संस्कृत पाठमाला- भवनाथ झा

विभक्तियाँ तो सात हैं किन्तु कारक छह ही हैं। षष्ठी विभक्ति अतिरिक्त है। चूँकि सम्बन्ध में शब्दों का क्रिया के साथ सम्बन्ध नहीं रहता है, इसलिए सम्बन्ध को कारक नहीं माना गया है।Continue Reading

संस्कृत पाठमाला- भवनाथ झा

पिछले 5 पृष्ठों से हम संस्कृत भाषा सीखने के लिए पाठमाला दे रहे हैं। इसके अन्तर्गत सबसे पहले शब्दरूपों को कंठस्थ करने का पाठ आरम्भ किया है। अभीतक हमने शब्दों के रूपों को कण्ठस्थ करने की अनुशंसा की है। इतने शब्दों के रूप कण्ठस्थ कर लेने के बाद अब संस्कृत वाक्य प्रयोग में सबसे पहले विशेष्य-विशेषण भाव को समझ लेना आगे के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।
हिन्दी का एक वाक्यखण्ड लें– “लाल रंग के फूल से देवी की पूजा।” यहाँ हिन्दी की वाक्य-योजना के अनुसार ‘के’ परसर्ग का प्रयोग है जो संबन्ध कारक का सूचक है। इसका अनुवाद करने में लोगों को भ्रम होता है। लोग सीधे तौर पर कह देते है- रक्तवर्णस्य पुष्पेण देव्याः पूजनम्। किन्तु संस्कृत में इसका अनुवाद होना चाहिए- रक्तवर्णेन पुष्पेण देव्याः पूजनम्। क्योंकि रक्तवर्ण पुष्प की विशेषता बतलाने के कारण विशेषण है।
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संस्कृत पाठमाला- भवनाथ झा

संस्कृत के जिन शब्दरूपों को अभ्यास के लिए दिया जा चुका है उनमें आपने 21 या 24 शब्द देखे होंगे। वे क्रमशः संख्या में इसी प्रकार हैं। जिन शब्दों के संबोधन नहीं होते हैं उनके 21 रूप ही होते हैं। उनके अर्थ इसी प्रकार जानना चाहिए।Continue Reading

संस्कृत पाठमाला- भवनाथ झा

विभक्ति एवं वचन का विचार किये बिना सीधे इन शब्दों का रूप कण्ठस्थ कर लेना सबसे उपयुक्त है। ध्यातव्य है कि प्रारम्भिक पाठों में याद करने से पूर्व अन्य किसी भी बात पर ध्यान देने से बाधा उत्पन्न होती है। ये दश नपुंसक शब्द परम्परा से नायक माने गये हैं। संस्कृत शिक्षण-पद्धति में प्राचीन काल से यह श्लोक प्रचलित है:Continue Reading

संस्कृत पाठमाला- भवनाथ झा

हम संस्कृत भाषा सीखने के लिए पाठमाला दे रहे हैं। इसके अन्तर्गत सबसे पहले शब्दरूपों को कंठस्थ करने का पाठ आरम्भ किया है। पिछले पोस्ट में 10 पुल्लिंग शब्दों के रूपContinue Reading