हमें पढ़ाया जाता है कि भारत में सतीप्रथा थी। पति की मृत्यु होने पर विधवा पत्नी को जिन्दा जला दिया  जाता था। इसे एक प्रचलित प्रथा कहकर अंगरेजों ने इसके लिए भारतीय धर्मशास्त्र को दोषी ठहराया और उसके उन्मूलन के लिए मुहिम चलायी। इस प्रकार, उन्होंने भारतीय धर्मशास्त्र में अमानवीय क्रूरता साबित करने में सफल हुए और बाद में चलकर भारतीयों के मन में अपनी ही मिट्टी और पानी के प्रति अनास्था उत्पन्न करायी और उन्हें ईसाई धर्म की ओर आकृष्ट करने का कार्य किया।

हमें पढ़ाया गया है कि राजा राममोहन राय ने इस प्रथा को समाप्त किया।

आइए, आज हम इसकी सच्चाई जानें।

1805 ई. में एक पुस्तक प्रकाशित हुई- “Memoir of the expediency of an ecclesiastical establishment for British India; both as the means of perpetuating the Christian religion among our own countrymen; and as a foundation for the ultimate civilization of the natives.”

इसके लेखक थे- Buchanan, Claudius, (1766-1815)

इस पुस्तक के शीर्षक का अनुवाद इस प्रकार है-  “ब्रिटिश भारत के लिए ईसाई-धर्म संबंधी प्रतिष्ठान की समीचीनता का संस्मरण; दोनों हमारे अपने देशवासियों के बीच ईसाई धर्म को कायम रखने के साधन के रूप में; और मूल निवासियों की मौलिक सभ्यता की नींव के रूप में”

इस पुस्तक के नाम से ही हमें जान जाना चाहिए कि इसे लिखने का क्या उद्देश्य रहा होगा।

इस पुस्तक में एक ‘शुद्धिसंग्रह’ नामक पुस्तक का उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि इसी ग्रंथ में सती का विधान किया गया है।

क्या आपमें से कोई बता सकते हैं कि यह शुद्धिसंग्रह नामक शास्त्रीय ग्रंथ जिसे प्रामाणिक माना गया, उसकी मूल पंक्तियाँ कहाँ मिलेगी?

इसका मूल अंश पहले पढ़ना चाहिए-

5. स्त्रियों की बलि से संबंधित हिन्दुओं के नियमों को शुद्धि संग्रह नामक पुस्तक में संकलित किया गया है।

उस पुस्तक में जो अंश सिद्धांत या कर्म दहन से संबंधित हैं, वे यहाँ उन मूल शास्त्रों के नामों के साथ जुड़े हुए हैं जिनसे वे एकत्र किए गए हैं:

अंगिरा: जो पतिव्रता पत्नी अपने पति के साथ खुद को जलाती है वह अरुंधती के समान है। यदि वह उस स्थान से एक दिन की यात्रा के भीतर हो, जहां वह मरता है, तो उसके आगमन की प्रतीक्षा करने के लिए एक दिन की देरी की जाएगी।

ब्रह्मपुराण: “यदि पति की मृत्यु दूर देश में हो जाती है, तो पत्नी उसका कोई भी सामान ले सकती है, उदाहरण के लिए एक जूता और उसे अपनी जांघ पर बाँधकर अलग आग पर जलाएँ”

ऋग्वेद: “यदि कोई महिला अपने पति के साथ जलती है तो यह आत्महत्या नहीं है और संबंधी उसकी मृत्यु के कारण तीन दिन तक अशुद्ध रहेंगे, जिसके बाद श्राद्ध किया जाना चाहिए”।

विष्णु पुराण: “यदि कोई व्यक्ति पतित (गिरा हुआ या पापी) होता है, तो उचित प्रायश्चित करने के बाद उसकी पत्नी के साथ आग में मरने से उसके सारे पाप धुल जाते हैं।”

“एक गर्भवती महिला को जलाने से मना किया जाता है और उस महिला को भी, जो मासिक की अवधि में होती है या जिसके पास एक छोटा बच्चा होता है; जब तक कि कोई उचित व्यक्ति बच्चे की शिक्षा का दायित्व न ले ले।”

“यदि एक महिला चिता पर चढ़ती है और बाद में जीवन या सांसारिक चीजों के प्यार से जलने से इनकार कर देती है, तो उसे प्राजापत्य प्रायश्चित्त करनी चाहिए और तब वह अपने पाप से मुक्त हो जाएगी।

गौतम: “एक ब्राह्मणी केवल अपने पति के साथ मर सकती है, अलग अग्नि में नहीं। ज्येष्ठ पुत्र या निकट सम्बन्धी को चिता में आग लगानी चाहिए।”

हिन्दुस्तान में महिलाओं को जलाने की वर्तमान प्रथा के साथ इन अंशों की तुलना करने पर या तो सैद्धांतिक रूप से या औपचारिक रूप से थोड़ी समानता मिलेगी। मौजूदा प्रथा के कई विवरणों में हिंदू सीधे तौर पर अपने धर्म के कानूनों का उल्लंघन करते हैं।

आश्चर्य की बात है कि आज तक हम इन पंक्तियों को यहाँ कहे गये मूलग्रंथों में ढ़ूढ़ तो नहीं सके, पर हमने मान लिया कि सचमुच सनातन धर्म में ही खोट है जो सती प्रथा जैसी अमानवीय क्रूरता से भरा हुआ है।

इस बात को मानने वाले क्या हमें बतायेंगे कि ऋग्वेद के नाम पर जो तथ्य यहाँ संकलित हैं वह किस मंडल के किस सूक्त में है?

यदि नहीं बता सकेंगे तो मानना होगा कि इन्हीं ब्रिटिश अधिकारियों ने ‘शुद्धिसंग्रह’ नामक एक छद्म रचना लिखी या पैसे देकर लिखाई और उसी के आधार पर सनातन धर्म को बदनाम किया ताकि हम भारतीय अपने घर में साँप ही साँप देखने लगे और वे ईसाई धर्म की ओर हमें आकृष्ट करे।

इस अंश का मूल अंगरेजी इस प्रकार है:

5. The laws of the Hindoos concerning the female sacrifice are collected in a book called Sooddhee Sungraha.

The passages in that book which relate to the principle or act burning are here subjoined with the names of the original Shasters from which they are collected:

Angeera: The virtuous wife who burns herself with her husband is like to Aroondhutee. If she be within a day’s journey of the place where he dies the burning of the corpse shall be deferred a day to wait for her arrival.

Brahma Pooran: “If the husband die in a distant country the wife may take any of his effects for instance a sandal and binding it on her thigh burn with it on a separate fire”

Reek Ved: “If a woman thus burn with her husband it is not suicide and the relations shall be unclean three days on account of her death after which the Shraddhee must be performed.”

Vishnoo Pooran: “If a person be poteet (fallen or sinful) all his sins will be blotted out by his wife’s dying with him in the fire after a proper atonement has been made.”

“A pregnant woman is forbidden to burn and also the woman who is in her times or who has a young child unless some proper person undertake the education of the child.”

“If a woman ascend the pile and should afterwards decline to burn through love of life or earthly things she must perform the penance Prazapotyo and will then be free from her sin.”

Goutam: “A Brahmanee can only die with her husband and not in a separate fire. The eldest son or near relation must set fire to the pile.”

On comparing these passages with the present practice of burning women in Hindoostan little similarity will be found a either in principle or in ceremonial. In many particulars of the existing custom the Hindoos directly violate the laws of their religion.

1 Comment

  1. बहुत सुंदर सटीक जानकारी के साथ आप विभिन्न भ्रांतियों को स्पष्ट कर रहे हैं आपको इस महती कार्य हेतु साधुवाद है आदरणीय🙏🙏💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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