भारतक इतिहासमे ई परम सत्य अछि जे यूरोपियन इतिहासकार लोकनि भारतक प्राचीन साहित्यक इतिहास के निर्णय करबामे न्याय नै कएने छथि। भारतमे मोहन जोदडोक खुदाइ भेलाक बाद ओकर जे कार्बन डेटिंग 1400 ई.पूर्व भेल ओकरा आधार पर वैदिक आ पौराणिक साहित्यक इतिहास लिखल गेल। जें कि सिन्धु घाटी सभ्यताक बादे वेदक रचना मानल जाए लागल आ आर्य कें सिन्धु घाटीक सभ्यताक विध्वंसक आ बाहरसँ एनिहार आक्रान्ता मानबाक खिस्सा गढल गेल तें समस्त भारतीय साहित्यक पूर्वसीमा 1400 ईसापूर्व मानि लेल गेल।
भारतोक किछु इतिहासकार आँखि मूनि एही सिद्धान्तक अनुसरण करैत रहलाह आ ओहो लोकनि भारतीय साहित्यक इतिहासक संग अन्याय करैत रहलाह। डा. भगवद्दत्त, लोकमान्य तिलक आदि एहि सिद्धान्तक विपरीत विशुद्ध भारतीय पद्धतिसँ वैदिक आ पौराणिक साहित्यक काल-निर्धारण कएलनि। मुदा आइयो विदेशी इतिहासकारक घटाटोपमे हिनकालोकनिक मत कें उचित प्रतिष्ठा नै भेटि रहल अछि।
ज्योतिष शास्त्रक इतिहास सेहो नीक जकाँ नै लिखल गेल। विशेष रूपसँ फलित ज्योतिषकें तँ पर्याप्त अर्वाचीन मानि ओकरा पर यवन-ज्योतिषक प्रभावक बहुत चर्चा भेल। भारतीय ज्योतिषक परम्परा पर शक ज्योतिषक पर्भाव अछि मुदा ईहो स्पष्ट अछि जे भारतमे फलित ज्योतिषक सुदृढ परम्परा ईसापूर्व 5म शतीसँ पूर्वहि विकसित भए चुकल छल। एतए एही विषय कें प्रमाणक संग देखाओल जा रहल अछि।
वाल्मीकि रामायण आदिकाव्य थीक। एहिमे गणित आ फलित ज्यौतिष शास्त्रक सिद्धान्त पूर्ण विकसित रूपमे आएल अछि। ग्रह-विचार, ग्रहक शत्रु-मैत्री विचार, नक्षत्रक देवताक विचार, शकुन-विचार, मारकेशक विचार, शकुन-विचार, लक्षण-विचार, वर्षा आ अकालक भविष्यवाणी आदि ज्योतिषक विविध विषय नीक जकाँ वाल्मीकि-रामायणमे आएल अछि।
जँ बालकाण्ड आ उत्तरकाण्डकें अर्वाचीन मानियो ली तँ अयोध्याकाण्डमे सेहो ज्यौतिष विचार कम नै अछि। एकरा पर विस्तृत शोधक अपैक्षा छैक।
एहि विषय पर एहि पंक्तिक लेखकक एकटा आलेख डा. उमारमण झाक अभिनन्दन-ग्रन्थ सारस्वत-निबन्धावलीमे प्रकाशित अछि। संस्कृत भाषाक ई आलेख एतए पढल जा सकैत अछि।