Brahmi Publication

Top Menu

  • उद्देश्य
    • पुस्तक-प्रकाशन
    • पोथी, जे पढल
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
    • पाबनि-तिहार
    • पूजा-पाठ
    • ज्योतिष-विचार
  • इतिहास
    • वाल्मीकि रामायण
    • धरोहर
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
    • संस्कृत पाठमाला 7 – कारक, सामान्य परिचय
    • पाठ- 6. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) संस्कृत भाषा में विशेष्य-विशेषण भाव सम्बन्ध
    • पाठ- 5. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 4. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) सर्वनाम शब्दों के रूप
    • पाठ- 3. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 2. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 1. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
  • वैधानिक
    • बार-बार पूछे गये प्रश्न
    • गोपनीयता, नियम एवं शर्तें-
    • कूकी की स्थिति (Cookies)
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति

Main Menu

  • उद्देश्य
    • पुस्तक-प्रकाशन
    • पोथी, जे पढल
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
    • पाबनि-तिहार
    • पूजा-पाठ
    • ज्योतिष-विचार
  • इतिहास
    • वाल्मीकि रामायण
    • धरोहर
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
    • संस्कृत पाठमाला 7 – कारक, सामान्य परिचय
    • पाठ- 6. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) संस्कृत भाषा में विशेष्य-विशेषण भाव सम्बन्ध
    • पाठ- 5. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 4. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) सर्वनाम शब्दों के रूप
    • पाठ- 3. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 2. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 1. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
  • वैधानिक
    • बार-बार पूछे गये प्रश्न
    • गोपनीयता, नियम एवं शर्तें-
    • कूकी की स्थिति (Cookies)
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति
  • उद्देश्य
    • पुस्तक-प्रकाशन
    • पोथी, जे पढल
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
    • पाबनि-तिहार
    • पूजा-पाठ
    • ज्योतिष-विचार
  • इतिहास
    • वाल्मीकि रामायण
    • धरोहर
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
    • संस्कृत पाठमाला 7 – कारक, सामान्य परिचय
    • पाठ- 6. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) संस्कृत भाषा में विशेष्य-विशेषण भाव सम्बन्ध
    • पाठ- 5. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 4. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) सर्वनाम शब्दों के रूप
    • पाठ- 3. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 2. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 1. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
  • वैधानिक
    • बार-बार पूछे गये प्रश्न
    • गोपनीयता, नियम एवं शर्तें-
    • कूकी की स्थिति (Cookies)
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति

logo

Brahmi Publication

  • उद्देश्य
    • जानकीपूजाविधि, (जानकीसहस्रनाम सहित), लेखक- पण्डित श्री शशिनाथ झा

      May 3, 2022
      0
    • article by Radha kishore Jha

      वेद या वेदान्त प्रतिपाद्य धर्म क्या है?

      October 28, 2021
      0
    • धर्मायण के आश्विन अंक के डिजिटल संस्करण का हुआ लोकार्पण

      September 21, 2021
      1
    • Kadamon ke Nishan

      मानवीय संवेदनाओं को समेटती डा. धीरेन्द्र सिंह की मैथिली कविताएँ- "कदमों के ...

      September 6, 2021
      0
    • Krishna-janma cover

      मनबोधकवि कृत कृष्णजन्म (प्रबन्धकाव्य), डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

      May 2, 2021
      0
    • Kirtilata cover

      विद्यापति कृत कीर्त्तिलता, डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

      May 2, 2021
      1
    • विद्यापति कृत कीर्तिगाथा एवं कीर्तिपताका, डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

      विद्यापति कृत कीर्तिगाथा एवं कीर्तिपताका, डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

      May 2, 2021
      1
    • अपभ्रंश काव्य में सौन्दर्य वर्णन

      अपभ्रंशकाव्य में सौन्दर्य वर्णन -डॉ. शशिनाथ झा

      April 30, 2021
      1
    • डाकवचन-संहिता

      डाकवचन संहिता (टिप्पणी-व्याख्या सहित विशुद्ध पाठ, सम्पूर्ण)- डॉ. शशिनाथ झा

      April 30, 2021
      1
    • पुस्तक-प्रकाशन
    • पोथी, जे पढल
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
    • Dayananda's merits

      ‘पितर’ के अर्थ में ‘अग्निष्वात्ताः’ शब्द का वास्तविक अर्थ क्या है?

      September 25, 2022
      0
    • Sanatana religion

      Hinduism versus Sanatana Dharma : Which of the two words is correct?

      May 10, 2022
      0
    • Krishnasthami

      ताही बीचै जनमल छोरा यानी उसी बीच छोरे श्रीकृष्ण का जन्म

      August 30, 2021
      0
    • सिरहर, सिरहड़

      मिथिलाक लोक-परम्परामे सिरहड़-सलामी

      August 7, 2021
      0
    • श्राद्ध-कर्म

      विपरीत परिस्थिति में श्राद्ध की शास्त्र-सम्मत विधि

      May 12, 2021
      0
    • डाकवचन-संहिता

      डाकवचन संहिता (टिप्पणी-व्याख्या सहित विशुद्ध पाठ, सम्पूर्ण)- डॉ. शशिनाथ झा

      April 30, 2021
      1
    • मिथिलाक प्राचीन सदाचार 01

      March 17, 2021
      0
    • Responsibilities of a Brahmana

      छठ का अर्घ्य- पण्डितजी की जरूरत क्यों नहीं?

      November 18, 2020
      1
    • Responsibilities of a Brahmana

      मैथिली लोकगीतों में नारी

      August 15, 2020
      0
    • पाबनि-तिहार
    • पूजा-पाठ
    • ज्योतिष-विचार
  • इतिहास
    • manuscript from Mithila

      गोनू झा व्यक्तित्व आ इतिहासक स्रोतक रूपमे पंजी-विमर्श

      August 7, 2023
      0
    • धूर्तराज गोनू कर्णाट शासनक कालक ऐतिहासिक पुरुष छलाह

      August 4, 2023
      0
    • सतीप्रथा

      भारत में सती प्रथा पर हंगामे के इतिहास की सच्चाई

      June 3, 2023
      1
    • Arya Samaj

      जॉन मुइर की ‘मतपरीक्षा’ तथा दयानन्द के ‘सत्यार्थप्रकाश’ का ‘साइड इफैक्ट’

      May 21, 2023
      0
    • bipra-dhenu--

      भारतीयों का वेद 'रामचरितमानस'

      March 15, 2023
      0
    • Vritta Muktavali of Maithil Durgadatta

      मैथिल दुर्गादत्त ओ हुनक छन्दःशास्त्रीय ग्रन्थ 'वृत्तरत्नावली'

      September 23, 2022
      1
    • Lalkrishna Advani on Maithili language

      मैथिली आ अंगिका पर लालकृष्ण आडवानी की बाजल रहथि

      September 22, 2022
      0
    • mithila map

      मिथिला आ ओकर अस्मिताक निर्धारक तत्त्व

      August 31, 2022
      0
    • the terrible mistake of the renaissance

      19वीं शती के रिनेशाँ की वह भयंकर भूल...

      June 26, 2022
      0
    • वाल्मीकि रामायण
    • धरोहर
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
    • संस्कृत पाठमाला 7 – कारक, सामान्य परिचय
    • पाठ- 6. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) संस्कृत भाषा में विशेष्य-विशेषण भाव सम्बन्ध
    • पाठ- 5. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 4. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति) सर्वनाम शब्दों के रूप
    • पाठ- 3. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 2. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
    • पाठ- 1. संस्कृत पाठमाला (प्राचीन पद्धति)
  • वैधानिक
    • बार-बार पूछे गये प्रश्न
    • गोपनीयता, नियम एवं शर्तें-
    • कूकी की स्थिति (Cookies)
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति
  • सनातन धर्म में बहुदेववाद बनाम धार्मिक स्वतंत्रता

  • क्या सनातन धर्म में बदलाव सम्भव नहीं है?

  • जॉन मुइर की ‘मतपरीक्षा’ तथा दयानन्द के ‘सत्यार्थप्रकाश’ का ‘साइड इफैक्ट’

  • छठ का अर्घ्य- पण्डितजी की जरूरत क्यों नहीं?

  • छठि परमेसरीक स्वरूप आ कथा

पुस्तक-प्रकाशनपोथी, जे पढललोक-वेद
Home›उद्देश्य›पुस्तक-प्रकाशन›Asato ma sadgamaya

Asato ma sadgamaya

By Bhavanath Jha
September 9, 2019
800
0
Share:

असतो मा सद्गमय

लेखक- डा. एस. एन. पी. सिन्हा, सम्पादक- भवनाथ झा

सम्पादकीय

चत्वरि शृंगास्त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्य।
त्रिधा बद्धो बृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्याँ  आ विवेश।।

ऋग्वेद की इन पवित्र पंक्तियों का अर्थ विविध शास्त्रों में विविध प्रकार से लगाया गया है। महाभाष्यकार पतंजलि ने व्याकरण शास्त्र के सन्दर्भ में इसकी व्याख्या की है, किन्तु मुझे इसका इस प्रकार भाव स्पष्ट हो रहा है कि सभी प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करनेवाले उस महान् वृषभ की चार सींगें धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष हैं, किन्तु उनके तीन पैर ही हैं- स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अध्यात्म। मुख दो हैं- लोक एवं शास्त्र और सात हाथें हैं, जिनकी सहायता से वे समस्त कार्य करते हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान एवं धरणा आदि सात (अन्तिम समाधि तो परिणाम है)। उनके तीन प्रकार के बन्धन हैं- दैहिक, दैविक एवं भौतिक ताप, जो उन्हें पीड़ित करते हैं। इस प्रकार महान् देव इस पृथ्वी पर विचरण करते हैं।

उस महान् देव के विचरण करने के तीन आधार, उनके तीन पैर- स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अध्यात्म हैं, जो मानव कल्याण के तीन आधार हैं, तभी तो वैदिक ऋषियों ने मृत्यु से अमरत्व की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर तथा असत् से सत् की ओर जाने की कामना की थी। ये तीन कामनाएँ हमें गतिशीलता प्रदान करतीं हैं-

असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय।

इनमें से लौकिक दृष्टि में स्वास्थ्य सबसे प्रथम है। तभी तो कालिदास ने भी इसे आद्य कहा है- शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। यह स्थूल है, हमारे वश में है, इसे हम कर सकते हैं। स्वस्थ रहकर, दूसरे चरण में शिक्षा पा सकते हैं, पढ़ सकते हैं तभी हम अध्यात्म के अधिकारी होंगे।

डा. एस.एन.पी. सिन्हा ने जब विभिन्न पत्रों-पत्रिकाओं में प्रकाशित कुल 68 आलेखों को संकलित कर उन्हें पुस्तक के रूप में समायोजित करने का गुरुतर भार सौंपा तो अनेक दिनों तक उन्हें गूथने की गुन-घुन में में लगा रहा। विराट् व्यक्तित्व के धनी डा. सिन्हा के आलेख एक ओर नशा के विरुद्ध मुहिम चलाते मिले, तो दूसरी ओर सम्प्रदायों की सीमा से परे अध्यात्म-चिन्तन के विषयों पर लेख मिले। अनेक आलेख शिक्षा से सम्बद्ध थे। पटना विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उनके द्वारा शिक्षा में सुधार के लिए आलेख लिखे गये थे। इन्हें एक धागे में पिरोना आसान नहीं था। यहाँ हमने स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अध्यात्म – इन तीनों सूत्रों में गूँथकर हमने उसे समायोजित करने का प्रयास किया है।

प्रस्तुत संकलन डा. एस. एन. पी. सिन्हा द्वारा लिखित एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में पूर्व प्रकाशित आलेखों, संस्मरणों, भेंटवार्ताओं एवं विभिन्न अवसरों पर दिये गये व्याख्यानों का दूसरा संकलन है। इससे पूर्व डा. अमर कुमार सिंह एवं डा. राधामोहन सिंह के सम्पादन में ‘शंखध्वनि’ के नाम से कुल 40 आलेखों का संकलन 2017 में प्रकाशित हो चुका है।

डा. सिन्हा मूलतः एक चिकित्सक रहे हैं। पटना मेडिकल कालेज के वरिष्ठ चिकित्सक के रूप में इन्होंने देखा कि नशा आज युवाओं को भटका रही है। यहाँ तक कि एलोपैथिक चिकित्सा-प्रणाली में भी उन्होंने अनेक दवाओं के तत्त्वों में नशीला पदार्थ परखा, तो उन्होंने उसका विरोध किया। अनेक दवाओं को प्रतिबन्धित कराने में भी इनकी भूमिका रही। विभिन्न समाचार-पत्रों में प्रकाशित लेखों के माध्यम से इन्होंने जागरूकता पफैलाने का कार्य किया। इनके लिए समाज महत्त्वपूर्ण रहा, नशे की शिकार समाज की भटकती युवा पीढी को रास्ते पर लाने का क्रम महत्त्वपूर्ण रहा, डाक्टरी की कमाई से ऐश्वर्य पाना कभी महत्त्वपूर्ण नहीं रहा। इन आलेखों में इन्होंने जिन शब्दों में नशे के विरुद्ध आबाज उठायी है, एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति को नंगा किया है, वह अपने आप में महत्त्वपूर्ण है।

डा. सिन्हा बाद में 21 जनवरी 1995 को गौरवशाली पटना विश्वविद्यालय के कुलपति बने। चिकित्सा के बाद शिक्षा के क्षेत्रा में उन्हें कार्य करने का महान् अवसर मिला। शिक्षा को उन्होंने मौलिक अधिकार मानकर उन्होंने विश्वविद्यालयों के निजीकरण के विरुद्ध मुहिम चलायी। धर्म और शिक्षा के समन्वय पर उनके विचार उन दिनों मान्य हुए। उनके कार्यकाल के दौरान पटना विश्वविद्यालय में अनेक सुधर कार्य किये गये, जिनका प्रभाव शिक्षा की गुणवत्ता पर भी पडा।

‘पटना विश्वविद्यालय की गौरवशाली परम्परा – एक झलक’ पुस्तिका में पृ. सख्या 18 पर इनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय की उपलब्धियों  इस प्रकार रेखांकित किया गया है-

‘‘1995 और उसके बाद
तीसरे चरण का प्रारम्भ 1995 ई0 से माना जा सकता है। इस वर्ष से पटना विश्वविद्यालय अपनी खोई हुई मान-प्रतिष्ठा को प्राप्त करने का अथक प्रयास करने लगा है। इस विश्वविद्यालय के छात्र, कर्मचारी, शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारी, कुलपति, कुलाधिपति, मुख्यमंत्री आदि सभी सम्बन्ध्ति तत्त्व जवाहरलाल नेहरु के इस सपने को साकार करने में विशेष रुचि लेने लगे है:
A University stands for humanisin] for tolerance] for reason] for the adventure of ideas and for the search of truth- It stands for the onwards march of the human race towords ever higher obiectives- It the Universities discharge their duties adequately] then it is well for nation and the people”…
जनवरी 1995 ई. से मई 1996 तक विश्वविद्यालय में जो विकास कार्य हुए हैं, उनकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है। 1995 में बी. एन. कॉलेज का शताब्दी समारोह मनाया गया। इस अवसर पर तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री श्री अर्जुन सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद यादव और अतिलोकप्रिय सांसद डा. रंजन प्रसाद यादव पधारे। इस अवसर पर बी. एन. कॉलेज शताब्दी भवन का उद्घाटन बिहार के राज्यपाल और कुलाधिति माननीय डा. ए. आर. किदवई ने किया।
‘गांधी दर्शन’ पर एक संगोष्ठी आयोजित हुई। इस अवसर पर त्रिपुरा के राज्यपाल डा. सिद्धेश्वर प्रसाद और राजस्थान के राज्यपाल श्री बलिराम भगत पधारे। माननीय कुलाधिपति डा. ए. आर. किदवई ने विश्वविद्यालय पुस्तकालय के इंटरनेट कम्प्यूटर सेन्टर का उद्घाटन किया। बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में राष्ट्रीय स्तर का एक सेमिनार प्रायोजित किया गया, जिसमें अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा के अध्यक्ष डा. एस. के. खन्ना पधारे। विश्वविद्यालय द्वारा ‘बलदेव सहाय स्मारक ब्याख्यान माला’ का आयोजन किया गया, जिसके मुख्य वक्ता उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश कुलदीप सिंह थे। इतिहास, भूगोल, राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं रसायनशास्त्र में 21 दिवसीय रिफ्रेसर कोर्स आयोजित हुआ। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 125 वीं जयन्ती समारोह के अवसर पर एक ऐतिहासिक साइकिल यात्रा का आयोजन हुआ जो 2 अक्टूबर 1995 ई. को दिल्ली स्थित बापू की समाधि राजघाट पर समाप्त हुई। विश्वविद्यालय ने व्यावसायिक एवं व्यावहारिक शिक्षा के क्षेत्रा में भी कदम रखा है। केन्द्रीय पुस्तकालय अब संसूचक उपग्रह से जुड़ गया है। कला एवं शिल्प महाविद्यालय की चहारदिवारी के लिए विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं प्रसिद्ध सांसद डा. रंजन प्रसाद यादव ने अनुदान की घोषणा की है।
कमिश्नर-कुलपतियों के बाद अर्थात् करीब डेढ़ वर्षों के भीतर हमें कुछ ठोस बदलाव के ठोस आधार दिखाई देते है। कुलपति प्रतिमाह वेतन के रूप में एक रुपया लेते हैं। पटना विश्वविद्यालय के केन्द्रीय पुस्तकालय को लाखों रुपये अनुदान मिले और भवन का कायापलट हुआ। रोशनी की विशेष व्यवस्था की गई। फोटो कॉपीयर या जेरॉक्स मशीन लगाया गया। कम्प्यूटर के माध्यम से इस पुस्तकालय का रिश्ता देश-विदेश के प्रमुख विश्वविद्यालयों एवं लाइब्रेरी से जोड़ा गया है। टेलीफोन-डाइरेक्टरी प्रकाशित हुआ है।
पटना विश्वविद्यालय समाचार बुलेटिन प्रकाशित करने के लिए एक सम्पादक मंडल का गठन हुआ है। इस बुलेटिन को प्रकाशित करने के लिए केन्द्रीय पुस्तकालय में एक कार्यालय की स्थापना हुई है।
सिनेट-सिंडकेट वर्षों से बीमार और कार्यहीन था। उसे जीवित और स्वस्थ्य किया गया है। भारतीय संविधन के अनुसार प्रथम बार आरक्षण का प्रावधन किया गया। विश्वविद्यालय के इस प्रयास से निश्चय ही नामांकन एवं नियुक्तियों में एक क्रांतिकारी बदलाव की आशा है। विश्वविद्यालय के प्रमुख पदों पर योग्य, कर्मठ एवं ईमानदार अध्किारियों को पदस्थापित किया गया है। परीक्षा विभाग एवं परीक्षा-प्रणाली में सुधर का प्रयास जारी है। वर्षों बाद कदाचार-मुक्त परीक्षा होने लगी है। समय पर परीक्षाफल प्रकाशित कराने का प्रयास किया जा रहा है।
विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा विमेन्स कॉलेज से रानीघाट में स्थित लॉ कॉलेज तक का लगातार दौरा करने, क्लास ज्यादा से ज्यादा हो और छात्रा तथा शिक्षक क्लास में उपस्थित हों- इस पर गम्भीरतापूर्वक ध्यान दिया जाने लगा है। कुलपति महोदय क्लास में जाकर लड़कों से प्रत्यक्ष रुप से साक्षात्कार किया करते और उनकी पढ़ाई-लिखाई की जांच करते रहते हैं ।
विश्वविद्यालय में व्यावसायिक शिक्षा को विकसित करने के लिए अभूतपूर्व प्रयास किय गये हैं। विमेन्स कॉलेज में व्यावसायिक शिक्षा से सम्बन्धित सर्वाधिक नवीन विषयों को चालू किया गया है ।
पटना कॉलेज के भवनों की रंगाई-पोताई और मरम्मत इसी अवधि में हुई है। बी. एन. कॉलेज में भी निर्माण कार्य हुए हैं। विश्वविद्यालय परिसर को असामाजिक तत्त्वों से मुक्त कराने में सफलता मिली है।
समय पर वेतन एवं प्रोन्नति के लिए किये गये प्रयास के परिणामस्वरूप विश्वविद्यालय, शिक्षक-आन्दोलन और साथ ही छात्रा आन्दोलन से प्रायः मुक्त रहा है।
दरभंगा हाउस एक ऐतिहासिक स्मारक बन चुका है। यह भवन बिल्कुल बर्वाद हो चुका था। लाखों रुपये खर्च कर इसे पुनर्जीवित करने का सफलतापूर्ण कार्य प्रारम्भ है ।
विश्वविद्यालय परिसर की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया गया है। व्हीलर सिनेट हॉल का सौन्दर्यीकरण किया गया है ।
थाना-पुलिस से कम-से-कम मदद लेकर अधिकांश समस्याओं को सुलझा देना आज के जमाने में काफी कठिन कार्य है किन्तु विश्वविद्यालय में गाँधीजी, विवेकानन्द और राधाकृष्णन् के आदर्श के आधार पर पुलिस से मदद लिए वगैर अधिकांश समस्याओं को सुलझाने और अनेकों प्रकार के विकास कार्य करने का नवीन सिलसिला जारी है।
एक-डेढ़ साल की छोटी अवधि में उपयुक्त कार्यों को करना और सफलता प्राप्त करना बहुत ही कम व्यक्तियों के लिए या किसी विश्वविद्यालय के लिए सम्भव है। आज दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कितने प्रकार की समस्याओं का जन्म होता जा रहा है…हम सबों से गुप्त नहीं है। दूसरी तरपफ, पटना विश्वविद्यालय में विकास का एक नया अध्याय शुरू हो चुका है और निश्चय ही इस विश्वविद्यालय को अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा एवं गरिमा प्राप्त करने में सपफलता मिलेगी । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमानुसार वर्ष में 130 दिन बढ़ाई आवश्यक है, किन्तु यहाँ के कई महाविद्यालयों में 1995 में 210 दिनों तक पढ़ाई हुई है। 9 जनवरी को आयोजित सिनेट की बैठक में माननीय कुलपति ने कहा- ‘विश्वविद्यालय एक कुल है, एक परिवार है, शिक्षक, छात्र और शिक्षकेतर कर्मचारी इसके सदस्य हैं। इन सभी के सहयोग और सद्भाव पर ही विश्वविद्यालय का सुसंचालन निर्भर है। और, इसके लिए जरूरी है कि बदलती परिस्थिति के अनुसार इनकी अपेक्षाएँ पूरी की जाएँ । उपयुक्त वेतनमान, महंगाई भत्ता और अन्यान्य सुविधएँ प्रदान किये बिना जहाँ हम शिक्षकों और शिक्षकेतर कर्मचारियों का भरपूर समर्थन नहीं पा सकते, वहाँ छात्रों को छात्रावास, पुस्तकालय और छात्रावृत्ति की पर्याप्त सुविधाएँ दिए बगैर चैन से नहीं रह सकते। शिक्षा के प्रकाश को घर-घर पहुँचाना हमारा परम कर्तव्य है। सिनेट की ऐतिहासिक बैठक में कुलपति ने कहा- ‘हमें ऐसी शिक्षा चाहिए जिससे चरित्र-निर्माण हो, मानसिक शक्ति बढ़े और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा होना सीखे। हमें दिखावा छोड़ना और सच्चाई का सामना करना चाहिए। अमिट चेतना से सम्पन्न इस विश्वविद्यालय की गरिमा हमारे हाथ में है। इसके मान सम्मान की रक्षा करना हम सब का परम कर्तव्य है।”

इस प्रकार स्वास्थ्य एवं शिक्षा के कार्य करते हुए डा. सिन्हा अध्यात्म से जुड़े रहे, पर इन्होंने कभी किसी सम्प्रदाय के लिए नहीं लिखा। मानव कल्याण, उनकी उन्नति के लिए इन्हें जहाँ जो मिला, उसे इन्होने अपनी भाषा दी। वेद, पुराण, गीता के साथ-साथ इन्होंने जैन एवं बौद्ध धर्मके सिद्धान्त ग्रन्थों से बहुत कुछ लिया है। विवेकानन्द इनके सर्वप्रिय दार्शनिक चिन्तक रहे हैं। जैन धर्म की साधिका श्रीचन्दनाश्री द्वारा स्थापित राजगीर स्थित वीरायतन के द्वारा मानव-सेवा में किये गये कार्यों से ये हमेशा मोहित रहे और प्रत्येक वर्ष वीरायतन की पत्रिका ‘अमर भारती’ के लिए वंदना लिखते रहे। इन सभी आलेखों में मूलतत्त्व भले एक हों, पर उन्होंने जिस प्रकार सनातन और जैन-परम्परा में एकता के तत्त्वों पर अपनी अभिव्यक्ति दी है, वह आज के समय में मननीय हैं।

डा. सिन्हा की लेखनी की विशेषता है कि वे किसी भी एक ग्रन्थ में नहीं बँधते। वे अनेक ग्रन्थों के अवलोकन के पश्चात् जो सोचते हैं उसे शब्दों में व्यक्त करते हैं। अतः इनके लेखन में मौलिकता है, अतः काल एवं स्थान की सीमा से परे पठनीय हैं और प्रासंगिक भी रहेंगे। काल के परे प्रासंगिकता शायद इस अर्थ में कि इनका चिन्तन उस महान् उद्देश्य की पूर्ति के लिए है, जो शायद कभी पूर्ण न हो सके, उस आदर्श को हम शायद कभी पा न सकें और उसके लिए किये गये प्रयास हमेशा अपेक्षित रहे।

Dr. S.N.P. Sinha
Dr. S.N.P. Sinha

आज ‘सिकुलरिज्म’, ‘रिलिजन’ आदि बहुत सारे शब्द अपनी व्याख्या के कारण भारतीय परिप्रेक्ष्य में विवादित हैं। अंग्रेजी के शब्दों के अर्थ पाश्चात्य ध्रा पर जो हैं, वे ही भारतीय धरक पर भी मान लेने के कारण हमारे सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। उदाहरण के लिए सिकुलरिज्म का अर्थ धर्मनिरपेक्षता माना जाता है, किन्तु इसके मूल की व्याख्या करते हुए डा. सिन्हा का कथन है कि वह भारतीय परिप्रेक्ष्य में वस्तुतः ‘सर्वधर्मसमभाव’ है। इस प्रकार की अनेक व्याख्या इस पुस्तक को आज के परिप्रेक्ष्य में महत्त्वपूर्ण बनाती है।

डा. सिन्हा समकालीन साहित्य को भी पढते रहे, उसके आलेखों पर अपनी प्रतिक्रिया भी देते रहे। उनकी ये प्रतिक्रियाएँ आलोचना की दिशा-निर्देशिकाएँ हैं अतः उन्हें भी यथास्थान समायोजित कर लेने का लोभ हम संवरण नहीं कर सके।

अपने स्वतन्त्र, कल्याणकारी तथा दृढ़ विचारों के धनी डा. सिन्हा अनेक पत्रकारों के द्वारा प्रशंसित हुए। इनके व्यक्तित्व तथा चिन्तन पर अनेक लोगों ने आलेख लिखे, जिनमें इनके द्वारा किये गये कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा हुई। कुछ आलेख हमें ऐसे भी मिले, जिन्हें हमने अन्त में समायोजित किया है, साथ ही अग्रतर शोध् कार्य के लिए डा. सिन्हा की वैयक्तिक उपलब्धियों से सम्बन्धित सामग्रियों को सिलसिलेवार ढंग से प्रकाशित किया है। वस्तुतः डा. सिन्हा का यह विस्तृत वैयक्तिक विवरण पूर्व प्रकाशित पुस्तक ‘शंखध्वनि’ से लिया गया है ताकि इस पुस्तक के पाठक भी उनके व्यक्तित्व से पूर्णतः परिचित हो सकें।

इस प्रस्तुत पुस्तक गम्भीर पाठकों को समर्पित करते हुए हर्ष हो रहा है कि डा. सिन्हा के विशाल चिन्तन-आयाम को एकत्रा करने का मुझे सौभाग्य मिला। पुस्तक का कलेवर कैसा है, इस पर सुधी पाठक प्रकाश डाल सकेंगें।

गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः।
हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति पण्डिताः।।

-भवनाथ झा

आलेखों की सूची

प्रथम खण्ड

मृत्योर्मा अमृतं गमय

  1. हर दवा हर किसी पर कारगर नहीं होती
  2. नशीली दवा: भारत बारूद की ढेर पर
  3. रोगों की दुनिया में फिर लौट रहे हैं हम
  4. नशीला दवा: एक राष्ट्रीय समस्या
  5. Drugs Deadly or Divine
  6. Mother of all Menace
  7. Battling Addiction
  8. Drugs and Society
  9. Drugs for Million : Where do we stand?

द्वितीय खण्ड

तमसो मा ज्योतिर्गमय

  1. आधुनिक शिक्षा के साथ धर्म का समन्वय आवश्यक                              
  2. सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, महान् दार्शनिक शिक्षक                                    
  3. धर्म की शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए
  4. शिक्षा का धर्म के साथ समन्वय जरूरी
  5. आग में जो तपा आगे वही चमका
  6. राष्ट्र के नवनिर्माण में पटना विश्वविद्यालय का योगदान                        
  7. क्या आज भी पटना कालेज बिहार का ऑक्सफोर्ड है?
  8. जैन कालेज: मेरे जीवन की एक प्रेरणा
  9. वर्तमान शिक्षा पद्धति में कई खामियाँ
  10. शिक्षा को गांव से जोड़ने का सवाल
  11. The epitome of knowledge
  12. कम्पीटिशन नहीं होता तो डाक्टर नहीं बन पाता
  13. शिक्षा का राजनीतिकरण हो चुका है
  14. Should Varsities be Privatised?
  15. Is privatisation the Key?
  16. Caste in a different mould
  17. Should institutions of higher learning be privatized?

तृतीय खण्ड

असतो मा सद्गमय

  1. अहिंसा परमो धर्मः
  2. गीता का मूलतत्त्व
  3. हे धूर्जटे पशुपते!
  4. स्वामी विवेकानन्द का नव वेदान्त दर्शन: जीवसेवा-शिवसेवा                 
  5. प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव एक ऐतिहासिक महापुरुष
  6. आध्यात्मिक चिन्तन में साम्यवाद
  7. सुखी कौन?
  8. मेरी आस्था विवेकानन्द के वेदान्त दर्शन में है                                      
  9. वेदान्त की समतावादी दृष्टि और स्वामी विवेकानन्द
  10. धर्म में समवाय ही शुद्ध दृष्टिकोण
  11. सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज
  12. वेदान्त की समतावादीदृष्टि और स्वामी विवेकानन्द
  13. स्वामी विवेकानन्द का नव वेदान्त दर्शन

चतुर्थ खण्ड

नमसा विधेम

  1. राजगीर का तीर्थ वीरायतन और माँ श्री चन्दनाश्रीजी
  2. कर्मयोगी मणिशंकर बाबू, एक मृत्युंजयी आत्मा
  3. स्वतःस्फूर्त माहौल था तब                                                               
  4. संदेश                                                                                          
  5. बहस, बिहार की छवि कैसे सुधरे? हर बिहारी अपना अंशदान दे             
  6. आशीर्वाद
  7. शुभकामना संदेश
  8. कुलपति के रूप में संदेश
  9. भगवान ऋषभदेव राष्ट्रीय कुलपति सम्मेलन में उद्बोधन
  10. वे दिन: वे लोग- दिव्यात्मा मदर टेरेसा                                              
  11. शुभ मंगल दिवस पर अंतःकरण के उद्गार                                            
  12. पाठकीय प्रतिक्रियाएँ
  13. MESSAGE

लेखक परिचय

  1. Dr. S.N.P. Sinha
  2. एक अपराजित योद्धा की भूमिका में

लोकार्पण समारोह

साहित्य सम्मेलन में डा सिन्हा की पुस्तक’असतो मा सद्गमय’ का हुआ लोकार्पण

मांगलिक-भाव के विद्वान साधु-पुरुष हैं डा. एस. एन. पी. सिन्हा 
पटना,२५ जून। विद्वान चिंतक,चिकित्सा शिक्षा-शास्त्री और पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा, सबके प्रति करुणा और सद्भाव रखने वाले,माँगलिक-भाव के साधु पुरुष हैं। इन्होंने वेदों के साथ भारतीय दर्शन और साहित्य का व्यापक अध्ययन किया है और उन्हें जीवन में उतारा भी है। विद्या से अर्जित होने वाली विनम्रता और सबके प्रति प्रेम का परमात्मीय-भाव इनके स्वभाव और चिंतन में है। इसीलिए इनके विद्वत्तापूर्ण व्याख्यानों में हीं नही, लेखन में भी भारतीय चिंतन और दर्शन मिलता है,जिसमें संपूर्ण-जगत के कल्याण की शाश्वत- भावना सन्निहित है। 

यह विचार मंगलवार की संध्या,बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में, विविध विषयों पर लिखे डा सिन्हा के ५२ आलेखों के संकलन ‘असतो मा सद्गमय’ के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि लोकार्पित ग्रंथ में, लेखों के विषय-साम्यता की दृष्टि से चार अलग-अलग खंडों में प्रस्तुत किया गया है। संस्कृत और हिंदी के विद्वान पं भवनाथ झा ने इस पुस्तक के संपादन का कर्तव्य पूरा किया है। ‘मृत्योर्मा अमृतं गमय’ नामक प्रथम खंड में डा सिन्हा ने चिकित्सा-शास्त्र के अपने ज्ञान और अनुभव को बाँटते हुए, आधुनिक-चिकित्सा-विज्ञान के कतिपय दोषों का भी उद्घाटन किया है तो नशा से ग्रस्त हो रही नई पीढ़ी पर चिंता व्यक्त की है। इस खंड में संकलित लेखों के माध्यम से डा सिन्हा ने रोगों से मुक्ति के रास्ते बताने की चेष्टा की है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ तथा’असतो मा सद्गमय’खंडों में संकलित उनके लेख भारतीय दर्शन और चिंतन की व्याख्या करते प्रतीत होते हैं, तो सद्भावना के अंतिम खंड, ‘नमसा विधेम’ में वेद-वेदांग-पोषित उनके विचारों को अभिव्यक्ति मिलती है।

इसके पूर्व पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के विद्वान पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि,लोकार्पित पुस्तक में लेखक ने जो विचार रखे हैं,वे किसी जागृत आत्मा के द्वारा हीं सामने लाए जा सकते हैं। डा सिन्हा ने अपने लेखों के माध्यम से आज के अनेक समस्याओं पर समाज का ध्यान खींचा है और यह सिद्ध किया है कि, आध्यात्मिक-दृष्टि को विकसित कर, वर्तमान की सभी समस्याओं का निदान किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जो ज्ञान, जीवन में उतारा नहीं जा सके, वैसा ज्ञान निरर्थक है। आज शिक्षा का उपयोग कम दुरुपयोग अधिक हो रहा है, क्योंकि जो शिक्षा मिल रही है, वह व्यक्ति को ज्ञान नहीं दे रही,भौतिक-संसाधन प्राप्त करने की लालसा बढ़ा रही है।

पुस्तक के संपादक पं भवनाथ झा ने कहा कि, पुस्तक में सभी आलेख अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, किंतु अध्यात्म पर लिखे गए आलेख सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। लेखक की मौलिक दृष्टि है और वे गीता के माध्यम से धार्मिक सद्भाव का संदेश देते हैं। लेखक का चिंतन-स्तर बहुत ऊँचा है। वे युवाओं से आध्यात्म आधारित उत्तम शिक्षा अर्जित करने तथा निज-कल्याण समेत विश्व-कल्याण के लिए प्रस्तुत होने की अपेक्षा रखते हैं।

पुस्तक के लेखक डा एस एन पी सिन्हा ने कहा कि, लोकार्पित पुस्तक, अलग-अलग समय में, अलग-अलग विषयों पर लिखे गए आलेखों का संकलन है। अपने स्वाध्याय और चितन से, लोक-समस्याओं के निदान के संदर्भ में हमने जो विचार रखे, उसका संकलन पुस्तक के संपादक ने किया है। हमें अपनी संकीर्ण भावना को उच्च आध्यात्मिक भावना में बदलना चाहिए, इस पुस्तक का आशय यही है।सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डा शंकर प्रसाद, डा भावना शेखर, डा कुमार इंद्रदेव, प्रो इंद्र कांत झा, कुमार अनुपम, डा अर्चना त्रिपाठी, राज कुमार प्रेमी, आचार्य आनंद किशोर शास्त्री, डा विनय कुमार विष्णुपुरी,आराधना प्रसाद, डा बी एन विश्वकर्मा, जय प्रकाश पुजारी, शुभचंद्र सिन्हा, पं गणेश झा, डा अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, बच्चा ठाकुर, राज कुमार प्रेमी, प्रभात धवन, डा मीना कुमारी, लता प्रासर, डा नागेश्वर प्रसाद यादव,प्रभात वर्मा,सिद्धेश्वर, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, रवींद्र सिंह, राम किशोर सिंह ‘विरागी’ तथा नरेंद्र देव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया। 

Previous Article

A newly found fragment of an Inscription

Next Article

Dr. S.N.P. Sinha

0
Shares
  • 0
  • +
  • 0
  • 0
  • 0
  • 0

Bhavanath Jha

मिथिला आ मैथिलीक लेल सतत प्रयासरत

Related articles More from author

  • डाकवचन-संहिता
    ई-प्रकाशनधरोहरमैथिली साहित्यलोक-वेद

    डाकवचन संहिता (टिप्पणी-व्याख्या सहित विशुद्ध पाठ, सम्पूर्ण)- डॉ. शशिनाथ झा

    April 30, 2021
    By Bhavanath Jha
  • Yamaraja
    लोक-वेद

    मिथिलाक परम्परामे दाह-संस्कार विधि, मृत्युक बादक विधि-विधान

    September 10, 2019
    By Bhavanath Jha
  • Kadamon ke Nishan
    पुस्तक-प्रकाशन

    मानवीय संवेदनाओं को समेटती डा. धीरेन्द्र सिंह की मैथिली कविताएँ- “कदमों के निशान” का हुआ लोकार्पण

    September 6, 2021
    By Bhavanath Jha
  • the festival of colors
    पाबनि-तिहारलोक-वेद

    प्राचीन भारत में होली पर्व का स्वरूप, कैसे प्राकृतिक रंगों से खेली जाती थी होली

    March 22, 2020
    By Bhavanath Jha
  • हरिताली, तीज, मैथिली कथा
    पाबनि-तिहारपूजा-पाठलोक-वेद

    मिथिलामे हरितालिका व्रतक विधान

    October 4, 2019
    By Bhavanath Jha
  • कंटक-शोधनज्योतिष-विचारलोक-वेद

    वाल्मीकि-रामायणमे गणित आ फलित ज्योतिषक विचार

    September 9, 2019
    By Bhavanath Jha

Leave a reply Cancel reply

अहाँकें इहो नीक लागत

  • इतिहास

    शिक्षाक क्षेत्रमे दरभंगा महाराज रुद्रसिंहक द्वारा कएल गेल काज

  • manuscript from Mithila
    इतिहासधरोहर

    गोनू झा व्यक्तित्व आ इतिहासक स्रोतक रूपमे पंजी-विमर्श

  • Arya Samaj
    इतिहास

    जॉन मुइर की ‘मतपरीक्षा’ तथा दयानन्द के ‘सत्यार्थप्रकाश’ का ‘साइड इफैक्ट’

  • इतिहासपर्यटन

    झंझारपुर प्रखण्ड में स्थित लोहना गाँव की प्राचीन सभ्यता के अवशेष

  • इतिहासधरोहर

    हिन्दुत्व का विशाल वृक्ष और काटनेवाले कुल्हाड़े

कॉपीराइट की स्थिति

इस साइट का सर्वाधिकार पं. भवनाथ झा के पास सुरक्षित है। नियम एवं शर्तें लागू

सम्पर्क-

भवनाथ झा, Email: bhavanathjha@gmail.com whatsApp: 9430676240

शैक्षणिक उद्देश्य से कापीराइट की स्थिति

एहि वेबसाइटक सामग्रीक सर्वाधिकार पं. भवनाथ झा लग सुरक्षित अछि। शैक्षिक उद्देश्य सँ सन्दर्भ सहित उद्धरणक अतिरिक्त एकर कोनो सामग्रीक पुनरुत्पादन नहिं करी। जँ कतहु शैक्षिक उद्देश्यसँ सामग्री लेल जाइत अछि तँ ओहि वेबपृष्ठक URL सहित देल जा सकैत अछि।

  • उद्देश्य
  • ई-प्रकाशन
  • लोक-वेद
  • इतिहास
  • मिथिलाक्षर
  • संस्कृत भाषा-शिक्षा
  • वैधानिक
  • पं. भवनाथ झा का परिचय
  • Contact
  • भुगतान एवं पुस्तक प्राप्ति
Copyright: Bhavanath Jha- All rights Reserved, 2021