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      May 2, 2021
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      May 2, 2021
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      विद्यापति कृत कीर्तिगाथा एवं कीर्तिपताका, डा. शशिनाथ झा द्वारा सम्पादित

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Home›पाबनि-तिहार›Hindu Festivals and Rituals, January, 2020 A.D.

Hindu Festivals and Rituals, January, 2020 A.D.

By Bhavanath Jha
March 22, 2020
278
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एहि सूर्य सहस्रांशो

गणेशावतार- 13 जनवरी, सोमवार

            माघ कृष्ण चतुर्थी को भगवान् गणेश का अवतार-दिवस माना जाता है। इस दिन गणेश की पूजा करनी चाहिए तथा रातभर व्रत करते हुए जागरण करने का विधान किया गया है। प्रातःकाल में पारणा कर लड्डू बाँटने का विधान है। इससे गणेशजी प्रसन्न होते हैं तथा वर्ष भर फल देते हैं।

मकर संक्रान्ति, 15 जनवरी, बुधवार

वर्ष भर में 12 राशियों की संक्रान्तियाँ होतीं हैं। इनमें मकर संक्रान्ति से छह महीने तक सूर्य उत्तरायण रहते हैं तथा कर्क राशि की संक्रान्ति से दक्षिणायन सूर्य आरम्भ होते हैं। उत्तरायण सूर्य में यज्ञ, देवप्रतिष्ठा आदि के लिए शुभ मुहूर्त होते हैं। ऐसी मान्यता है कि जबतक सूर्य उत्तरायण रहते हैं तब तक छह महीनों के लिए देवताओं का दिन रहता है तथा दक्षिणायन सूर्य के महीनों में देवताओं की रात रहती है। अतः मकर संक्रान्ति का यह दिन देवताओं के लिए प्रातःकाल माना जाता है। इसे तिल-संक्रान्ति भी कहते हैं। जिन भर में जो धार्मिक महत्तव प्रातःकाल का होता है, वैसा ही महत्त्व मकर संक्रान्ति का भी वर्ष भर में होते है। इस दिन से शुद्ध समय का आरम्भ होता है। इस वर्ष 2.48 बजे संक्रमण हो रहा है और 7.52 प्रातः से 2.16 दिन तक पुण्यकाल है। अतः इसी दिन को पुण्याह माना गया है। इस दिन से माघस्नान का आरम्भ होता है। प्रयाग में माघ मास का कल्पवास इसी दिन आरम्भ होता है। इस दिन स्नान करने का मन्त्र इस प्रकार है-

मकरस्थे रवै माघे गोविन्दाच्युत माधव।
प्रातःस्नानेन मे देव यथोक्तफलदो भव।।
दुःखदारिद्र्यनाशाय श्रीविष्णोस्तोषणाय च।
प्रातःस्नानं करोम्यद्य माघे पापविनाशनम्।।

            इस दिन प्रातःकाल स्नान कर तिल, दही, चूड़ा, गुड़ आदि स्वयं भी भोजन करना चाहिए तथा दूसरों को भी कराना चाहिए। इस दिन दान का विशेष महत्त्व है। बिहार में विशेषतः मिथिला क्षेत्र में भुने हुए चूड़ा, फरही या लाई और तिल को गुड़ की चाशनी में डालकर बड़े-बड़े गोले बनाकर खाये जाते हैं। चूडा से बने गोले को चुड़लाई अथवा चिल्लौड़ कहा जाता है। फरही से जो बनता है उसे लाई कहा जाता है। तिल से तिलबा बनता है। गया क्षेत्र में भुने हुए तिल को चीनी अथवा गुड़ की चाशनी में डालकर उसे कूटकर तिलकुट बनता है। बिहार का तिलकुट प्रसिद्ध है।

सांस्कृतिक महत्त्व- इस अवसर पर गर्म कपड़े उपहार के रूप में साल भर के भीतर विवाहिता पुत्री की ससुराल भेजे जाते हैं। इसके साथ चूड़ा, दही आदि भी उपहार भेजे जाते हैं।

नरक-निवारण चतुर्दशी, 23 जनवरी

मान्यता है कि इसी दिन भगवान् शिव की उत्पत्ति शिवलिंग के रूप में हुई थी। महाशिवरात्रि के समान ही यह चतुर्दशी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। कथा है कि एकबार ब्रह्मा तथा विष्णु ने उत्तर दिशा में एक प्रकाशमान स्तम्भ के समान आकृति देखी। दोनों उत्सुकतावश वहाँ गये ओर उस प्रकाशमान को स्तम्भ को साक्षात् शिव का स्वरूप पाकर उनकी स्तुति करने लगे। इसी प्रकाशमान स्तम्भ के रूप में भगवान् शिव की पूजा धरती पर फैली। यह चतुर्दशी मिथिलामे अधिक प्रचलित है। लोग दिन भर व्रत करते हैं तथा संध्या के समय किसी शिवमन्दिर में जाकर अथवा अपने घर पर पार्थिव शिवलिंग की पूजा करते हैं। इस पूजा में नैवेद्य के रूप में बेर एवं मीठाकंद (केसौर) का महत्त्व है। यह नक्तव्रत के रूप में प्रसिद्ध है, अतः सन्ध्या के समय प्रदोष-पूजन कर रात्रि में चावल, दाल आदि भोजन करते हैं। शैव संन्यासी रात्रिभर व्रत कर प्रातःकाल पारणा करते हैं। गृहस्थों के लिए नक्तव्रत का विशेष महत्त्व है।

इसी दिन यमतर्पण का भी विधान किया गया है। इस दिन अरुणोदयवेला में जब आसमान में तारा दिखाई पड़ रहे हों, स्नान कर करना चाहिए तथा यम के नाम से जल का अर्घ्य देना चाहिए। इससे यम का भय नहीं रह जाता है तथा सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है।

मौनी अमावस्या, 24 जनवरी

माघ की अमावस्या मौनी कहलाती है। इस दिन प्रातःकाल स्नान कर मौनव्रत रखने का विधान किया गया है। यह मौनव्रत अगले दिन सूर्योदय पर्यन्त चलता रहेगा।

माघी नवरात्र आरम्भ, 25 जनवरी

माघ शुक्ल प्रतिपदा से कलियुग का आरम्भ माना जाता है। इस वर्ष कलियुग का 5021वाँ वर्ष आरम्भ हो रहा है।

वर्ष भर में दुर्गा की पूजा के लिए आश्विन, चैत्र, आषाढ एवं माघ मास के शुक्लपक्षों में चार नवरात्र होते हैं। माघ का यह नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाता है। इसी दिन कलश की स्थापना होती है तथा नौ दिनों की पूजा होती है। इस नवरात्र में अष्टमी और नवमी का व्रत क्रमशः दिनांक 2 एवं 3 फरवरी को होगा। अष्टमी की निशापूजा 1 फरवरी की रात में होगी। विजयादशमी दिनांक 4 फरवरी को मनायी जायेगी।

बिहार के कैमूर जिले में स्थित मुण्डेश्वरी भवानी मन्दिर में यही नवरात्र मनाया जाता है। वहाँ विशेष मेला का आयोजन होता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। अनेक स्रद्धालु साधना के रूप में अपने अपने घरों में भी विधानपूर्वक इस नवरात्र को मनाते हैं। इसकी सारी विधि आश्विन नवरात्र के समान होती है।

गणतन्त्र दिवस, 26 जनवरी

भारतीय गणतन्त्र का यह 71वाँ समारोह होगा। इसी दिन 1950 ई.में पहला गणतन्त्र दिवस मनाया गया था। इस बार ब्राजील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में ब्राजील में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान भारत के प्रधानमन्त्री के द्वारा आमन्त्रित किये गये हैं जिसे उन्होने स्वीकार कर लिया है। प्रोटोकोल के अनुसार गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि का पद भारत का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है।

सरस्वतीपूजा, 30 जनवरी, गुरुवार

माघ शुक्ल पंचमी को विद्या की देवी सरस्वती की पूजा होती है। इस दिन से वसंत का रम्भ माना जाता है अतः इसे वसंत-पंचमी कहते हैं तथा लक्ष्मी एवं सरस्वती की की पूजा के कारण श्रीपंचमी भी कहा जाता है। इस दिन किसान खेत जोतने के दिन का आरम्भ मानते हैं अतः हल की पूजा कर इसे खड़ा करते हैं। इसलिए यह हल-पंचमी के नाम से भी विख्यात है। आज से लगभग 50 वर्ष पहले तक यह विधान काफी प्रचलित था किन्तु अब हल-बैल का प्रयोग कम होने के कारण प्रचलन कम गया है। वर्तमान में इस दिन सरस्वती की पूजा धूमधाम से मनायी जाती है। लोग सार्वजनिक रूप से तथा अपने घरों में भी माता सरस्वती की मूर्ति की स्थापना कर विधानपूर्वक विस्तार से पूजा करते हैं। इसकी विस्तृत तथा प्रामाणिक पूजा-विधि उपलब्ध है। इस वर्ष दिन में 10.41 तक पंचमी है तिथि है। गुरुवार होने के कारण प्रातःकालमे अर्द्धप्रहरा या राहुकाल एवं शनिकाल नहीं है, अतः जहाँतक सम्भव हो, प्रातःकाल में पूजा करें।

Sarasvati Puja in Mithila
मिथिला की परम्परा से सरस्वतीपूजा विधि

अनेक इतिहासकारों ने लिखा है कि वैदिक साहित्य में सरस्वती का उल्लेख केवल नदी के रूप में है, ज्ञान की देवी के रूप में नहीं। लेकिन वास्तविकता है कि सरस्वती वाणी की देवी के रूप में वैदिक साहित्य में भी वर्णित हैं और वहाँ उनकी उपासना करने का विधान किया गया है। साथ ही सरस्वती की उपासना बौद्ध एवं जैन मैं भी प्राचीन काल से होती रही है।

          सनातन धर्म में विद्या की देवी के रूप में सरस्वती की पूजा प्राचीन काल से प्रचलित है। यद्यपि वैदिक वाङ्मय में जिस सरस्वती का उल्लेख है, वह एक नदी है। वह जल-देवता के रूप में प्रसिद्ध है। ऋग्वैदिक ऋषि कवष ऐलूष की कथा के प्रसंग में सरस्वती की चर्चा है, किन्तु वहाँ उसे जल-देवता का एक रूप माना गया है। अलबत्ता, ऋग्वेद के वाक्-विषयक मन्त्रों में वाक् को देवी माना गया है, किन्तु वहाँ उन्हें पुस्तक और वीणा धारण करनेवाली नहीं माना कहा है।  वैदिक शब्द-कोष निरुक्त में यास्क ने सरस्वती शब्द को नदी-वाचक और वाग्देवता वाचक दोनों माना है। ‘वाक् के अर्थ में प्रयुक्त शब्दों का निर्वचन आरम्भ करते हुए यास्क कहते हैं वाक् शब्द का निर्वचन ‘वच् धातु से बोलने के अर्थ में होता है। यहाँ ‘सरस्वती शब्द नदी के रूप में और देवता के रूप में दोनों प्रकार से वैदिक मन्त्रों में प्रयुक्त है। (-निरुक्त: 2.7) इस प्रकार, यास्क ने भी सरस्वती को वाक् से सम्बद्ध वैदिक देवी माना है।

          वाक् के साथ वीणा के सम्बन्ध की एक सुन्दर कथा तैत्तिरीय-संहिता में है। एक बार वाक् देवताओं से दूर होकर वनस्पतियों में प्रविष्ट हो गयी। वही वाक् वनस्पतियों में बोलती है, दुन्दुभि, तुणव और वीणा में भी बोलती है। अतः दीक्षित यजमान को वाणी पर नियन्त्रण रखने के लिए दण्ड (लाठी) थमाया जाता है (6.1.4)। इसी संहिता में राजसूय-प्रकरण में सरस्वत् और सत्यवाक् को समानाधिकरण के द्वारा अभिन्न मानते हुए उन्हें चरु समर्पित करने का निधान किया गया है (1.8.18)। इस प्रकार, हम देखते हैं कि वैदिक काल में भी वाणी, जिह्वा, संगीत आदि से सम्बद्ध देवता के रूप में वाग्देवी सरस्वती स्थापित हो चुकी थी। पंचविंश ब्राह्मण में मन्त्र को सरस्वती के रूप में प्रतिष्ठा दी गयी है। साथ ही, यज्ञ में इस वाक् को भी आहुति देने का विधान किया गया है। कथा इस प्रकार है- एक बार वाग्देवी देवताओं से दूर चली गयी। देवताओं ने जब उन्हें पुकारा तब वाग्देवी ने कहा कि मुझे तो यज्ञ में भाग नहीं मिलता। तब मैं क्यों आपके साथ रहूँगी। देवों ने वाक् से पूछा कि आपको हममें से कौन भाग देंगे। वाक् ने कहा कि उद्गाता हमें भाग देंगे। अतः उद्गाता वाग्देवी को उद्दिष्ट कर हवन करते हैं (6.7.7)। यहाँ स्पष्ट रूप से वाग्देवी सरस्वती का उल्लेख हुआ है। इसी ब्राह्मण में वाग्वै सरस्वती (16.5.16) भी कहा गया है। शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ से पुरुष की उत्पत्ति के सन्दर्भ में उस पुरुष के अवयवों का वर्णन करते हुए वाक् को सरस्वती कहा गया है- मन एवेन्द्रो वाक् सरस्वती श्रोत्रे अश्विनौ (13.9.1.13)। इसी स्थल पर चिह्वा को सरस्वती माना गया है- प्राण एवेन्द्रः जिह्वा सरस्वती नासिके अश्विनौ (12.9.1.1)

          बौधायन-गृह्यसूत्र में भी देवी सरस्वती की पूजा का विधान किया गया है। यहाँ विद्यारम्भ के पहले सरस्वती-पूजा करने का उपदेष किया गया है। यहाँ उन्हें वाग्देवी, गीर्देवी, सरस्वती तथा ब्राह्मी कहा गया है। प्रत्येक मास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि को उपासना का दिन माना गया। प्रत्येक मास में विद्याकांक्षी लोगों के द्वारा इनकी अर्चना करने का विधान किया गया है। (बौधायन गृह्यसूत्र- 3.6)

          कालिदास ने भी मालविकाग्निमित्रम् नाटक में उल्लेख किया कि कला के उपासक तथा शिक्षक सरस्वती को लड्डू चढाते थे तथा प्रसाद के रूप में उसे खाते थे। नाटक के पहले अंक में ही विदूषक आचार्य गणदास से कहते हैं कि जब आपको देवी सरस्वती को चढाया हुआ लड्डू खाने को मिल ही रहा है तो फिर आपस में क्यों झगड़ रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि कला के उपासक उन दिनों भी सरस्वती की पूजा करते थे।

          108 उपनिषदों में सरस्वती से सम्बद्ध उपनिषद् भी उपलब्ध है। इसका उल्लेख मुक्तिकोपनिषद् में कृष्ण-यजुर्वेद से सम्बद्ध 32 उपनिषदों के साथ किया गया है। इस सरस्वतीरहस्योपनिषद् में देवी सरस्वती को ब्रह्म की शक्ति तथा चारों वेदों का एक मात्र प्रतिपाद्य माना गया है। (मन्त्र सं. 2)

सरस्वती की ऐतिहासिक मूर्ति
वीणाधारिणी सरस्वती की प्राचीन मूर्ति

          इस प्रकार वैदिक काल में भी विद्या की प्राप्ति के लिए सरस्वती की उपासना की जाती रही है। बौद्धधर्म की महायान शाखा में सरस्वती, आर्यतारा एवं भारती को अभिन्न मानते हुए उनकी उपासना की जाती रही है। श्रावस्ती के सहेत-महेत से प्राप्त 1219-20 ई. का एक बौद्ध शिलालेख में एक ही श्लोक में तारा और भारती (सरस्वती) की स्तुति की गयी है-

 संसाराम्भोधिताराय तारामुत्तरलोचनाम्। 
वन्दे गीर्वाणवाणीनां भारतीमधिदेवताम्।।

          जैन धर्म में भी सरस्वती को भगवान् महावीर की वाणी से तुलना की गयी है।जैन सरस्वती के चार हाथों में कमल, माला, पुस्तक एवं कमण्डलु हैं। जैन विद्वानों ने शास्त्रों की रचना करते समय आरम्भ में सरस्वती, शारदा, वाग्देवी एवं ब्राह्मी आदि नामों से सरस्वती की स्तुति की है।

जैन सरस्वती की प्राचीन मूर्ति
जैन सरस्वती की प्रतिमा

          इस प्रकार वैदिक, बौद्ध एवं जैन तीनों धर्मशाखाओं में सरस्वती की उपासना मुखर है।

प्रकाशन- जेकेडी न्यूज
जेकेडी न्यूज, मासिक पत्रिका
TagsFestivalsJanuary Hindu Festivals
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Bhavanath Jha

मिथिला आ मैथिलीक लेल सतत प्रयासरत

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