बहुत वर्षों से यह आम धारणा बन गयी है कि छठ-पूजा के लिए कोई लिखित पद्धति नहीं है, तथा इसे कराने के लिए किसी पण्डित/पुरोहित की आवश्यकता नहीं है। लोग इसे लोकपर्व कहने लगे हैं।

सच्चाई यह है कि छठपर्व की भी पूरे विधान के साथ पुरानी पद्धति है, पूजा के मन्त्र हैं, पूजा के समय पढ़ी जानेवाली कथा है। संस्कृत में वेद तथा पुराण से संकलित मन्त्र हैं। मगध में भी ऐसी पद्धति है, मिथिला में तो बहुत पुराना विधान है। म.म. रुद्रधर ने “प्रतीहारषष्ठीपूजाविधिः” के नाम इसकी पुरानी विधि दी है। वर्षकृत्य में यह विधि उपलब्ध है।

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सच्चाई यह है कि छठ-पर्व में पण्डित/पुरोहित पर्याप्त संख्या में मिलते नहीं हैं। जो हैं वे बड़े-बड़े लोगों के द्वारा अपने घाट पर बुला लिये जाते हैं। ये बड़े-बड़े लोग पर्याप्त दक्षिणा देकर विधानपूर्वक पूजा कराते हैं, प्रातःकाल कथा सुनते हैं। पण्डित/पुरोहित को आकृष्ट करने के लिए साम-दाम-दण्ड-भेद सबका प्रयोग तक कर बैठते हैं।

सच्चाई यह है कि आज भी एक गाँव अथवा मुहल्ला में व्रत करनेवाले हजार हैं तो पण्डित/पुरोहितों की संख्या 5-6 हैं। वे एक साथ हर जगह तो जा नहीं सकते हैं। एक ही समय में सब जगह पर पूजा होती है। तब जो व्रती वंचित रह गये वे पारम्परिक विधि से अपनी विधि से पूजा कर संतुष्ट हो जाते हैं। हर साल करते रहे हैं तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती है।

पद्धति नहीं होने की बात से परम्परा नष्ट होती है।

आज आवश्यकता है कि हम स्वयं उन पद्धतियों को देखें, पढें तथा समय पर उपयोग करें। आज शिक्षा का स्तर बढ़ा है। लगभग सभी परिवार में पढ़े-लिखे लोग हैं। लिखी हुई पद्धति प्रकाशित है, तो हमें स्वयं उन मन्त्रों का उपयोग करना चाहिए। पूजा-पाठ में कोई अनिवार्यता नहीं है कि पण्डितजी ही करायें। आप स्वयं भी कर सकते हैं। पूजा के अंत में आप दक्षिणा के लिए कुछ रुपये उत्सर्ग कर रख दें, जो बाद में किसी ब्राह्मण को दिये जा सकते हैं या मन्दिर में दे सकते हैं। क्योंकि जबतक आप पूजा की दक्षिणा नहीं देते वह कार्य सम्पन्न नहीं माना जायेगा। कोई अनुष्ठान, जिसमें दक्षिणा न दी जाये, वह फलदायी नहीं होता है।

न केवल छठपूजा में, सभी पूजाओं में पद्धति से पूजा कराने की विधि सबको सीख लेने में कोई दिक्कत नहीं है। इससे अपनी परम्परा भी बनी रहेगी, एकरूपता रहेगी जो संस्कृति का संवाहक होगी।

गाड़ी चलाने के लिए ड्राइवर की आवश्यकता उसी समय खत्म हो जाती है, जिस समय आप गाड़ी चलाना सीखकर स्वयं ड्राइविंग लाइसेंस ले लेते हैं।

इसलिए हमने यहाँ छठ-पर्व की पूरी पद्धति उपलब्ध करायी है, उसकी कथा का उच्चारण भी दिया है। इसका उपयोग करें।

जय सूर्यदेव।। सनातन धर्म की जय  

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