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Home›पाबनि-तिहार›अगस्त्यसंहितोक्ता रामनवमीव्रतकथा

अगस्त्यसंहितोक्ता रामनवमीव्रतकथा

By Bhavanath Jha
September 12, 2019
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0
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Ramanavami Vrat-katha

अथ कथा
प्राप्ते श्रीरामनवमीदिने मर्यो विमूढधीः।
उपोषणं न कुरुते कुम्भीपाकेषु पच्यते।।।1।।

यत्किंचिद्राममुद्दिश्य नो ददाति स्वशक्तितः।
रौरवेषु स मूढात्मा पच्यते नात्र संशयः।।2।।

पीताम्बराणि देवाय प्रार्थितान्यर्पयेत्सुधीः।
स्वर्णयज्ञोपवीतानि दद्याद् देवाय शक्तितः।।3।।

नानारत्नविचित्राणि दद्यादाभरणानि च।
हिमाम्बुघृष्टरुचिरघनसारसमन्वितम् । ।4।।

गन्धं दद्यात्प्रयत्नेन सागुरुं च सकुङ्कुमम्।
मूलमन्त्रेण सकलानुपचारान्प्रकल्पयेत्।।5।।

कह्लारकेतकीजातीपुन्नागाद्यैः प्रपूजयेत्।
चम्पकैः शतपत्रैश्च सुगन्धैः सुमनोहरैः।।6।।

घण्टां च वादयन् धूपं दीपं चास्मै समर्पयेत् ।
भक्ष्यभोज्यादिकं भक्त्या देवाय विधिनार्पयेत्।।7।।

एवं सोपस्करं देवं दत्वा पापैः प्रमुच्यते।
जन्मकोटिकृतैः घोरैर्नानारूपैः सुदारुणैः।।8।।

विमुक्तस्तत्क्षणादेव राम एव भवेन्मुने।
श्रद्धधानस्य ते प्रोक्तं श्रीरामनवमीव्रतम् ।।9।।

सर्वलोकहितार्थाय पवित्रं पापनाशनम् ।
लौहेन निर्मितं चापि शिलया दारुणापि वा।।10।।

येन केन प्रकारेण यस्मै कस्मै क्रमान्मुने।
चैत्रशुक्लनवम्यां तु दत्वा विप्राय भक्तितः।।11।।

सर्वपापविनिर्मुक्तो भवेदेव न संशयः।
तस्मिन् दिने महापुण्ये स्नानदानादिकं मुने।।12।।

कृतं सर्वप्रयत्नेन यत्किंचिदपि भक्तितः।
महादानादितुल्यं स्याद्रामोद्देशेन यत्कृतम्।।13।।

वित्तसाठ्यन्न कर्तव्यं सर्वं कुर्यात्स्वभक्तितः।
तस्मिन् दिने महापुण्ये प्रातरारभ्य भक्तितः।।14।।

जपेदेकान्त आसीनो यावत्स्याद्दशमीदिनम्।
तेनैव स्यात्पुरश्चर्या दशम्यां भोजयेद् द्विजान्।।15।।

भक्ष्यभोज्यैर्बहुविधैर्दद्याच्छक्त्या च दक्षिणाम् ।
कृतकृत्यो भवेत्तेन सद्यो रामः प्रसीदति।।16।।

तूष्णीं तिष्ठन्नरो याति पुनरावृत्तिवर्जितः।
द्वादशाब्दशतेनापि यत्पापं नापपद्यते।।17।।

विलयं याति तत्सर्वं श्रीरामनवमीदिने।
मुमुक्षवोऽपि सदा राम श्रीरामनवमीव्रतम्।।18।।

न त्यजन्ति सुरश्रेष्ठो देवेन्द्रोऽपि विशेषतः।।
तस्मात्सर्वात्मना सर्वे कृत्वैव नवमीव्रतम्4।।19।।

मुच्यते सर्वपापेभ्यो यान्ति ब्रह्म सनातनम्।
अथ पूजा प्रवक्ष्यामि ब्रह्मोक्तां सुरपूजिताम् ।20।।

सीते देवि नमस्तुभ्यं रामचन्द्रप्रिये सदा।
गृहाणार्थ्यं मया दत्तं वरदा भव शोभने।।21

कौशल्ये प्रणमामि त्वां राममातः सुशोभने।
अदिते त्वं गृहाणार्थ्यं वरदा भव सर्व्वदा।।22।।

कैकेयि प्रणमामि त्वां रावणस्यान्तकारिणि।
गृहाणार्थ्यं मया दत्तं वरदा भव शोभने।।23।।

सुमित्रे त्वां नमस्यामि शेषमातर्नमोऽस्तु ते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं वरदा भव शोभने।।24।।

अजपुत्र महाबाहो श्रीमद्दशरथ प्रभो।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं रामतात नमोऽस्तु ते।।25।।

सीतापते नमस्तुभ्यं रावणस्यान्तक प्रभो।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं कौशल्यानन्दवर्द्धन।।26।।

दाशरथे नमस्यामि रामभक्तिन् नृपात्मज।
मया समर्पितं तुभ्यमर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।27।।

लक्ष्मण त्वं महाबाहो इन्द्रजिद्वधकारक।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं सुमित्रातनय प्रभो।।28।।

नारिकेरैश्च कूष्माण्डर्मातुलङ्गैः सपूगकैः।
दद्यादर्घ्यं सुरेशाय रामाय वरदायिने।।29।।

हनुमद् वायुतनय रावणस्यान्तकारक।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं रामभक्तिं प्रयच्छ मे।।30।।

लब्ध्वा सुतौ त्वया राम प्राप्तं सुखमनुत्तमम्।
तथा मां सुखितं देव कुरुष्व त्वां नमाम्यहम्।।31।।

अवतीर्य्य त्वया देव वायुपुत्रासुरान्तक।
अवतारय मां भक्तं भवसिन्धुसुदुस्तरात्।।32।।

पापिनो हि नो रामं प्राप्यन्ते चात्र संशयः।
चैत्रशुक्लनवम्यान्तु भुञ्जन्ते ये नराधमाः।।33।।

पच्यन्ते रौरवे घोरे विष्णुना भाषितं पुरा।
नवमी चैत्रमासस्य पुनर्वसुयुता भवेत्।।34।।

उपवासः सदा देव अश्वमेधशताधिकः।
बुधवारो भवेत्तत्र अतिगण्डस्तथैव च।।35।।

पूजयन्ति तथा रामं यान्ति ब्रह्म सनातनम्।
मुमुक्षुणापि कर्तव्यं गृहस्थेनापि वा पुनः।।36।।

क्षत्रियेण च वैश्येन शूद्रेणापि महामुने।।
चाण्डालेनापि कर्तव्यं व्रतमेतदनुत्तमम् ।।37।।

व्रतं ये नैव कुर्वन्ति मानवाः काममोहिताः।
ते यान्ति नरकं घोरं शतकल्पावधि ध्रुवम्।।।38।।

भ्रूणहत्या च यत्पापं सुरापानाच्च यद्भवेत्।
तत्पापं कोटिगुणितं जयन्त्यां भोजनाद्भवेत्।।39।।

गवां वधे च यत्पापं स्त्रीवधे यत्प्रजायते।
कृतघ्नस्यापि यत्पापं संसारे संभवेन्मुने।।40।।

तत्पापं कोटिगुणितं जयन्त्यां भोजनाद् भवेत्।
काकमांसं गवीमांस शुनश्चापि नरस्य च।।41।।

भक्षयित्वा च यत्पापं जयन्तीभोजनाद् भवेत्।
ये कुर्वन्ति नरा नित्यं जयन्तीव्रतमुत्तमम्।।42।।

कुलकोटिसमायुक्तं यान्ति ब्रह्म सनातनम् ।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन व्रतमेतत् समाचरेत्।
अकुर्वन् यान्ति निरयं सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।।43।।

अगस्तिरुवाच
पूजाविधानं वक्ष्यामि कथितं नारदेन यत्।
वाल्मीकाय मुनीन्द्राय द्वारपूजादिकं तथा।।44।।

आकर्णय मुनिश्रेष्ठ सर्वाभीष्टफलप्रदम् ।
श्रीरामद्वारपीठाङ्गपरिवारिस्तथा स्थितान्।।45।।

ये प्रोक्तास्तानिह स्तौमि तन्मूलाः सिद्धयो यतः।
वंदे गणपतिं भानु तिलकं स्वामिनं शिवम्।।46।।

क्षेत्रपालं तथा धात्रीं विधातारमनन्तरम्।
गृहाधीशं गृहं गङ्गां यमुनां कुलदेवताम्।।47।।

प्रचण्डचण्डा च तथा शंखपद्मनिधी अपि।
वास्तोष्पतिं द्वारलक्ष्मी गुरुं वागधिदेवताम्।।48।।

एता वै द्वारदेवताः पूज्याः। महामन्त्रककालागुरुद्रव्याभ्यान्नमः।
आधारं शङ्खं कूर्मं शेषं सवासुकिम् ।
सुधार्णवं श्वेतद्वीप कल्पवृक्ष मणिमण्डपम्।।49।।

अश्वं विमानं सिंहासनम्।

आरक्तपद्मं धर्मादश्चसत्त्वादिकाँश्च।
अर्द्धचन्द्राग्नि विमलोत्कर्षिणी-क्रिया-योगा-ईशानाः प्रसिद्धसत्त्वा। ईशानायै सर्वात्मने योगपीठात्मने नमः।
यजामहेत्विष्टौ रामौ ह्रीमानात्मनौ व्यवस्थितौ।
ससीताय रामाय वषट् नेत्रत्रयाय च।।50।।

रां रामाय नमो राममर्चयेन्मनुना ततः।
ह्रीमाद्यं ससीतायै स्वाहान्तोऽयं षडक्षरः।।51।।

ऐं मन्त्रस्वरूपाय नमो ज्योतिषेन्द्राय नमः।
आत्मान्तरात्ममनसोत्पत्यै ज्ञानात्मने नमः।।52।।

आग्नेयात् प्रवृत्यै प्रतिष्ठायै विद्यायै ईशान्यै वासुदेवाय संकर्षणाय प्रद्युम्नायनिरुद्धाय शान्त्यै प्रकृत्यै रत्यै प्रीत्यै नमः।

अग्रे हनूमान् जाम्बवान् सुग्रीव विभीषण अङ्गद शत्रुघ्न, धृष्टि जय विजय राष्ट्र सुराष्ट्रवर्द्धन अशोक सुमन्त द्वारपालाः रामरूपाः।

वज्र शक्ति दण्ड खड् पाश गदा त्रिशूल अम्बुज चक्र एतान्यस्त्राणि । वसिष्ठ वामदेव गौतम नल नील गवय गवाक्ष गन्धमादन शरभ मैन्द द्विविदादयः।
शङ्ख चक्र गदा पद्म शाङ्ग बाण गरुड विष्वक्सेन एते विष्णुरूपाः। सर्वस्मै विष्णुरूपाय नमः। ज्योतिषे विष्णुरूपिणे।

मनोवाक्कायजनितं कर्म यच्च शुभाशुभम्।
तत्सर्वं भूतये भूयान्नमो रामाय देहिने।। 53

एतद्रहस्यं परमं प्रत्यूषःसु समासतः।
यः पठेद्राममाहात्म्यं विद्यैश्वर्थ्यनिधिर्भवेत्।।54।।

ऋणध्वंसश्च सौभाग्यं दारिद्र्यञ्च निकृन्तयेत्।
उपद्रवाँश्च शमयेत् सर्व्वलोकं वशं नयेत्।।55।।

यः पठेत्प्रातरुत्थाय धर्मार्पणधिया सदा।
स याति परमं ब्रह्म पुनरावृत्तिवर्जितम्।।56।।

इत्यगस्त्यसंहितोक्ता रामनवमीकथा समाप्ता।

| ॐ यदक्षरेत्यादि।1

ॐ नमः ससीतरामलक्ष्मणाभ्याम् ।

ॐ यदक्षरपदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद् भवेत्। तत्सर्वं क्षम्यतां देव कस्य वै निश्चलं मनः।।

TagsRamanavamiShri Ramअगस्त्य-संहितारामनवमी
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Bhavanath Jha

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