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मिथिलामे हरितालिका व्रतक विधान

By Bhavanath Jha
October 4, 2019
585
1
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हरिताली, तीज, मैथिली कथा

(मूल आधार- रुद्रधर कृत वर्षकृत्य, सम्पादक पं. शशिनाथ झा, उर्वशी प्रकाशन, पटना)

आब टी.वी. आ आन संचार माध्यमक कारणें मिथिलाक अपन संस्कृति दूरि भए रहल अछि। सभ “हरिताली” बिसरि “तीज” कहैत छथि।

मुदा मिथिलामे एहि व्रतक नाम शुद्ध नाम हरिताली थीक।

भाद्र शुक्ल तृतीयाकें प्रदोष कालमे सदा सुहागिन रहबाक कामना सँ नारी हरिताली व्रत करथि। भिनसरमे थोडबो काल जँ तृतीया अछि आ तकर बाद चतुर्थी भए जाइत छैक तैयो ओही दिन व्रत होएत। साँझमे जँ चौठ पडि जाइत छैक तँ कोनो हर्ज नै।

प्राचीनकालमे भाद्र शुक्ल चतुर्थीकें “हर्याली” नामक व्रतक विधान चण्डेश्वर अपन कृत्यरत्नाकरमे कएने छथि। असंभव नै जे ओएह “हर्याली” व्रत आइ उदयगामिनी तृतीयाके हरितालिका नामक व्रतक रूपमे प्रचलनमे आबि गेल अछि। तें चतुर्थी तिथिक योगसँ कोनो क्षति नै। मुदा प्रातःकालमे जँ द्वितीया रहए आ भरि दिन-राति तृतीया रहए तँ ओहि दिन व्रत नै होएत।

हरितालीव्रतक पूजापद्धति जे वर्षकृत्यमे देल गेल अछि। ताहिमे चौदह वर्षक लेल संकल्प करबाक विधान सेहो कएल गेल अछि। ई संकल्प आब प्रचलनसँ ऊठि गेल अछि। यद्यपि एतए ओहि संकल्पक सेहो विधान लिखल अछि, मुदा ओ प्रत्येक वर्ष करबाक प्रयोजन नै। तें संकल्पमे कोष्ठमे लिखल वाक्य नै पढी।

कथामे केराक थम्हसँ मण्डप बनएबाक विधान कएल गेल अछि। एहि स्थान पर मण्डपक अरिपन दए ओकर भीतर महादेव आ गौरीक आकृतिक अरिपन दए पूजा करबाक सेहो प्रचलन अछि।

एहिना कुश लए विधिपूर्वक प्राणप्रतिष्ठाक विधि सेहो आब प्रचलनमे नै अछि। मुदा जँ माँटिक मूर्ति बनाए कतहु सामूहिक रूपसँ पूजा कएल जाइत अछि तँ प्राण-प्रतिष्ठाक विधान होएत।

प्रातःकालमे स्नान कए ताम्बाक अरघीमे तिल, कुश आ जल लए संकल्प करी।

नमो भगवन् सूर्य्य भगवत्यो देवता (अद्यादि चतुर्दशवर्षाणि यावत् प्रति) भाद्रशुक्लतृतीयायां हरितालीव्रतम् अहम् आचरिष्यामि

ई संकल्प करी।

एकर बाद भरि दिन व्रत करथि।

आँगनमे मण्डप सजा कए ओहिमे मेहराब, पताका आदि लगाबी। चन्दन आदि सुगन्धित वस्तुसँ माँटि पर नीपि ली। ओतए चारि भुजावाली गौरीक माँटिक प्रतिमा आ बसहा वरद पर चढ़ल महादेवक प्रतिमा बनाए स्थापित करी। (जँ माँटिक प्रतिमा सम्भव नहिं हो तँ एही रूपमे फोटो राखि सकैत छी।

सभदिन जेना गौरीक पूजा करैत छी से करी।

तकर बाद कुश, तिल आ जल लए संकल्प करी।

नमः अस्यां रात्रौ भाद्रमासीय-शुक्लपक्षीय—तृतीयायां तिथौ —-गोत्रायाः ——देव्याः मम दीर्घायुष्ट्व-पुत्रपौत्रादिचिरजीवित्व-जन्मजन्मार्जित-सकल-पापक्षयपूर्वकश्रीगौरीप्रीतिकामे (अद्यादि चतुर्दशवर्षाणि यावत् ) सकलभाद्रशुक्लतृतीयायां हरितालीव्रतमहं करिष्ये।

कुश सहित हाथ सँ शिवक प्रतिमा स्पर्श कए- नमो शिवोऽसि।

गौरीक प्रतिमा स्पर्श कए- नमो गौरि असि।

तकर बाद कुश हाथें दूनू मूर्तिक सभ अंगक स्पर्श करी-

आँ ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वंशं षं सं हं सः अनयोः सर्वेन्द्रियाणि। आँ ह्रीँ क्रौँ यं रं लं वंशं षं सं हं सः अनयोः वाङ्मनश्चक्षुःश्रोत्रघ्राणा इहागत्य सुखं चिरं तिष्ठतु स्वाहा।

एहि प्रकारें प्राण-प्रतिष्ठा कए दूनूक षोडश उपचारसँ पूजा करी।

पहिने महादेवक पूजा करी

एकटा फूल लए महादेवक ध्यान करी।

ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं 
रत्नाकल्पोज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्।
  1. आसन- हाथमे फूल लए अर्पित करी।
  2. स्वागत- हाथ जोड़ि प्रणाम करी।
  3. पाद्य- जल लए अर्पित करी।
  4. अर्घ्य- अरघीमे दही, दूबि, कुशक अगिला भाग, फूल, अक्षत, कुंकुम (रोली), सरिसो, जल आ सुपारी लए अरघा सँ चढाबी।
  5. आचमनीय- अरघीसँ जल दी।
  6. मधुपर्क- कांसाक बाटीमे दही, घी, मधु, जल आ चीनी मिलाए अर्पित करी।
  7. आचमन- अरघीसँ जल दी।
  8. स्रान- स्नानक लेल जल दी।
  9. वस्त्र- विभवानुसार धोती, चादर आदि चढाबी।
  10. आभूषण-
  11. गन्ध- उजरा आ ललका चानन चढाबी।
  12. पुष्प- फूल चढाबी।  
  13. धूप-
  14. दीप- जल लए दीप उत्सर्ग करी।
  15. नैवेद्य- नैवेद्य मे फूल आ पान राखि जल लए उत्सर्ग करी।
  16. वन्दनाः हाथ जोडि प्रार्थना करी।

तकर बाद फेर फूल लए गौरीक ध्यान करी-

भास्वज्जपाप्रसूनाभां शश्वत् सुस्थिरयौवनाम्।
शंखचक्रगदापद्मवनमालाविभूषिताम्।
सिंहोपरि समासीनां भास्करारुणमंशुकम्।
दधानां पुरतः संस्थैर्देवदैत्यादिसंस्तुताम्।।

अरघीमे जल लए-

नमः शिवायै शिवरूपायै मङ्गलायै महेश्वरि।
शिवे सर्वार्थदे देवि शिवरूपे नमोस्तु ते।।

एतानि पाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि नमो गौर्य्यै नमः।

फूल लए-

नमः शिवरूपे नमस्तुभ्यं शिवायै सततं नमः।
नमस्ते शिवरूपिण्यै जगद्धात्र्यै  नमो नमः।। एतानि पुष्पाणि नमो गौर्य्यै नमः।

दूबि लए- एतानि दूर्वादलानि नमो गौर्य्यै नमः।

बेलपात- एतानि बिल्वपत्राणि नमो गौर्य्यै नमः।

लाल रंगक साडी- इदं सान्तरालरक्तवस्त्रम् नमो गौर्य्यै नमः।

सिन्दूर- इदं सिन्दूरम् नमो गौर्य्यै नमः।

चूडी, गहना आदि- इदम् अलङ्करणम् नमो गौर्य्यै नमः।

अरघामे दल लए धूप, दीप, पान-सुपारी आ विभिन्न प्रकारक नैवेद्यक उत्सर्ग करी-

एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूलनानाविधनैवेद्यानि नमो गौर्य्यै नमः।

आचमन- इदमाचमनीयम् नमो गौर्य्यै नमः।

आँजुरमे फूल लए- एष पुष्पाञ्जलिः नमो गौर्य्यै नमः।

एकर बाद प्रार्थना करी-

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
संसारवृत्तिविच्छेदे स्राहि मां सिंहवाहिनि।।
मया ध्यानेन कामेन पूजितासि महेश्वरि।
राज्यं मे देहि सौभाग्यं प्रसन्ना भव पार्व्वति।।

एकर बाद ध्यान लगाए कथा सुनी अथवा स्वयं पढी।

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