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Home›धरोहर›राज दरभंगा के अधीन 1815ई. में होती थी काॅफी की खेती

राज दरभंगा के अधीन 1815ई. में होती थी काॅफी की खेती

By Bhavanath Jha
September 29, 2021
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राज दरभंगा का अधिकार क्षेत्र और कॉफी (कहबा) का उत्पादन।

लैफ्टिनेंट कोलोनल डब्ल्यू.एच. स्लीमैन बंगाल आर्मी का एक अधिकारी था। वह एक बार दरभंगा आया। उस समय दरभंगा के महाराजा छत्रसिंह थे। उन्हीं के काल की यह हास्यास्पद घटना है। स्लीमेन ने अपनी पुस्तक Rambles and Recollections Or An Indian Official By Lieutenant Colonel W. H. Sleeman Of The Bengal Army Vol. 2, Pp.60-63 पर इस घटना की जानकारी दी है।

स्लीमैन एक घुमक्कड़ अधिकारी है। उसने अयोध्या पर भी अपना यात्रा-वृत्तान्त लिखा है। दो भागों मे प्रकाशित अपनी पुस्तक में उन्होंने इस बातच का प्रमुखता से उल्लेख किया है कि भारत में उच्चारण करने की समस्या के कारण वह कई जगहों पर हँसी का पात्र बन चुका है।

1815ई. में वह अंगरेज दरभंगा पहुँचा। उसने राजा महाराजा छत्रसिंह के साथ बातचीत में कहा कि आपके राज्य में खूब “कोंआ” है, मुझे चाहिए।

महाराजा छत्रसिंह और उनके दरबारियों ने समझा कि यह अंगरेज कौआ क्या करेगा? इसका मतलब है कि यह हमारी निन्दा कर रहा है कि हमारे राज्य में कौआ की तरह काँव-काँव करने वाले कुच्चर लोग बहुत हैं।

इसका उत्तर देते हुए महाराजा छत्रसिंह ने कहा कि कौआ तो हर जगह आपके राज में भी होते ही हैं!
इसपर उस अंगरेज ने कहा कि- “नहीं, नहीं। मेरा मतलब है कि आपके राज्य में अच्छा होता है।”

महाराजा छत्रसिंह और उनके दरबारियों ने मिलकर अंगरेज को मजा चखाने की योजना बनायी। उसी शाम को वे अंगरेज के आवास पर गये और साथ में एक झोला में कुछ कौआ रखकर लेते गये।
वह अंगरेज खुश हुआ और अपने रसोइया को बुलाकर उसे झोला थमा दिया।
जब झोला खोला गया तो उसे अपनी बात याद आयी। उसे अपने उच्चारण की गलती का अनुभव हुआ।
वह “कोआ” यानी “कहबा” यानी “काॅफी” कहना चाह रहा था लेकिन “कौआ” बोल गया था!

उस अंगरेज ने अपने यात्रा-वृत्तान्त में इस बात का उल्लेख किया है कि भारत में उच्चारण के कारण कैसे वह हँसी का पात्र बना।

यहाँ एक मूल तथ्य है कि दरभंगा के शासनाधिकार में कहबा की खेती कहाँ होती थी? उस अधिकारी ने तो खुद ही जबाब दे दिया है कि नेपाल के सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी उपज होती थी।

इसीने आगे लिखा है कि जब वह दरभंगा से विदा होने लगा तो उसने अपने आवास और भोजन की व्यवस्था के विरुद्ध भुगतान करना चाहा। उसने कहा  कि हम मुफ्त में कहीं नहीं रहते।
दरभंगा राज के प्रबन्धक ने ही सीधे कह दिया कि हम अतिथियों से कुछ लेते नहीं बल्कि उन्हें देते हैं।

इस घटना का मूल अंगरेजी इस प्रकार है-

During the first campaign against Nepaul in 1815 Colonel now Major General 0 H who commanded the – regiment N.I. had to march with his regiment through the town of Durbunga the capital of the Rajah who came to pay his respects to him.

He brought a number of presents but the colonel a high minded amiable man never took anything himself nor suffered any person in his camp to do so in the districts they passed through without paying for it.

He politely declined to take anything of the presents but said “that he had heard that Durbunga produced crows, (Konwas) and should be glad to get some of them if the Rajah could spare them”– meaning coffee or Quhooa.

The Rajah stared and said “that certainly they had abundance of crows in Durbunga; but he thought they were equally abundant in all parts of India.”

“Quite the contrary, Rajah Sahib, I assure you” said the colonel “there is not such a thing as a crow to be found in any part of the Company’s dominions that I have seen and I have been all over them.”

“Very strange”, said the Rajah turning round to his followers.

“Yes” replied they. “it is very strange. Rajah Sahib but such is your Ikbal good fortune and the blessings of your rule that everything thrives under it and if the colonel should wish to have a few crows we could easily collect them for him.”

“If”, said the colonel greatly delighted, “you could provide us with a few of these crows we should really feel very much obliged to you for we have a long and cold campaign before us among the bleak hills of Nepaul and we are all fond of crows.”

“Indeed”, returned the Rajah; “I shall be happy to send you as many as you wish” (Much and many is expressed by the same term)

“Then we should be glad to have two or three bags full if it would not be robbing you.”

“Not in the least,” said the Rajah; “I will go home and order them to be collected immediately.”

In the evening as the officers with the colonel at their head were sitting down to dinner a man came up to announce the arrival of the Rajah’s present. Three fine large bags were bought in and the colonel requested that one might be opened immediately. It was opened accordingly and the mess butler (Khansama) drew out by the legs a fine old crow. The colonel immediately saw the mistake and laughed as heartily as the rest at the result. A polite message was sent to the Rajah requesting that he would excuse his having made it for he had had a dozen men out shooting crows all day with their matchlocks Few Europeans spoke the language better than General–––, and I do not believe that one European in a thousand at this moment makes any difference or knows any difference in the sound of the two terms.

TagsMithilaअंगरेजी शासनकुच्चरछत्रसिंहराज दरभंगास्लीमैन
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2 comments

  1. Suyash 29 September, 2021 at 22:59 Reply

    Sir , kindly write around the factories which used to operate for indigo and Opium done under darbhanga raj .if possible then deduce the income also from the same

    G F Grand was collector of tirhut and brining his experiment also would be very helpful

    • Bhavanath Jha 30 September, 2021 at 10:05 Reply

      Thanks.

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