मैथिलक दाह संस्कार
हमरालोकनि सभ जनैत छी जे मिथिलामे जे व्यवहार छल, सैह एतए धर्म कहौलक- धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयो मिथिलाव्यवहारतः। तें एतए कोनो एक स्मृतिक पूर्णतः मान्यता नै अछि। उत्तर भारतक आन क्षेत्रमे पितृकर्मक लेल गरुड-पुराणकें मान्यता भेटल छैक आ तेकरे अनुसार सभटा कार्य कएल जाइत अछि। गरुड-पुराणमे दाह-संस्कारक विधि बड़ जटिल छैक- मारते रास पिण्डदान होइत छैक- घरमे, दुआरि पर, बीच बाटमे, श्मशानमे। कर्ता केश कटाए दाह-संस्कार करैत छथि। मुदा मिथिलामे ई कोनो बात मान्य नहिं अछि। तें मिथिलामे गरुड़-पुराणक परिपाटी नै अछि। एतए हमरालोकनिक जे निबन्धकार लगभग 800 वर्ष पहिने जे पद्धति बनाए गेल छथि ओएह परम्परा मान्य अछि। ई मैथिलक परिपाटी थीक आ एकरे पालन हमरालोकनिक कर्तव्य थीक।
जनिक मृत्यु शहरमे होइत छनि आ कोनो नदीक कातमे अंतिम-संस्कार होइत अछि, हुनकामेसँ अधिकांश लोकक लेल अपन परम्पराक पालन चाहिओ कए कठिन भए जाइत छनि। फलतः ओ लोकनि स्थानीय व्यवहारक अनुरूप अथवा जेना मोन मानैत छनि तेना कए लैत छथि। हुनक सुविधा लेल एतए अंत्येष्टि-संस्कार विधि देल जा रहल अछि।
गाममे मृत्यु भेला पर अपन गाछीमे दाह-संस्कार होइत अछि। मुदा शहरमे कोनो नदीक कातमे होइत अछि। जतय दाह-संस्कारक लेल विधिवत् घाट स्थापित छैक ओतए डोम अपन घरसँ आगि दैत छैक। ओहो गृहस्थक घरक आगि थीक तें गृहस्थकें ओहिसँ जराओल जा सकैत अछि। जतए घाट नै छैक आ डोम नै छैक ओतए अपनहिं घरसँ आगि लए जाएब उचित। कारणजे श्मशानमे पडारल आगि श्मशानाग्नि थीक, ओहिसँ शव-दाह अनुचित थीक। तें अपन घरे पर जराओल आगि गोइठामे संरक्षित कए लए जाइ।
गाममे मृत्यु भेला पर दाहसंस्कारक तेसर दिन अस्थिसंचयन होइत अछि। ओहि अस्थिकें पवित्र तीर्थमे भसएबाक व्यवस्था कएल जाइत अछि। मुदा नदीक कातमे दाह भेला पर अस्थिसंचयन नै होइत अछि। शवकें जरएलाक बाद लगले आगि मिझाए सभटाकें नदीमे प्रवाहित कए देल जाइत अछि। ई अंतर बुझल रहबाक चाही।
दाह-संस्कारक लेल स्थापित घाट पर जाहि यजमानकें परम्परा नै बुझल छनि हुनका संग असुविधा होइत छनि। पटनामे तँ आर्यसमाजी पुरोहित सभ हुनका ठकि कए आर्यसमाजक विधिसँ शवक मुँहमे हवन आदि कराए ओतहि अपन फोन न. दए तेसरा दिन घरक शुद्धीकरण करएबाक विधान बुझाए हुनका श्राद्धकर्मसँ विमुख कए दैत छथि। तें एहन लोकक लेल ई आलेख देल जा रहल अछि जाहिसँ ओ अपन परम्पराके बुझैत ओकर पालन पालन कए सकथि।
अथ मुमूर्षुकृत्यम् (मरबासँ पहिने कएल जाएवला कृत्य)
जखनि ई बुझि जाइ जे आब ई व्यक्ति किछुए काल धरि जीवित छथि तँ नीचाँ भूमि पर उत्तर दिस माथ रखैत पाड़ि दी आ माथ लग उत्तरमे आगि जराए आ तुलसीक गाछ राखि दी। जँ सम्भव हो तँ आँगनमे तुलसीक गाछे लग राखी।
जँ बाहर अस्पताल आदिसँ शव दाह-संस्कारक लेल आनल जाए तँ आँगनसँ बाहरे ई भूमियोग कराबी।
एहि कालमे वैतरणीदानक विधान कएल गेल अछि।
वैतरणीदान- (साक्षात् गाय दान करबाक स्थितिमे)
भगवान् विष्णुक स्मरण करैत कर्ता कुश, तिल, जल लेथि। जँ साक्षात् कारी रंगक गाय दान करबाक स्थिति हो तखनि संकल्प एना होएत।
कुश, तिल आ जल लए गायक देह पर – ॐ कृष्णगव्यै नमः। ॐ कृष्णगव्यै नमः। ॐ कृष्णगव्यै नमः।
दहिनाकात राखल दोसर कुश पर- ॐ ब्राह्मणाय नमः। ॐ ब्राह्मणाय नमः। ॐ ब्राह्मणाय नमः।
ॐ ऊष्णे वर्षति शीते वा मारुते वाति वा भृशम्।
दातारं त्रायते यस्मात् तस्माद् वैतरणी स्मृता।।
ॐ यमद्वारे महाघोरे कृष्णा वैतरणी नदी।
तां सन्तर्तुं ददाम्येतां कृष्णां वैतरणीं च गाम्।।
तकर बाद फेर कुश, तिल आ जल लए- ॐ अद्य अमुकगोत्रस्य पितुः अमुकशर्मणः (माइक मृत्यु भेलापर- अमुकगोत्रस्य पितुः अमुकशर्मणः के स्थानमे- अमुकगोत्रायाः मातुः अमुकीदेव्याः) यमद्वारस्थित-वैतरणीनदी-सुखसंतरणकाम इमां गां रुद्रदैवतां यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय अहं ददे।।
दानग्रहण केनिहार कहथि- ॐ स्वस्ति।
दक्षिणा- पुनः कुश, तिल आ जल लए- ॐ कृतैतत्-कृष्णगवीदानप्रतिष्ठार्थम् एतावद्-द्रव्यमूल्यकहिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे।
(एतए गायक मूल्यक दसम भाग दक्षिणा होएत।)
वैतरणीदान (नकदी दानक स्थितिमे)
भगवान् विष्णुक स्मरण करैत कुश, तिल आ जल लए नगदी पर – ॐ एतावद्-द्रव्यमूल्यक-कृष्णगव्यै नमः। ॐ एतावद्-द्रव्यमूल्यक-कृष्णगव्यै नमः । ॐ एतावद्-द्रव्यमूल्यक-कृष्णगव्यै नमः।
दहिनाकात राखल दोसर कुश पर- ॐ ब्राह्मणाय नमः। ॐ ब्राह्मणाय नमः। ॐ ब्राह्मणाय नमः।
ॐ ऊष्णे वर्षति शीते वा मारुते वाति वा भृशम्।
दातारं त्रायते यस्मात् तस्माद् वैतरणी स्मृता।।
ॐ यमद्वारे महाघोरे कृष्णा वैतरणी नदी।
तां सन्तर्तुं ददाम्येतां कृष्णां वैतरणीं च गाम्।।
तकर बाद फेर कुश, तिल आ जल लए- ॐ अद्य अमुकगोत्रस्य पितुः अमुकशर्मणः (माइक मृत्यु भेलापर- अमुकगोत्रस्य पितुः अमुकशर्मणः के स्थानमे- अमुकगोत्रायाः मातुः अमुकीदेव्याः) यमद्वारस्थित-वैतरणीनदी-सुखसंतरणकाम एतावद्-द्रव्यमूल्यक-कृष्णगवीं रुद्रदैवतां यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय अहं ददे।।
दानग्रहण केनिहार कहथि- ॐ स्वस्ति।
गोदानक नगदीक दसम भाग दक्षिणा होएत।
दक्षिणा- पुनः कुश, तिल आ जल लए- ॐ कृतैतद्-एतावद्-द्रव्यमूल्यककृष्णगवीदानप्रतिष्ठार्थम् एतावद्-द्रव्यमूल्यकहिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे।
दक्षिणा लेनिहार- ॐ स्वस्ति।
गाय अथवा नगदी मृतककें छुआए दान करी।
मृत्युक समयस सावा पहर अर्थात् 3 घंटा 45 मिनट शवकें राखी। तकर बादे श्मशानक लेल प्रस्थान करी।
दाह-संस्कारक लेल सामग्री-
- माँटिक कोहा– 1
- कुश (एक मूँठ, कठिहारी गेनिहारक संख्या देखैत, सभक लेल एक-एकटा मोड़ा बनाबए पडत। एकर एतिरिक्त एक तेकुशाक सेहो काज होएत। मुदा जँ बेसी कुश नै उपलब्ध हो तँ कमसँ कम एक तेकुशाक लेल कुशक व्यवस्था करी। जँ सेहो नै भेटए तँ तेकुशाक स्थानमे तीन दूबिक व्यवहार करी आ अन्य तिलांजलि देनिहार केवल तिल आ जलसँ तिलांजलि देथि।)
- तिल– 500 ग्राम
- गायक घी– जतबा सम्भव हो
- चाननक लकडी- जतेक संभव हो
- सड़र- जतेक संभव हो
- कपूर- जतेक संभव हो
- सुगन्धित धूप आदि सुविधानुसार
- गंगाक माँटि– गंगौट
- गंगाक जल, अन्य कोनो पवित्र तीर्थक उपलब्ध हो तँ सेहो लए ली।
- कर्ताक लेल एक जोड़ धोती आ उज्जरे कपड़ाक तौनी
- मृतकक लेल धोती आ तौनी
- जनेउ 2 जोड (महिलाक मृत्युक स्थितिमे केवल एक जोड)
- कुड़हरि, टेंगारी आदि
- सुखाएल खढ (ऊक बनएबाक लेल)
- सुखाएल लकड़ी अथवा अन्य कोनो जारनि, आगि धधकएबाक लेल
- गोइठा
- साबेक जौर (डोरी)- आधा किलो (चचरी पर शवकें बन्हबाक लेल)
- आमक लकडी (पर्याप्त मात्रामे। गाछ काटि काँच काठसँ जँ जराओल जाए तँ बीजू आमक गाछ कटाबी, कलमी नहिं। नदीक कातमे तँ जे उपलब्ध होएत ताहिसँ जराएब बाध्यता रहत।)
- किछुओ सोना। मान्यता अछि जे गृहस्थक शरीर पर सोना रहबाक चाही।
महिलाक मृत्युक स्थितिमे विशेष
- रेशमी लाल वस्त्र (रेशमी पुरानो होए तँ हर्ज नै। सूती पहिराबी तँ नव आवश्यक।) गार्हस्थ्य धर्मक आलोकमे सधवा अथवा विधवा दूनू स्थितिमे मृतकाकें रंगीन रेशमीक वस्त्र पहिराओल जाएत। ई मिथिलाक परम्परा अछि।
- सिन्दूर एवं अन्य प्रसाधन सामग्री
शवकें चचरी पर पाड़ि चारि गोटे विना कतहु रुकने श्मशान लए जाइ। कर्ता वामा हाथमे आगि लेने आगाँ-आगाँ चलथि।
श्मशानमे स्थान पवित्र कए जोड़क चिह्नक आकारमे टेंगारी सँ कनेक खाधि खुनि ली। खढक सात बंधनवला ऊक बनावी। तकर बाद कर्ता कोहा लए स्नान करबाक लेल जाथि आ ओतहि नव वस्त्र आ उतरी पहिरि कोहामे जल लेने दाह-स्थल पर आबथि। तखनि शवकें दक्षिण मुँहें बैसाए-
कर्ता पूब मुँहें बैसि तेकुशासँ कोहाक जल कें स्पर्श करैत-
ॐ गयादीनि च तीर्थानि ये च पुण्या सिलोच्चयाः।
कुरुक्षेत्रं च गंगां च यमुनां च सरिद्वराम्।।
कौशिकीं चन्द्रभागां च सर्वपापप्रणाशिनीम्।
भद्रावकाशां सरयूं गण्डकीं तमसां तथा।।
धैनवं च वराहं च तीर्थं पिण्डारकं तथा।
पृथिव्यां यानि तीर्थानि चत्वारः सागरास्तथा।।
एहिसँ कोहाक जलमे तीर्थक आवाहन कए ओहि जलसँ शवकें स्नान कराबी। कोहामे थोड़ेक जल छोड़ि दी।
शवकें नव वस्त्र पहिराए फूल, माला, चानन आदिसँ सजाए दी।
जँ सधवाक मृत्यु भेल हो तँ पतिक हाथें सिन्दूर कराए दी।
विधवाक पक्षमे बेटी, पुतोहु आदि केओ महिला सिन्दूर कए देथि। सेहो जँ केओ नै रहथि तँ शवक अपनहिं हाथ पर सिन्दूर दए ओही हाथें माथ पर लगाए दी। मान्यता छैक जे ओ विधवा स्त्री स्वर्गमे स्थित पतिक लग जा रहल छथि तें हुनका नव विवाहिताक वेषमे विदा कएल जाए।
चिता पर उत्तर दिस माथ रखैत पुरुषकें नीचां मुँहें आ महिलाकें ऊपर मुँहें राखी। तकर बाद कर्ता अपसव्य भए (जनेउ आ उतरीकें दहिना कान्ह पर रखैत। सामान्यतः जनेउ वामा कान्हसँ होइत दहिना कात नीचाँ रहैत अछि तकरा दहिना कान्हसँ होइत वामाकात करी।) दच्छिन मुँहें ठाढ भए वामा हाथमे ऊक लए-
ॐ कृत्वा सुदुष्करं कर्म जानता वाप्यजानता।
मृत्युकालवशं प्राप्तं नरं पञ्चत्वमागतम्।।
धर्माधर्मसमायुक्तं लोभमोहसमावृतम्।
दहेयं सर्वगात्राणि दिव्यान् लोकान् स गच्छतु।
ई पढैत ऊकमे आगि लगाए चिताक प्रदक्षिणा कए शवक मुँहमे आगि लगाबथि। ई कार्य तीन बेर होएत। तीनू बेर मन्त्र पढल जाएत आ शवक मुँमे आगि लगाओल जाएत।
ऊक कें मिझाए चिताक ईशानकोणमे राखि ली।
तकर बाद चिता पर पर्याप्त मात्रामे आमक जारनि, चानन, घी, सड़र आदि दए नीचाँ सँ आगि जराए ता धरि शव कें जराबी, जाधरि ओ जरैत-जरैत पड़बा चिड़ैक आकारक नहि भए जाए। एकरे पारम्परिक रूपसँ कपोतावशेष कहल गेल अछि।
तखनि कर्ता एक ठुट्ठीक सात टा आमक ठहुरी हाथमे लए सात बेर प्रदक्षिणा करैत, प्रत्येक बेर एक-एक ठहुरी पाछाँ मुँहें ॐ क्रव्यादाय नमस्तुभ्यम् ई पढ़ैत चिता पर फेकथि, आ प्रत्येक बेर वामा हाथें टेंगारीसँ ऊकक एक-एक बंधन काटथि।
आनो लोक जे कठिहारी गेल रहथि ओ पाँच-पाँच टा ठहुरी लए ॐ क्रव्यादाय नमस्तुभ्यम् ई पढैत पाछाँ दिस एक-एक ढहुरी चिता पर फेंकि, तकर बाद चिताक दिस देखने बिना श्मशानसँ चलि देथि।
श्मशानसँ चलबाक काल ध्यान राखल जाए जे एक-दोसराक पयरक मे ठेस नै लागए, माने दूरी बनाकए चलथि।
बाटमे पढबाक लेल यमगाथा-
ॐ अहरहर्नयमानो गामश्वं पुरुषं पशुम्।
वैवस्वतो न तृप्यति सुरारिरिव दुर्मतिः।।
ओतए सँ कोनो पोखरि अथवा नदीक कात जाए, स्नान कए जलेमे दक्षिण मुँहें ठाढ भए- हाथमे तिल, मोडा आ जल लए- ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत एष तिलतोयाञ्जलिस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
महिलाक मृत्यु भेलाक स्थितिमे- अमुकगोत्रे अमुकप्रेते कही।
तकर बाद भिजले वस्त्र पहिरने मृत व्यक्तिक घर पर पहुँचि दुआरि पर लोहा, पाथर आ आगिक स्पर्श करी।
लोहाक स्पर्श- ॐ लौहवद् दृढकायोस्तु। जलक स्पर्श करी।
पाथरक स्पर्श- ॐ अश्मेव स्थिरो भूयासम्। जलक स्पर्श करी।
आगिक स्पर्श- ॐ अग्निर्नः शर्म यच्छतु। जलक स्पर्श करी।
एहि तीनूक स्पर्श तीन चक्र सम्पन्न कए नीमक पात खाए अपन-अपन घर जाइ।
अशौचक विधान
- अपन दियाद-बादकें 10 रातिक अशौच। ओ मृत्युकालसँ दशम दिन केश कटाबथि।
- दियादसँ भिन्न मातामह एवं पितामहक संततिमे रहथि तँ तीन रातिक अशौच। ओ मृत्युकालसँ तेसर दिन केश कटाबथि।
- जे ने तँ दियाद होथि आ ने मातामह आ पितामहक संततिमे रहथि, ओ दाह-कालसँ तेसर दिन केश कटाबथि। जँ कोनो कारणवश मृत्युक दिन सँ अगिला दिन दाह संस्कार होएत तखनि मृत्युक दिन आ दाह-संस्कारक दिन पृथक् होएत।