पूजा में सामग्री की व्यवस्था करने का कोई अंत नहीं है। आप अपने विभव के अनुसार धोती, साड़ी, सोना, चाँदी आदि भी अर्पित कर सकते हैं। किन्तु सनातन धर्म के अधिकतम श्रद्धालु मध्यमवर्गीय हैं। उनके लिए धन बहुत मायने रखता है। ऐसे लोगों के लिए हम पद्धति भी प्रकाशित कर रहे हैं। उनके लिए यहाँ शास्त्र की विधि से सामग्रियों की सूची दी जा रही है। इस सूची में आप देखेंगे कि इनमें बहुत अधिक धन का प्रयोजन नहीं है।
स्थायी –
आसन, कम्बल, थाली, लोटा, दीप, अरघा, पंचपात्र, शंख, कटोरा काँसा, कटोरा बड़ा, तष्टा (पीतल का छोटा प्लेट जैसा), शंख की बैसकी। -ये यदि घर में पहले से व्यवहार में हो तो उसीका व्यवहार होगा।
अस्थायी-
चावल, तिल, जौ, रोली, चन्दन, हल्दी, सिन्दूर, मौली, कपूर, माचिस, रुई की बत्ती, सुपारी, लौंग-इलायची , गरी-गोला, मधु, घी, पीला कपड़ा-1 मीटर, शक्कर, दही, दूध, तुलसीपत्र, दूर्वा, जनेउ, फूल-माला।
प्रसाद-
लड्डू 21 की संख्या में एक जगह, उसके अतिरिक्त प्रसाद पाने वाले की संख्या के अनुसार, फल आदि
हवन-सामग्री-
आम की लकड़ी, कपूर, धूप, तिल 500ग्राम, चावल 250 ग्राम, जौ 125 ग्राम, शक्कर-100 ग्राम, घी-500 ग्राम, सूखा नारियल (पीला कपड़ा से लपेटा हुआ),
यदि बंद घर में हवन कर रहे हों तो सूखा नारियल का प्रयोग न कर एक सुपारी का व्यवहार करें। सूखा नारियल के फटने का डर रहता है। पूर्णाहुति के लिए पान का पत्ता तथा उस पर सुपारी रखकर प्रयोग करें।
दक्षिणा
पूजा यदि स्वयं भी कर रहे हों तो तब भी अपने विभव के अनुसार दक्षिणा के नाम पर कुछ रुपये किसी विद्वान् ब्राह्मण को दे देने का निर्देश शास्त्र करता है। हतो यज्ञस्त्वदक्षिणः अर्थात् विना दक्षिणा दिये कोई भी यज्ञ सफल नहीं होता है। आधुनिक युग में आप यदि ऑनलाइन भुगतान भी किसी विद्वान् को कर देते हैं तो वह भी दक्षिणा मानी जायेगी।