ अतिमानव एक सँगे अस्तित्वमे नै रहि सकत, जेना बाघ बिलाड़िके देखिते खा जाइत अछि, तहिना ओ अतिमानव अपन सम्पर्कमे अबिते मानवक अस्तित्व मेटाए देत। दोसर बात ई जे संवेदनाक ओहि रसायनक ततेक जटिल संरचना अछि जकरा लैबमे बनाओल नहि जा सकत आ जँ बनियो जाएत तँ ओकर सफलताक जाँच केना होएत, किएक तँ मानवीय संवेदनाक एकोटा नमूना रहबे नै करतै। तेँ एना कएल जाए जे मनुष्यसँ भिन्न कोनो प्राणीमे एहि संवेदनाक रसायन सुरक्षित कएल जाए, जाहिसँ ओ अतिमानव ओहि प्राणीसँ ओ रसायन शल्य-क्रिया द्वारा लए लेताह। एहि प्रकारें मानवीय संवेदना सुरक्षित रहत।”

डा० सिन्हा अपन आवास पर घुरलाह। तावत बेसी राति भए गेल रहैक। सभ सूति रहल छलनि। कॉल कएलनि तँ नोकर आँखि मीड़ैत गेट खोलि देलकनि डा० सिन्हा अपन कोठली दिस बढलाह। नोकरकेँ सूति रहबा लेल कहि भोजन करैत काल आ निर्णय लेलनि जे एहन जानवर ताकल जाए जकरामे ‘संवेदना’ नहि रहैक आ ओकरा पर एहि रसायनक प्रयोग कएल जाए।

हुनक नींद बिला गेल रहनि। रातुक बारह बाजि रहल छलैक तैयो एखनि काज आगाँ बढ़एबा लेल ओ उत्सहित छलाह। सभसँ पहिने ओ ई देखए चाहैत छलाह जे कोन परिस्थितिमे मानव संवेदना केँ छोड़ि दैत अछि। डा० सिन्हा लैपटॉप खोललनि आ इंटरनेट पर ‘संवेदनहीनता’ शब्द लीखि सर्च करए लगलाह। सर्चइंजन दस हजार रिजल्ट देलनि आ तकर बादो बहुत सर्च बाँकिए छलैक।

ऊपर सँ किछु पेज खोललनि। पहिल पृष्ठ छल नेताक ‘संवेदनहीनता’, जे बाढ़िमे भसिआइत जनताक लेल किछु नै कएने रहथि। दोसर पृष्ठपर एकटा गरीब बाप द्वारा बेटीक हत्या कए देबाक घटना छल, जाहिमे ‘संवेदनहीनता’ शब्द रहैक। तेसर पेजपर एकटा घटनाक समाचार रहैक जे स्कूल जाइत काल एकटा बच्चा सड़क कातक नालामे गरदनि धरि फँसल दू घंटा तक चिचिआइत रहल, मुदा केओ ओकरा निकालक नै। चारिम पेजपर गर्भस्थ कन्याक हत्याक समाचार छल। डा० सिन्हा एहि रिजल्टक सभ पृष्ठकेँ देखब जरूरी बुझएलनि तेँ ओ अपन एकटा सहयोगीकेँ सभटा पेज डाउनलोड करबाक आदेश ई-मेलसँ दए सूति रहलाह।

संसार भरिमे जे समाचार छपल छलैक, आ जे किताब, ब्लॉग सभ लिखाएल छलैक आ ओहिमे जतए जतए संवेदनहीनता शब्द छलैक, ओकर सर्वेक्षण आ निष्कर्ष डा. सिन्हाकेँ चौका देलकनि। ओ एहिसँ निष्कर्ष निकाललनि जे जखन मनुक्ख विकास करए चाहैत अछि, ओकरा भोरसँ आधा राति धरि खटए पड़ैत छैक आ तेँ ओकर संवेदना बिला रहलैए। एकर विपरीत बहुत मानव एहन अछि, जकरा कोनो तरहक अभाव संवेदनहीन बना रहलैए।

तखनि डा. सिन्हा शोधक आरम्भिक चरणमे वरद, गदहा आ वानर एहि तीन स्पेसीजकेँ चुनलनि। वरद खटैनीक साकार मूर्ति थिक। भोरेसँ ओकरो खेतमे, गाड़ीमे, कोल्हुमे जोति देल जाइत छैक। डा. सिन्हाकेँ पूरा भरोस छलनि जे जँ खटैनीसँ संवेदना बिलाइत अछि तँ वरदमे संवेदना नहिंए होएत। गदहा सेहो एही कोटिमे अछि। धोबीक कपड़ा उघैए, जाँत-सिलौट लदने दुआरिए दुआरि घुमैए आ पैघ-पैघ शहरमे जतए गलीमे कोनो गाड़ी नै जा पबैत छै, ओतए गदहे सँ ईटा, बालू, गिट्टी, सीमेंट आ घर भरबा लेल माँटि उघाओल जाइत अछि तेँ खटैनीक कारणे गदहामे तँ संवेदना नहिए होएत।

आ जँ अभावक कारणें संवेदना बिलाइत अछि, तँ वानर अवश्य संवेदनाशून्य होएत। वानरके ने तँ घर छैक आ ने खेत, ने ओ मांसभक्षी थिक, जे कतहु ककरो हत्या कए भूख मेटाए लेत। गाछपर रहैत अछि; फल खाइत अछि। जंगलो तँ धीरे धीरे कटाइए रहलै-ए। तखनि तँ अबस्से वानरमे संवेदना नहि होएबाक चाही।

डा. सिन्हा एहि तीनू स्पेसीजपर अध्ययन करबा लेल देश-विदेश अनेक वैज्ञानिककेँ ई-मेल कएलनि आ ओकर रिजल्ट अएबा धरि अपनहु गाम घुरि अएबाक कार्यक्रम बनबए लगलाह। आ अपन एकटा सहयोगी पर प्रयोगशालाक भार दए दोसरे दिन पत्नी आ नोकरक संग स्वदेश विदा भए गेलाह।

हुनक गाममे माता-पिता रहैत छथिन। पर्याप्त खेत छनि। पुरना बँगला छनि। दूरा पर दू जोड़ा वरद, गाय, मँहीस छनि। सभटा पर नोकर-चाकर लागल रहै छनि। पाँच किलो चाउर एक साँझमे सीझैत छनि। ओ गाम पहुँचलाह तँ उत्सव मनाओल गेल; भरि गामके नोंतल गेल। बाप-मायकेँ तँ जेना धरती पर पयरे नै पड़ि रहल छलनि।

ओहो विदेशसँ आएल रहथि; नोकर सभ इनामक लोभमे हिनके आगु-पाछु करय। प्रात भेने इहो सभकेँ बजाए इनाम बाँटए लगलाह तँ कपड़ा धोनिहार फेकनाकेँ नहि देखलनि। फेकनाकेँ ओ बच्चहिसँ देखैत रहथि तेँ खोज कएलनि तँ सभ नोकर सकुचाए लागल। एकटा नोकर दम साधि कए बाजल – “निकालि देल गेलै, मालिक।”

-“किए?”

-”मालिकक कुरतामे एकटा नमड़ी रहि गेल छलै, जे ओ कपड़ा खीचैत काल चोराए लेलक।”

– “नै, नै, मालिक!” दोसर एकटा नोकर कहलकनि।

– “तखनि किए निकालि देल गेलै?”

कातेमे डा. सिन्हाक पिता छलथिन्ह। ओएह कहए लगलखिन्ह- “करीब छओ मास पहिने अपन वरदक घरमे एक राति आगि लागि गेल, जे एके बेर बेसम्हार भए गेलै। फेकना दलान पर सुतल रहए। ओ सोझे वरदक घर ढुकि गेल आ सभटा वरदक डोरी खोलि बैलाए देलेकै। मुदा ओकर अभाग देखू जे अपनै लटपटा गेल आ कुट्टीकटा पर खसि पड़लए। ओकर पयरमे बेसी कटि गेलै। किछ दिन दवाइ कराओल गेलै मुदा ठीक नै भेलै आ एकटा पयर नीक जकाँ बेकार भए गेलै। तखनि ओहि लुल्ह-नाङरके राखि कए की होएते? ओकरा ओना निकालि दितियैक तँ गामक लोक गुटबंदी करितए, तेँ चोरिक आरोप लगा कए मारि-पीटि बैलाए देलियै।

डा. सिन्हा सिहरि उठलाह। मोन केनादन करए लगलनि तँ एकटा नोकरकेँ संग कए टहलै लेल बाध दिस निकलि गेलाह। रस्तहिमे फेकन भेटि गेलनि। गदहा पर कपड़ा लादि ओहो पुरनी पोखरि जा रहल छल। भेंट भेलनि, गप्प भेलनि, तँ डा० सिन्हा इनाम लए जएबा लेल कहि देलखिन। अपने तँ ओ गाममे नै रहै छथि, तेँ बेसी किछु कहबासँ पहिने सभसँ विचार कए लिय’ चाहैत रहथि।

डा० सिन्हा बाधमे अपन खेत देखलनि, कमलम गाछी देखलनि आ घर घूरि गेलाह। आ दोपहरियामे खा पी कए निश्चिन्त भेलाह। बेरू पहरमे एकटा घटना घटल। सभ सुनलनि जे बथान पर बान्हल चारू वरद बोमिआए रहल अछि। नोकर-चाकरक संग डा० सिन्हा सेहो दलान पर अएलाह तँ दैखैत छथि जे फेकन नादि लग ठाढ़ अछि आ एकटा वरद ओकर कान्ह पर अपन गरदनि देने निष्पन्द अछि। वरदक आँखि मुनाएल छै आ नोर बहि रहल छै। दोसर वरद ओकर पीठ चाटि रहल अछि। बाँकी दुनू सेहो लग अएबाक अथक प्रयास कर रहल अछि।

डा० सिन्हा चोट्टे घूरि घर गेलाह। लैपटॉप खोललनि आ अपन सहयोगी सभके ई-मेल कएल- “हमर शोध लेल वरदक स्पेसीज उपयोगी नै होएत। अहाँ सभ दोसर कोनो जानवरक खोज करू जकरामे भावना नै रहए।

अहूँ लोकनि जँ जनैत होइ तँ डा० सिन्हाकेँ सूचित कए दियनि। हुनक ई-मेल आइ०डी० अछि- इनफो एट दी संवेदना डॉट कॉम।

समाप्त

Tagsकहानीकोशिकान्यूरॉनभवनाथ झामैथिलीमैथिली कथासंवेदना
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Bhavanath Jha

मिथिला आ मैथिलीक लेल सतत प्रयासरत

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