श्रीराम के राज्याभिषेक की प्रामाणिक तिथि की गणना।
चैत्र शुक्ल दशमी को श्रीराम का राज्याभिषेक।
चैत्रमास में पुनर्वसु नक्षत्र में रामनवमी होती है उसके अगले नक्षत्र पुष्य के दिन यानी दशमी तिथि को श्रीराम अयोध्या लौटे थे।
वर्तमान में प्रचलित धारणा है कि श्रीराम रावण का वध कर लंका से दीपावली के दिन अयोध्या लौटे थे। उसी दिन उनका राज्याभिषेक हुआ था।
इस अवधारणा का कारण यह है कि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन रावण का वध माना जाता है। साथ ही विजया दशमी के रावण वध के पश्चात् विजयादशमी मनाने की परम्परा मानी जाती है। जिसके बाद लोग कहते हैं कि लंका में विभीषण के राज्याभिषेक से लेकर अयोध्या लौटने में दीपावली के दिन तक का समय लगा। श्रीराम दीपावली के दिन अयोध्या पहुँचे। इस खुशी में अयोध्यावासियों ने दीपावली का पर्व मनाया।
वाल्मीकि-रामायण का साक्ष्य
जबकि वाल्मीकि रामायण, जो कि रामकथा का सबसे प्रामाणिक ग्रन्थ है, उसमें चातुर्मास्य बीतने के बाद अर्थात् कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि के बाद तो लंका के लिए सैन्य प्रस्थान करने की बात है। तब आश्विन में ही युद्ध कैसे हो जायेगा। आश्विन में राम-रावण युद्ध की कथा परवर्ती शाक्त-ग्रन्थों में देवी को राम-रावण युद्ध में भूमिका देने के लिए कथा गढी गयी है। कालिका-पुराण में इस प्रकार के उल्लेख हमें मिल जाते हैं।
वास्तव में यदि हम वाल्मीकि रामायण के अनुसार गणना करें तो चैत्र मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को अयोध्या में श्रीराम का राज्याभिषेक सिद्ध होता है।
सबसे पहले मास के सम्बन्ध में देखें। वाल्मीकि-रामायण में यह उल्लेख है कि राजा दशरथ ने श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए चैत्र मास को चुना था।
चैत्रः श्रीमानयं मासः पुण्यः पुष्पितकाननः।
यौवराज्याय रामस्य सर्वमेवोपकल्प्यताम्।।
अयोध्याकाण्ड, 3.4
अयोध्याकाण्ड़ में यह उल्लेख है कि श्रीराम का वनवास चैत्र मास में उसी दिन हुआ था, जिस दिन उनका जन्म हुआ था। रामजन्म की जो गणना दी गयी है, ठीक उसी ग्रह-नक्षत्र की स्थिति में उनके राज्याभिषेक के लिए भी तिथि की गणना की गयी थी। अयोध्याकाण्ड के 15वें सर्ग में दशरथ कहते हैं कि पुष्य नक्षत्र में सूर्य के आने पर कर्क लग्न में, जो कि श्रीराम के जन्म का लग्न है, श्रेष्ठ ब्राह्मणों नें राम के अभिषेक के लिए मुहूर्त निकाला है-
उदिते विमले सूर्ये पुष्ये चाभ्यागतेऽहनि।
लग्ने कर्कटके प्राप्ते जन्म रामस्य च स्थिते ॥१३॥
अभिषेकाय रामस्य द्विजेन्द्रैरुपकल्पितम् ।।१४।।
अयोध्याकाण्ड, सर्गः १५
अर्थात् राम के जन्म का जो लग्न है, उसी लग्न में अभिषेक का भी दिन पड़ा था।
इसी अभिषेक के दिन 14 वर्षों के लिए उनका वनवास भी हुआ था। भरत के लिए तो एक-एक दिन एक-एक युग के समान बीत रहा था, अतः भरत नें श्रीराम से स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि ठीक चौदह वर्ष से एक दिन भी आगे हुआ तो मैं आत्मदाह कर लूँगा-
चतुर्दशे हि संपूर्णे वर्षेऽहनि रघूत्तम।
न द्रक्ष्यामि यदि त्वां तु प्रवेक्ष्यामि हुताशनम्।।
अयोध्याकाण्ड 112.25-26
अर्थात् हे श्रीराम चौदह वर्ष बीतने के दिन मैं आपको नहीं देखूँगा तो आग में प्रवेश करूँगा।
इसपर राम ने भरत को आश्वासन दिया था-
तथेति च प्रतिज्ञाय तं परिष्वज्य सादरम् ।
शत्रुघ्नं च परिष्वज्य भरतं चेदमब्रवीत् ।।
अयोध्याकाण्ड, 2.112.26
राम ने कहा था- हे भरत, ऐसा ही होगा। मैं चौदह वर्ष के समाप्त होते ही आ मिलूँगा। ऐसी प्रतिज्ञा कर श्रीराम ने भरत तथा शत्रुघ्न का आलिंगन कर विदा दी थी। दृढव्रत श्रीराम तो दो बातें बोलते नहीं। वे न तो दुबारा शर चलाते हैं, न दोबारा बोलते हैं। श्रीराम की प्रतिज्ञा कभी असत्य नहीं होगी।
द्विःशरं नाभिसन्धन्ते रामो द्विर्नाभिभाषते।।
इस प्रकार जिस मास तिथि एवं पक्ष में उनका वनगमन हुआ था, उसी मास,तिथि एवं पक्ष में चौदह वर्ष भी पूर्ण होगा।
वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड में वर्णन आया है कि राम चौदह वर्ष पूरा होने पर सीता एवं लक्ष्मण के साथ मुनि भारद्वाज के आश्रम में पहुँचते हैं। वहाँ उनके पहुँचने की तिथि पञ्चमी है।
पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पञ्चम्यां लक्ष्मणाग्रजः।
भरद्वाजाश्रमं प्राप्य ववन्द नियतो मुनिम्।।
युद्धकाण्ड,127.1
मुनि भरद्वाज उन्हें अपने आश्रम में रातभर रुकने के लिए कहते हैं कि आज मेरे आश्रम में अर्घ्य ग्रहण करें और कल आप अयोध्या के लिए प्रस्थान करेंगे। यहाँ गमिष्यसि शब्द का प्रयोग है, जो प्रस्थान करने के अर्थ में है। यदि अयोध्या पहुँचने की बात होती तो प्राप्स्यसि शब्द का व्यवहार होता।
अर्घ्यमद्य गृहाणेदमयोध्यां श्वो गमिष्यसि।
युद्धकाण्ड, 127.17
इसी भरद्वाज आश्रम से राम हनुमान को नन्दिग्राम भरत के पास आगमन का समाचार कहने के लिए भेजते हैं। वाल्मीकि रामायण के आरम्भ में ही मूलरामायण में भी इस बात का संकेत है-
भरद्वाजाश्रमं गत्वा रामः सत्यपराक्रमः ।
भरतस्यान्तिकम् रामो हनूमन्तं व्यसर्जयत्।।
बालकाण्ड, 1.87
अर्थात् भरद्वाज के आश्रम में जाकर यानी पंचमी तिथि में हनुमानजी को भरत के पास भेजा। युद्धकाण्ड की सर्ग संख्या 129 में हनुमान एवं भरत का संवाद वर्णित है, जिसमें हनुमान भरत को सीताहरण, रावण-वध आदि की सारी कथा सुनाते हैं तथा आश्वासन देते हैं कि राम पुष्पक विमान से किष्किन्धा होते हुए गंगा के तट पर आ गये हैं और मुनि के आश्रम में हैं। कल पुष्य नक्षत्र होने पर आप उन्हें देख सकेंगे।
तं गङ्गां पुनरासाद्य वसन्तं मुनिसंनिधौ।
अविघ्नं पुष्ययोगेन श्वो रामं द्रष्टुमर्हसि।।
युद्धकाण्ड, 129
इसका अर्थ है कि जिस दिन हनुमान् भऱद्वाज के आश्रम से भरत के पास चले, उस दिन पंचमी तिथि थी। इसके अगले दिन राम भी अयोध्या के लिए प्रस्थान कर गये। हनुमान और भरत की वार्ता पुनर्वसु नक्षत्र में चैत्र शुक्ल नवमी के दिन हुई, क्योंकि वे कल होकर पुष्य नक्षत्र होने की बात कहते हैं। चैत्र शुक्ल नवमी अर्थात् रामनवमी पुनर्वसु नक्षत्र में होती है। इसके अगले दिन यानी चैत्र शुक्ल दशमी तिथि को राम अयोध्या पहुँचे थे। उन्हें गंगातट के भरद्वाज आश्रम से चलकर निषादराज गुह से मिलते हुए अयोध्या तक पहुँचने में चार दिन लगे थे।
इस प्रकार वाल्मीकि रामायण से स्पष्ट है कि पुनर्वसु नक्षत्र में रामनवमी के दिन ही श्रीराम का वनगमन हुआ था तथा उसी दिन उनका चौदह वर्ष पूर्ण हुआ।
उसके अगले दिन पुष्य नक्षत्र के योग में उनका राज्याभिषेक हुआ। अर्थात् चैत्र की विजयादशमी के दिन अभिषेक हुआ।
पञ्चाङ्गकारों ने चैत्र शुक्ल पंचमी को राज्याभिषेक का दिन माना है, किन्तु इसके पीछे उनका क्या आधार है यह स्पष्ट नहीं।
कुछ विद्वानों ने भरद्वाज मुनि की उक्ति, कि आज पंचमी को आप हमारे आश्रम पर रहें, कल अयोध्या जायेंगे, के आधार पर चैत्र शुक्ल षष्ठी को अयोध्या पहुँचने की तिथि मानी है। किन्तु हनुमान-भरत संवाद में स्पष्ट रूप से पुष्य नक्षत्र के योग की बात है। चैत्र महीने में पुष्य नक्षत्र का योग दशमी तिथि के साथ होती है, क्योंकि उससे एक नक्षत्र पूर्व पुनर्वसु नक्षत्र में रामनवमी मनायी जाती है, अतः सिद्ध होता है कि चैत्र शुक्ल दशमी को राम अयोध्या पहुँचे थे।
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