दिक्शूल आ दिग्बल
[एहिसभ विषयकें आधुनिक लोक दकियानूसी बुझैत छथि। मुदा हमरालोकनिकें बुझबाक चाही जे हमर पूर्वज एकर निर्वाह कए गेल छथि। ई हमरासभक परम्परा थीक। परम्परा ध्वस्त होएत तँ अपन अस्तित्व समाप्त होएत, इतिहास समाप्त होएत। भारतीय आ मैथिल होएबाक जे गौरव अछि ओ समाप्त होएत। हमरालोकनिक कर्तव्य थीक जे अपन भारतीयताकें जोगा कए राखी। तें एहि सभ विषय पर क्रमशः प्रकाश देल जा रहल अछि।]
एकर विचार यात्रामे होइत अछि। दिक्शूलमे यात्राक निषेध अछि आ दिग्बल मे यात्रा नीक मानल जाइत अछि। कोन दिशामे कोन दिन गेलासँ दिक्शूल होएत आ कोन दिन दिग्बल होएत एकर विचार कएल गेल अछि।
ध्यान राखी जे प्रत्येक दिशाक अपन ग्रह होइत छथि। अमरकोषमे सेहो एकर उल्लेख भेल अछि-
रविः शुक्रो महीसूनुः स्वर्भानुर्भानुजो विधुः
बुधो बृहस्पतिश्चेति दिशां चैव तथा ग्रहाः।
आठो दिशा आ आठो ग्रहक नाम एहि प्रकारें अछि-
दिशा | पूर्व | अग्रिकोण | दक्षिण | नैर्ऋत्य | पश्चिम | वायव्य | उत्तर | ईशान |
ग्रह | रवि | शुक्र | मंगल | राहु | शनि | चन्द्रमा | बुध | बृहस्पति |
सामान्य परिभाषा अछि जे जाहि ग्रहक जे दिन थीक ओहि दिन ओहि ग्रहक दिशामे यात्रा केलासँ दिग्बल होइत अछि आ एकर विपरीत दिशामे यात्रा कें दिक्शूल कहल गेल अछि।
एहि प्रकारें रवि दिन पूर्व दिशामे दिग्बल होएत तँ पश्चिम दिशामे दिक्शूल होएत।
मंगल दिन दक्षिण दिशामे दिग्बल आ उत्तर दिशामे दिक्शूल।
शनि दिन पश्चिम दिग्बल आ पूर्वमे दिक्शूल।
बुधकें उत्तर दिशामे दिग्बल आ दक्षिण दिशामे दिक्शूल
मिथिलाक परम्पराकें सुरक्षित रखबाक लेल एतेक सामान्य ज्ञान रहबाक चाही।