मिथिलामे दूर्वाक्षत आशीर्वादक कर्मकाण्ड थीक। दूबि जेना चतरब, उन्नति करब सभसँ पैघ आशीर्वाद भेल। वेद सेहो दूबिक चतरबाक प्रवृत्तिक प्रशंसा करैत अछि। मिथिलामे दूबिक संग तीन बेर भिजाओल अरबा चाउर (कतहु कतहु लाल रंगसँ रँगल सेहो) अथवा धानक सेहो प्रयोग होइत अछि। विवाह, उपनयन, मुंडन आदि सभ शुभ कार्यमे श्रेष्ठ जन आशीर्वाद दैत छथि। एकर मन्त्र सेहो अछि जाहिमे ईश्वरसँ प्रार्थना कएल गेल अछि जे सम्पूर्ण राष्ट्रक उन्नति हो जाहिसँ जनिका आशीर्वाद दए रहल छियनि हुनको उन्नति हो। ई सनातन संस्कृतिक आदर्श रूप थीक जाहिमे सभक उन्नति कामना कएल गेल अछि। सभक संग ओहि व्यक्तिक उन्नतिक कामना हमरालोकनिक उदार भावना थीक। समष्टिक उन्नति होएतैक तँ निश्चित रूपसँ व्यष्टिक उन्नति होएबे करत।

मन्त्र

ॐ आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम्। आ राष्ट्रे राजन्य: शूर इषव्योऽतिव्याधी महारथो जायताम्। दोग्ध्री धेनु: वोढाऽनड्वान् आशु: सप्ति: पुरन्ध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठा: सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायताम्। निकामे निकामे न: पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधय: पच्यन्तां योगक्षेमो न: कल्पताम् ।।
मन्त्रार्थाः सिद्धयः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः।
शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणामुदयस्तव।।
दीर्घायुर्भव। 3 बेर
विवाहिताकें- सौभाग्यवती भव 3 बेर।

अर्थ
( हे ईश्वर! हमर राष्ट्रमे ब्राह्मण ब्रह्मक तेज धारण कए उत्पन्न होथि। हमर राष्ट्रमे शूर, बाणसँ निशाना लगएबामे कुशल, महारथी क्षत्रिय उत्पन्न होथि । यजमानक गाय दूधारू होअए, बरद बहन्तू हुअए, घोड़ा खूब तेज चलए । नारी घर-परिवार बसबए वाली होथि । रथपर चढनिहार योद्धा, जयशील, पराक्रमी होथि युवक गण सभामे बैसए योग्य (सभ्य) होथि आ यजमान पुत्र वीर होथि । हमर राष्ट्रमे आवश्यकतानुसार समय-समय पर मेघ वर्षा करए। वनस्पति फल-फूल सँ लदि कए परिपक्व हुअए आ हमरालोकनिक योगक्षेम उत्तम रीतिसँ होइत रहए ।

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