माघी नवरात्र की सप्तमी- 1 फरवरी, शनिवार

            वर्ष भर में चार नवरात्र होते हैं, जिनमें देवी दुर्गा की आराधना की जाती है- आश्विन में, माघ में, चैत्र में और आषाढ में। इनमें से माघी नवरात्र की सप्तमी के दिन भी पत्रिका प्रवेश एवं देवी की मूर्ति में आवाहन इसी दिन किया जाता है। इसी दिन आँख देकर पट खुलता है।

अचला सप्तमी- 1 फरवरी, शनिवार

माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि अचला सप्तमी, माघी सप्तमी अथवा रथ सप्तमी कहलाती है। मत्स्य पुराण के अनुसार इसी दिन भगवान् आदित्य को सात घोड़ों से चलनेवाला रथ मिला था। जनश्रुति के अनुसार यह दिन भगवान् भास्कर के जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। परम्परानुसार बेर, अकवन, चिड़चिड़ी और जौ के सात-सात पत्ते माथे पर रखकर सूप से जल लेकर प्रातःकाल में स्नान किया जाता है। स्नान करने के बाद भगवान् सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसका मन्त्र इस प्रकार है-

ॐ जननी सर्वभूतानां सप्तमी सप्तसप्तिके।
सप्तव्याहृत्के देवि नमस्ते सूर्यमूर्तये।

माघी नवरात्र का महाष्टमी व्रत- 2 फरवरी, रविवार

माघी नवरात्र का नवमी व्रत- 3 फरवरी, सोमवार

माघी नवरात्र की विजयादशमी- 4 फरवरी, मंगलवार

रविदास जयन्ती- 9 फरवरी, रविवार

माघ पूर्णिमा को सन्त रविदास का जन्मदिन माना जाता है। इस अवसर पर सामाजिक समरसता को बढाबा देने के उद्देश्य से उनकी जयन्ती मनायी जाती है। मध्यकालीन सन्त परम्परा में सन्त रविदास का नाम अमर है। वे रामानन्दाचार्य के शिष्य थे। रविदासजी ने समाज में जातिगत ऊँच-नीच के भेदभाव को समाप्त करने के लिए नारा दिया था कि जात-पाँत पूछै नहि कोय, हरि को भजै सो हरि को होय, यानी जन्म से जाति सम्बन्धी ऊँच-नीच का भेद-भाव नहीं रखना चाहिए। जो भगवान् का भजन करता है, वह भगवान् का अपना हो जाता है। सन्त रविदास का जन्म चमार जाति में हुआ था, पर वे अपना कर्म करते हुए भगवान् की भक्ति में लीन रहे। उनके पदों का संकलन गुरु नानकदेव ने आदि-ग्रन्थ साहिब में भी किया है। वे रामानन्दाचार्य के बारह शिष्यों में से एक थे।

हेरम्ब चतुर्थी- 12 फरवरी, बुधवार

फाल्गुन कृष्ण पक्ष की गणेश चतुर्थी हेरम्ब चतुर्थी के नाम से विख्यात है।

महाशिवरात्रि- 21 फरवरी, शुक्रवार

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन महाशिवरात्रि मनायी जाती है। परम्परानुसार इसी रात्रि में भगवान् शिव एवं पार्वती का विवाह हुआ था। मान्यता के अनुसार देवघर के रावणेश्वर वैद्यनाथ महादेव तथा मधेपुरा के पास स्थित सिंहेश्वर महादेव की स्थापना इसी दिन हुई थी। एक परम्परा के अनुसार इसी दिन शिवलिंग के रूप में महादेव प्रकट हुए थे। दूसरी कथा  अनुसार इसी दिन भगवान् शिव ने विषपान किया था। एक अन्य कथा के अनुसार एकबार पार्वती ने भगवान् शिव से कहा कि मेरे सहयोग के विना आप संसार में कोई कार्य नहीं कर पायेंगे। इसी बात पर रुष्ट होकर शिव ने अपना समस्त कार्य छोड़ दिया, जिससे पृथ्वी पर अंधेरा हो गया तथा चारों ओर सभी लोग हाहाकार करने लगे। तब घबड़ाकर देवी पार्वती ने सभी देवताओं के साथ भगवान् शिव की आराधना इसी रात्रि में की, तब जाकर संसार के सारे कार्य समय पर होने लगे। इस दिन व्रत रखकर संध्याकाल अथवा आधी रात में भगवान् शिव की विशेष पूजा का विधान किया गया है। इस पूजा में बेर, मिसरीकंद, पूआ आदि का भोग लगता है। पार्थिव शिवलिंग की पूजा प्रशस्त मानी जाती है। बहुत लोग इस दिन नक्तव्रत रखते हैं, यानी दिनभर व्रत रखकर सन्ध्यामे भगवान् शिव की पूजा अपने घर में या मन्दिर में कर उनका निर्माल्य अपने शरीर पर छिड़ककर तारा उगने पर पारणा करते हैं। गृहस्थों के लिए नक्त व्रत प्रशस्त है।

गणेश चतुर्थी- 27 फरवरी, गुरुवार

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि। इस दिन गणेश की पूजा होती है।

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